शुक्रवार, 15 मई 2009

७ पर्यावरण परिक्रमा

पर्यावरण प्रभाव आकलन में संशोधन का विरोध
दुनियाभर के ५०० से अधिक पर्यावरणविदों, जनआंदोलनों, सामाजिक कार्यकर्ताआें, सामाजिक नेटवर्क, गैर सरकारी संगठन, भारत एवं विश्व भर के प्रबुद्ध नागरिकों ने भारत सरकार से अपील की है कि वह पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना - २ ००६ में प्रस्तावित संशोधन से संबंधित सारी कार्रवाई पर रोक लगाए । प्रधानमंत्री जिनके पास पर्यावरण व वन मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी है को लिखे पत्र में कहा गय है कि इन संशोधनों के लिए चुना गया समय और प्रस्तावित संशोधनों का मसौदा अनेक औद्योगिक इकाईयों को सहयोग पहुंचाने वाला प्रतीत होता है यह शोचनीय है कि इसके अनेक लाभार्थी यू.पी.ए. को बड़ी मात्रा में चुनावी चंदा भी देते हैं । ऐसे में चुनावों के समय इस तरक की कार्रवाई शंका पैदा करती है । संशोधनों का मसौदा १९ जनवरी ०९ को अधिसूचित किया गया और इस पर ६० दिनों के भीतर सिर्फ मंत्रालय की वेबसाईट पर ही जवाब देना है । इन संशोधनों से प्रदूषण फैलाने वाली अनेक औद्योगिक इकाईयों जैसे टाटा, महिन्द्रा, टोयोटा व अन्य विशाल वाहन कंपनियां लाभान्वित होंगीं । बैंगलोर स्थित पर्यावरण समर्थन समूह और केम्पेन फोर इन्वायरमेंटल जस्टिस की भारत शाखा ने इसे भारतीय संविधान की मूल भावना के विरूद्ध बताया है । साथ ही इसका विरोध करने की अपील की है । चुनाव में भोपाल गैस त्रासदी को भूल गए भोपाल गैस त्रासदी की यादें भले ही उसके शिकार बनें लोगों के परिवारों की नींद उड़ा देने वाली हो , मगर जनता का हमदर्द होने का दावा करने वाले नेताआें के लिए वह कोई अहमियत नहंी रखती है । यही वजह है कि अभी सम्पन्न लोकसभा चुनाव के घोषणापत्रों से लेकर प्रचार अभियानों में गैस त्रासदी का कहीं जिक्र नहीं था । इस त्रासदी को २४ बरस बीत चुके हैं ।दो और तीन दिसम्बर १९८४ की रात को याद करते ही लोग कांप उठते हैं। त्रासदी के पहले सप्तह में जहां आठ हजार से ज्यादा लोगों ने दम तोड़ा था , वहीं दीर्घकालिक प्रभाव सहित मौतों का कुल आंकड़ा अब १५ हजार को पार कर चुका है । त्रासदी में कुल प्रभावितों की संख्या ५ लाख ७४ हजार के करीब है । बीते २४ वर्षोंा में इन प्रभावितों की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है । लेकिन राजनीतिक दल और उनसे जुड़े नेता इसे पूरी तरह भूला चुके हैं । गैस त्रासदी के शिकार बने लोगों की बात करें तो उन्हें न तो अब तक समुचित मुआवजा मिला है और न ही वे शोध आधारित इलाज का लाभ पा सके हैं । इतना हीनहीं पीड़ितों को कार्यक्षमता घटने के अनुरूप रोजगर के अवसर भी उपलब्ध कराने की दिशा में पहल नहीं हुईहै । यूनियन कार्बाइड कारखाने के ईद गिर्द बसी बस्तियों के लोगों को पीने का स्वच्छ पानी तक मयस्सर नहीं है । भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के मुखिया और गैस पीड़ितों की लड़ाई के अगुआ अब्दुल जब्बार तमाम राजनीतिक दलों तथा सरकारों के रवैये से नाउम्मीद हो चुके हैं। वे कहते हैं कि वक्त गुजरने के साथ ही नेताआें ने गैस पीड़ितों के दर्द को भुला दिया है । यही वजह है कि पार्टियों के घोषणापत्रों से लेकर नेताआें के भाषणों तक में गैस पीड़ितों की समस्याआें को जगह नहीं मिली । कांग्रेस राज्य इकाई के प्रवक्ता मानक अग्रवाल मानते हैं कि वक्त गुजरने के साथ गैस पीड़ितों की समस्याआें पर तमाम दलों का ध्यान पहले की तुलना में कम हो चला है । भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता उमाशंकर गुप्त गैस पीड़ितों को उनका हक न मिल पाने के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं । उनका कहना है कि एक ओर प्रदेश सरकार गैस पीड़ितों को सुविधाएं दिलाने के लिए प्रयासरत हैं वहंी केन्द्र से आवश्यक सहयोग नहंी मिल पा रहा है । इको फ्रेंडली लेपटॉप बनेगा ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अब लेपटॉप को भी अब इको फ्रेंडली बनाने का प्रयास किया जा रहा है । इसी कोशिश के परिणामस्वरूप एक इको फ्रेंडली लेपटॉप बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता भी हाथ लगी है । हालंाकि इस उत्पाद का अभी प्रोटोटाइप ही बना है और कंपनी के इंजीनियर अब यह पता लगा रहे हैं कि क्या बांस की बॉडी लेपटॉप के लिए उपयुक्त रहती है या नहीं । निजी कम्प्यूटींग की शुरूआत ७० के दशक में शुरू हुई थी जब एपल के सर्वेसर्वा स्टीव जॉब्स और उनके मित्र स्टीव वो नैल ने एपल १ नामक निजी कम्प्यूटर बनाया था । उस कम्प्यूटर में एक सर्किट बोर्ड था जिसे एक लकड़ी के बक्से में लगाया गया था ।आज दुनिया काफी आगे निकल गई है और निजी कम्प्यूटिंग लेपटॉप से होते हुए पामटोप और अब मोबाईल कम्प्यूटिंग तक आ गई है । बहरहाल इस समय भारत में लेपटॉप की बिक्री जोरों पर है और कंपनियां ग्राहकों को रिझाने के लिए तरह- तरह के नए - नए मॉडल बाजार में उतार रही हैं । ताइवान की आसुस्टेक कम्प्यूटर ने बीते हुए जमाने को फिर से याद करते हुए इको फ्रेंडली बम्बू लेपटॉप का एक सीमित स्टॉक जारी किया है । बम्बू यानी कि बांस जाहिर तौर पर बहुत ही लचीला होता है और साथ ही लम्बे समय तक खराब भी नहीं होता है तथा इसमें प्लास्टिक में पाए जाने वाले खतरनाक टोक्सीन भी नहीं होते हैं जिससे कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचे । इस इको फ्रेंडली लेपटॉप का अधिकतर हिस्सा बांस की सिल्लियों को जोड़कर बनाया गया है । कंपनी का दावा है कि यह लेपटॉप दुनिया का सबसे अधिक इको फ्रैंडली उत्पाद है । हालांकि वह यह भी मानती है कि बांस की सिल्लियों को जोड़ने के लिए तथा उनपर लेकिनेशन करने के लिए इस्तेमाल किए गए गोंद में सीमित मात्रा में टॉक्सिन जरूर है । हालांकि यह उत्पाद का अभी प्रोटोटाईप ही बना है और कंपनी के डिजाइनर अब यह पता लगा रहे हैं कि क्या बांस की बॉडी लेपटॉप के लिए उपयुक्त रहती है या नहंी । लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए नए पदार्थोंा का उपयोग करने में आसुस के अलावा अन्य कई कंपनियां भी आगे आ रही है । एपल का दावा है कि वह अगले साल के अंत तक अपने सभी उत्पादों में पीवीसी और बी.एफ.आर. का उपयोग बंद कर देगी । इसी प्रकार डेल और लेनोवो भी पी.वी.सी. के उपयोग पर पाबंदी लाने की वकालत करती है । गौरतलब है कि वर्तमान समय में लेपटॉप का खाका जिस प्लास्टिक और पीवीसी की कोटिंग से तैयार होता है । उनमें पाए जाने वाले टोक्सीन से पर्यावरण को बहुत हानिक पहुँचती है । आसुस और अन्य उत्पादक यदि इस मामले में थोड़ी बहुत भी जागरूकता बरतते है तो वह दुनिया के पर्यावरण संतुलन पर काफी सकारात्मक असर डाल सकती है । सात जिलों में होगी कच्च्े तेल की खोज मध्यप्रदेश, हरियाण में कच्च्े तेल व प्राकृतिक गैस के भंडार होने के अनुमान पर पेट्रोलियम मंत्रालय की कवायद तेज हो गई है । म.प्र. के तीन और हरियाणा के चार जिलों के कुल ६,१४७ वर्ग किमी क्षेत्र में जल्द ही कच्च्े तेल के भंडार की खोज की जाएगी । पेट्रोलियम मंत्रालय के सचिव आर.एम. पांडे ने यह जानकारी दी । श्री पांडे ने बताया कि इन क्षेत्रों का चयन न्यू एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (नेल्प) के आठवें चरण के लिए किया गया है । इस चरण में करीब ७० ब्लॉकों की बोली की प्रक्रिया शुरू की जा रही है । इसके तहत मध्यप्रदेश के तीन जिलों-पन्ना, दमोह और छतरपुर के ४,२१७ वर्ग किमी के क्षेत्र तथा हरियाणा के चार जिलों-पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर ओर कुरूक्षेत्र का १,९३० वर्ग किमी का क्षेत्र तेल की खोज करने वाली कंपनियों के दियाजाएगा । मप्र में तेल व गैस मिलने से राज्य की आय में इजाफा होगा । नेल्प के तहत होने वाली खोज के तहत राज्य में उत्पादित तेल व गैस की करीब पचास फीसदी रायल्टी पर राज्य का अधिकार होता है । खनन संबंधित गतिधियों के शुरू होने से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे । अगर पंचकूला से लेकर कुरूक्षेत्र में तेल व प्राकृतिक गैस की खोज में सफलता मिलती है तो हरियाणा को सालाना अरबों रूपए की रॉयल्टी मिलेगी । राज्य में तेल की खोज शुरू होने के साथ ही आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ जाएंगी और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे । बंजर जमीन पर लगेंगे पौधे म.प्र. में जल्द ही बंजर धरती पर भी हरे-भरे पौधे लहलहाते नजर आएँगे । बंजर जमीन पर हरियाली लाने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मलाजखंड में किए गए एक प्रयोग के अच्छे नतीजे मिले हैं । यहाँ तांबे की खानों से निकले अनुपजाऊ रेतीले अपशिष्ट पर एक कवक (फंजाई) के माध्यम से पौधे उगाए गए हैं । बोर्ड से प्राप्त् जानकारी के अनुसार इस प्रोजेक्ट के तहत मलाजखंड में नवंबर २००८ में पौधे रोपे गए थे, जिनमें से ८० फीसदी अभी तक जीवित हैं । इससे साबित हो गया है कि एक कवक की मदद से बंजर जमीन को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। नॉर्दर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड की मलाजखंड खानों के आसपास मीलों क्षेत्र में अनुपजाऊ रेत (ओबीडी) बिछी हुई है । इसमें कोई भी पोषक तत्व न होने के कारण कुछ भी नहीं उगता है । बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो.एसपी गौतम की पहल पर सीपीसीबी के सहयोग से बंजर जमीन को हरा-भरा प्रोजेक्ट शुरू किया गया था । इस प्रोजेक्ट के तहत मलाजखड के ५०० हैक्टेयर के रेतीले इलाके में से १ हैक्टेयर का चुनाव पौधारोपण के लिए किया गया था । यहाँ पर अरबस्कुलर माइकोराइजा नामक कवक को ग ों में डालकर उसके ऊ पर पेड़-पौधे लगाए थे । प्रोजेक्ट के निरीक्षण में नवंबर २००८ में यहाँ रोपे गए शीशम, नीम, जेट्रोफा, बाँस, आँवला, जामुन आदि के पौधों में से ८० फीसद जीवित पाए गए हैं । ***

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