बुधवार, 13 मई 2009

१३ वानिकी जगत

वन , जल और कल
- डॉ. किशोर पंवार
हमारे पास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों में हवा और पानी के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान जंगल का है । सच पूछा जाए तो ये तीनों आपस में जुड़े हैं । चिपको आंदोलन से निकला नारा क्या है जंगल के उपकार- मिट्टी पानी और बयार बिलकुल सटीक है । जंगल यानी ऐसा वनस्पति समूह जहां पेड़ों की अधिकता हो, जहां पेड़ो के शीर्ष आपस में मिल-जुलकर घनी छाया प्रदान करते हों, जहां तक नज़र जाए लंबे, घने पेड़ ही पेड़ दिखाई दें । खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार दुनिया का लगभग २९ प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढंका है । इसमें वे स्थान भी शामिल हैं जिन्हें हम घने वन कहते हैं जहां वृक्षाच्छादन जमीन के २० प्रतिशत अधिक है और वे भी जिन्हें हम विरल वन कहते हैं जहां यह प्रतिशत २० से कम है । हमारे देश का लगभग १९ प्रतिशत क्षेत्र जंगल है । यहां लगभग ६,३७,२९३ वर्ग कि.मी. में जंगल हैं । हमारे देश में १६ प्रकार के जंगल हैं। इनमें सूखे पतझड़ी वन ३८ प्रतिशत और नम कंटील जंगल की श्रेणी में आते हैं । पर्वतीय स्थानों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल पर सदाबहार वन और वर्षा वन भी मिलते हैं । वन सदियों से हमारे जीवन का आधार रहे हैं । इनसे हमें भोजन, इमारती लकड़ी, इंर्धन और दवाइयां मिलती हैं । हमारा पूरा हर्बल चिकित्सा तंत्र वनों से प्राप्त् होने वाली विभिन्न जड़ी-बूटियों पर ही टिकाहै । जंगल वन्य जीवों के प्राकृतवास हैं । जगल है तो जंगल का राजा शेर है । शेर, बाघ आदि का पाया जाना एक अच्छे जंगल की निशानी है । जंगल ज़हरीले प्रदूषकों को सोखते हैं और हमें स्वच्छ वायु प्रदान करते हैं । ये पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित रखते हैं, वैश्विक तपन को कम करते हैं । जंगल बारिश के पानी को रोककर नदियों को बारहमासी बनाते हैं, भूमि के क्षरण को रोककर बाढ़ की आपदा घटाते हैं । ये दुनिया की २५ प्रतिशत औषधियों को सक्रिय तत्व उपलब्ध कराते हैं । परंतु खेद की बात है कि इतना उपकार करने वाले वन दिनों दिन सिकुड़ते जा रहे हैं । मुख्य कारण है बढ़ती जनसंख्या, उपभोक्ताबाद और शहरीकरण । वर्ष १९०० में विश्व में कुल वन क्षेत्र ७०० करोड़ हैक्टर था जो १९७५ तक घटकर केवल २८९ करोड़ हैक्टेअर रह गया । वर्ष २००० में यह २३० करोड़ हैक्टर था । वनों के घटने की यह रफ्तार पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय है । इन्हीं कारणों से चिपको एवं अपिको आंदोलनों की शुरूआत हुई थी । इस संदर्भ में जोधपुर की अमृता देवी का बलिदान नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने खेजड़ी वृक्षों को बचाया था । वनों के घटने से वर्षा कम होती है, वर्षा का पैटर्न बदल जाता है, उपजाऊ मिट्टी कम हो जाती है, भूक्षरण बढ़ता है, पहाड़ी स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती है, भूमिगत जल का स्तर नीचे चला जाता है और जैव विविधता में कमी आती है । पूरा विश्व इस चिंता से अवगत है। अत: पूरी दुनिया में पिछले ४० वर्षोंा से २१ मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है । इसका मुख्य उद्देश्य जनता को वनों के महत्व से अवगत कराना है । यह विचार युरोपियन कान्फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चर की २३ वीं आम सभा (१९७१) में आया था । तभी से इसे पूरी दुनिया मंे मनाया जा रहा है । ज़रा इस पर विचार करें कि विश्व वानिकी दिवस के उपलक्ष्य में आम जन क्या कर सकते हैं । वनों को बचाने के लिए इन बातों पर आज से ही अमल करना शुरू कर दें अपने आसपास फूलों वाले पेड़-पौधे लगाएं । इससे आपका पर्यावरण सुंदर लगेगा और साफ भी रहेगा । नीम,पीपल, बरगद, अमलतास जैसे पेड़ लगाएं । ये आपके घर के आसपास ठंडक बनाए रखेंगे । इससे आप कम बिजी खर्च करेंगे । गर्मियों में घर के आसपास लगे पेड़ पौधों को पानी देकर बचाने का प्रयास करें । कागज़के दोनों ओर लिखें । इससे आप ५० प्रतिशत कागज़बचा सकते है । कागज़ बचाएंगे तो भी वन बचेगा । रीसायकल्ड कागज से बने बधाई कार्ड, लिफाफों आदि का प्रयोग करें । लिफाफों को बार-बार उपयोग करें । स्कूल कॉलेज में इस दिन जंगलों के बारे में अधिक जाएं । उनके ताने-बाने को समझें, पेड़-पौधों एंव जंतुआें के नाम पता करें । उनके उपयोग के बारे में आदिवासियों या अन्य जानकारों से पताकरें । संरक्षण की पहली शर्त है जीवों से जान पहचान । विश्व वानिकी दिवस पर यह प्रण लें कि लकड़ी से बने फर्नीचर नहीं खरीदेंगे । आजकल स्टील एवं प्लास्टिक के चौखट मिलते हैं इनके उपयोग को बढ़ावा दें, इससे जंगलों पर दबाव कम होगा । विश्व वानिकी दिवस २१ मार्च के दूसरे ही दिन २२ मार्च को विश्व जल दिवस भी मनाया जाता है । पीने के पानी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है । इस वर्ष देश के कई हिस्सों में पानी बहुत कम गिरा है जिससे पानी की भयावह समस्या पैदा हो गई है । पानी को लेकर लड़ाई झगड़ा आम हो चला है । इस समस्या से निपटने के लिए पानी के स्रोतों को बचाकर और उपलब्ध पानी का उचित प्रबंधन ही एकमात्र उपाय है । इस मामले में भी आप काफी कुछ कर सकतेहैं । जैसे स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, में पानी बचाने का अभियान चलाएं, सफाई का काम पानी से नहीं झाडू से करें , नहाते एवं ब्रश करते समय नल को खुला न छोड़े मोटे तौलिए की बजाय पतले तौलिए का उपयोग करें, अपने वाहन फव्वारें की बजाय गीले कपड़े से साफ करें, धोने का पानी अपने बगीचे में पेड़-पौधों को दें । इससे आपके पौधे गर्मियों में भी बचे रहेंगे और साफ पानी की बचत भी होगी । इसके अलावा अपने घरों में वर्षा जल संग्रहण तकनीक को अपनाएं । इससे भूमिगत जल स्तर बढ़ता है । अपने मुसीबत के कुएं, बावड़ियाँ, तालाबों को गंदा नाकरें । मुसीबत में ये परंपरागत जल स्रोत ही काम आते हैं, इनकी उपेक्षा न करें । याद रखें जल है तो कल है और वन है तो जल है । दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं, जीवन का आधार हैं । एक बार फिर जंगल के उपकारों को याद करके वन रक्षा का संकल्प करें । ***हर साल दूषित सीरिंज के इस्तेमाल से १३ लाख मौत देश में इंजेक्शन की सुई के दौबारा इस्तेमाल से विश्व में हर साल करीब १३ लाख मौतें होती हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निर्देशों के मुताबिक सीरिंज जो एक बार इस्तेमाल के बाद नष्ट कर देना चाहिए । वह भारत में नई पैकिंग में दोबारा बाजार में आ जाती है । इससे होने वाला संक्रमण घातक होता है और व्यक्ति अनजाने में काल के गाल में समा जाता है । कई लोग अनजाने मेंं एचआईवी इन्फेक्शन और हेपेटाईटिस की चपेट में आ रहे हैं । यह तथ्य पिछले साल ब्रिटेन की सेफपाइंट संस्था द्वारा भारत में चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रम में सामने आए हैं । विश्व की नामी सीरिंज कंपनियां इस बात से परिचित हैं कि उनके द्वारा बनाई गई सीरिंज बाजार में दोबारा इस्तेमाल के लिए सहज ढंग से आ जाती है ।

कोई टिप्पणी नहीं: