बुधवार, 28 जनवरी 2009

६ प्रदेश चर्चा

महाराष्ट्र : खनन से नष्ट होते वन
सुश्री अपर्णा पल्लवी
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में स्थित सुरक्षित वनों में से ३५०० हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग परिवर्तन निश्चित हो चुका है । इससे इन वनों पर अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताआें जिसमें जलाऊ लकड़ी भी सम्मिलित है , हेतु आश्रित बुरी तरह प्रभावित होंगें । सरकार ने यहां पर तीन कंपनियों जिसमें अडानी इंटरप्राइजेस भी शामिल है, को खुली खनन परियोजना हेतु पश्चिमी लोहरा गांव में १६०० हेक्टेयर भूमि आवंटित की है । अडानी ने हाल ही में १४०० लाख टन की परियोजना हेतु पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट प्रस्तुत कर अन्य स्वीकृतियां प्राप्त् कर ली हैं । पर्यावरण व वन्यजीवन पर कार्य कर रहे दो स्थानीय समूहों ने आरोप लगाया है कि ईआइए में समीप स्थित ताडोबा अंधेरी टाईगर रिजर्व पर इस परियोजना से पड़ने वाले प्रभावों को शामिल नहीं किया गया है । इतना ही नहीं कंपनी ने मात्र लोहारा गांव को पुनर्वसित करने की स्वीकृति देते हुए परियोजन से प्रभावित अन्य ११ गांवों का जिक्र तक नहंी किया है । जिससे इनमें आपस में मतभेद पैदा हो रहे हैं । ग्रीन प्लेनेट सोासाईटी और ईको प्रो. नामक इन दो गैर लाभ वाली संस्थाआें ने ईआइए में अनेक अनियमितताआें का उल्लेख करते हुए कहा है कि ११ सितम्बर और ४ नवम्बर को हुई जन सुनवाई इसलिए पूरी नहंी हो पाई क्योंकि परियोजना के समर्थकों और विरोधियों में आपसी विवाद खड़ा हो गया था । ईआईए ने मौजूद गलतियों की ओर इशारा करते हुए ग्रीन प्लेनेट सोसायटी का कहना है कि अडानी ने अ-वनीकरण को कमतर आंका है । उनका कहना है कि कंपनी को संग्रहण, भवन, सड़कों, कार्यशालाआें व अन्य गतिविधियों हेतु १७५० हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होगी । अडानी द्वारा संग्रहण हेतु ६०० हेक्टेयर भूमि आवंटित किए जाने की की स्वीकारोक्ति एक असफल जनसुनवाई में भी कई थी परंतु अन्य सुविधाआें हेतु आवश्यक भूमि का जिक्र तक नहीं किया गया । समितियों का कहना है कि यदि तीनों परियोजनाआें का आकलन किया जाए तो १० हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट होगा । अडानी परियोजना से लोहरा में स्थित १० हेक्टेयर के तालाब में पानी के प्राकृतिक प्रवाह में रूकावट आएगी और पास के गांवों और सुरक्षित वन के अनेक प्राकृतिक जल स्त्रोत भी प्रभावित होंगें । इसके परिणामस्वरूप पानी की समस्या में वृद्धि होगी । पूर्व में वेस्टर्न कोलफील्ड्स द्वारा खनन से भू-जल स्तर में कमी आई थी । रिपोर्ट में पानी की शुद्धता हेतु भी विस्तार से चर्चा नहीं की गई है, खासकर खनन के दौरान निकलने वाले एसिड से पानी की शुद्धता की । अगर यह एसिड युक्त पानी को नजदीक की झरपट और वर्धा नहरों में छोड़ दिया गया तो इससे नदियों के पर्यावरण के अतिरिक्त इस नदी से सिंचाई पर निर्भर कृषि पर भी विपरित प्रभाव पड़ेगा । कंपनी का यह कथन कि इस इलाके में खनन से दूषित पानी का प्रवाह नहीं होगा को संस्थान कोरी कल्पना ही मानता है । उनका कहना है कि वनों के नष्ट होने और खनन की निरंतरता से भूमि की गुणवत्ता में निश्चित तौर पर गिरावट आएगी । ईको प्रो. के बंधु धोत्रे का कहना है कि वन्यजीव सर्वेक्षण में १४ महत्वपूर्ण वनस्पतियों की अनदेखी की गई है । इतना ही नहीं ताडोबा व समीप के संरक्षित वन को देश में सर्वश्रेष्ठ शेर बसाहट कहा जाता है । इस सर्वेक्षण में जानवरों को शामिल न किया जाना भी आश्चर्यचकित करता है। अगर इसमें शेरों का जिक्र किया जाता तो इस परियोजना की स्वीकृति मिलना असंभव होती क्योंकि ताडोबा को दिसम्बर २००७ में ही महत्वपूर्ण शेर बसाहट के रूप में अधिूसचित किया जा चुका है । रिपोर्ट में वन्यजीव प्रबंधन का जिक्र न आने पर कंपनी का कहना है कि अभी तो प्राथमिक जानकारी ही मुहैया कराई गई है इसे दोबारा तैयार कर एक महीने में महाराष्ट्र के मुख्यवन संरक्षक (वन्यजीव) को प्रस्तुत कर दिया जाएगा । महाराष्ट्र के मुख्य वन संरक्षक शेषराव पाटिल का कहना है कि खनन हेतु प्रस्तावित परियोजना ताडोबा की सीमा से ११ कि.मी. की दूरी पर है । उनका कहना है कि खनन से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा । कानूनी तौर पर सुरक्षित क्षेत्र से १० किमी की परिधि को ही संवेदनशील घोषित किया जाता है । बफर क्षेत्र हेतु अभी अधिसूचना जारी नहीं हुई है । सिर्फ प्रस्ताव ही भेजा गया है । वहीं स्थानीय निवासियों का कहना है कि बफर क्षेत्र के रूप में ताडोबा व अन्य क्षेत्रों की २०००० हेक्टेयर वन भूमि लील ली जाएगी । इस परियोजना पर स्थानीय निवासियों की मिश्रित प्रतिक्रिया है । लोहारा के निवासियों द्वारा इसकी जोरदार पैरवी करते हुए कंपनी से मांग की गई है कि उन्हें २ लाख रूपए प्रति एकड़ के बजाए २० लाख रूपए प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाए । बाकी के ११ गांव के निवासी जो कि इस वन पर निर्भर हैं इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं । वहीं कंपनी द्वारा ग्रामीवासियों की वन पर निर्भरता कम करने हेतु गांवों के विकास हेतु प्रतिवर्ष ४० लाख रूपए के निवेश के प्रस्ताव को नकारते हुए ग्रामवासियों का कहना है कि हम विकास के छलावे में फंसना ही नहंी चाहते । खुले खनन से उड़ने वाली धूल हमारी कृषि भूमि नष्ट कर देगी एवं ११ गांवों के १०००० निवासी बेरोजगार हो गाएंगें । परंतु लोहारा के ग्रामवासियों को धन लुभा रहा है । गांव के निवासी विनोद उइके क्का कहना है कि जनसुनवाई में पर्यावरणविद्ों का ही बोलबाला होता है । जबकि जनसुनवाई के दौरान ग्रामवासियों, कलेक्टर व अडानी के प्रतिनिधियों के अलावा किसी को मौजूद नहंी रहना चाहिए। वैसे लोहारा के निवासियों ने काफी मात्रा में आसान धन कमाया है । गांव की ९० प्रतिशत कृषि योग्य भूमि तीन रिसोर्ट व अमीर भू-स्वामियों को लीज पर दे दी गई है । ग्रीन प्लेनेट सोसाइटी का कहना है कि लोगों को विश्वास है कि पुनर्वास से उन्हे ढेर सारा धन मिलेगा परंतु अडानी की बात में कोई दम नहीं है । परियोजना के अंतर्गत गांवों को १६०० रोजगार उपलब्ध करवाने की बात कही गई है जबकि गांव में कार्य करने में सक्षम जनसंख्या मात्र ६५० है । ईआईए रिपोर्ट में न तो रोजगार की प्रकृति की ही चर्चा की गई है न ही इस हेतु आवश्यक योग्यता की । इसी जिले की अनेक परियोजनाआें से विस्थापित अभी तक तयशुदा पुनर्वास हेतु भटक रहे हैं । परंतु लोहारा के निवासी कहते हैं कि वे अन्य जैसे नहीं है उन्हें समझौता करना आता है । स्थानीय राजनेता भी गांव वालों का समर्थन कर रहे हैं । सांसद हंसराज अहीर और विधायक सुधीर मनगान्तिवर जो पूर्व में परियोजना का विरोध कर रहे थे, ने भी अपना स्वर नरम कर लिया है और अब वे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे ऐसी भूगर्भीय खनन हेतु तैयार है । परंतु बातचीत में उन्होने कहा कि विद्युत ऊर्जा राज्य की प्राथमिकता है अतएव वे खनन का विरोध नहीं करेंगे फिर वह चाहे खुले में हो या जमीन के अंदर खनन हो । महाराष्ट्र का केवल २० प्रतिशत क्षेत्र ही वनाच्छादित बचा है । घने वन केवल दो आदिवासी बहुल जिलों चंद्रपुर और गढ़चिरौली में बचे हैं । प्रश्न है कि क्या १०,००० हेक्टेयर वन नष्ट किए जाने को राज्य सहन कर पाएगा ? ***
धरती के लिए खतरा बन सकती है सौर सक्रियता ऐसे में जब धरती पर जीवन का शाश्वत स्रोत सूर्य अपनी सौर सक्रियता के ११ वर्षीय चक्र की शुरूआत करने जा रहा है, धरती पर इसके संभावित कुप्रभाव का आकलन करने वाले वैज्ञानिक चिंतित है । इस कुदरती घटना से धरती को खतरा पहुंच सकता है । यह तय हो चुका है कि सौर सक्रियता भी धरती पर जलवायु परिवर्तन की वजह रही है । जाहिर है, आगामी दशक में सौर सक्रियता के कारण धरती की मुश्किलें बढ़ सकती है । उल्लेखनीय है कि इंसान ने इस परिघटना का आकलन करने के लिए पहली बार ४४० वर्ष पहले उपकरण तैयार किए थे । इन उपकरणों से इसकी पुष्टि हुई कि धरती सिर्फ सूर्यग्रहण नामक सौर परिघटना से ही प्रभावित नहीं होता । सौर धब्बे और सौर सक्रियता आदि जैसी कुदरती परिघटनाएं भी धरती को प्रभावित करती है । यहां तक कि इंसान के व्यवहार पर भी इनका असर पड़ता है । सौर विकिरण, सौर चुंबकीय तूफान या सौर प्रज्वलन जैसी रासायनिक क्रियाएं सौर सक्रियता के दायरे में आती है । ये परिघटनाए क्षीण या विनाशकारी दोनों हो सकती है । २८ अगस्त १८५९ को ध्रुवीय क्षेत्रों में अचानक सौर ताप बढ़ गया और शाम के वक्त पूरे अमेरिका महादेश में तेज धूप खिल उठी थी । कई लोगों को ऐसा महसूस हुआ जैसे उनके शहर में आग लग गई हो । शहर तेज धूप के कारण दहक उठे । इससे टेलीग्राप प्रणाली में गड़बड़ी पैदा हो गई । अगर आज के एटमी व अंतरिक्ष युग में ऐसा हो तो परिणाम भयावह होगा। रेडियो इलेक्ट्रानिक उपकरणों पर आज हम इतने निर्भर हो चुके हैकि अगर ऐसी घटना हुई तो पूरी दुनिया में जीवन-रक्षक प्रणालियां ध्वस्त हो जाएगी।

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