मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

८ पर्यावरण परिक्रमा

क्या अगली सदी तक लुप्त् हो जाएंगी नदियां
पूरी दुनिया में बदलते पर्यावरण से चिंतित पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताआें का मानना है कि हिमालयी ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में हिमालय से निकलने वाली नदियों के जल प्रवाह में न केवल जबरदस्त कमी आएगी, बल्कि अगली सदी तक नदियां लुप्त् हो जाएंगी। अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के वैज्ञानिक तथा ग्लेशियर विशेषज्ञ डॉ. एवी कुलकर्णी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के एक दल ने करीब ७ वर्षोंा तक हिमालय के विभिन्न ग्लेशियरों की स्थिति का अध्ययन करने के बाद गत जून में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी है । उत्तराखंड के माणा गांव के निवासी ने बताया कि उन्होंने १५ वर्ष की उम्र में पहली बार सतोपंथ का ग्लेशियर देखा था। उस समय सतोपंथ झील एकदम ऊपर थी और चक्रतीर्थ से मात्र आधे घंटे में ही झील के मुहाने पर पहंुचा जा सकता था, लेकिन पिछले साल वे अपने परिवार के साथ जब सतोपंथ गए तो उन्होंने देखा कि झील लगभग ५० मीटर नीचे चली गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले ४ दशकों में हिमालयी राज्यों के ग्लेशियरों में जबरदस्त कमी आई है । रिपोर्ट के अनुसार केवल उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की १० प्रमुख नदियों में जल आपूर्ति के प्रमुख स्त्रोत ग्लेशियरों का क्षेत्रफल वर्ष १९६२ से २००४ के बीच करीब १६ फीसदी कम हुआ है । उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के पास से निकलने वाली गंगा की प्रमुख सहायक नदी अलकनंदा के आसपास के १२६ ग्लेशियरों का अध्ययन करने के बाद यह तथ्य सामने आया है कि ग्लेशियरोंके क्षेत्रफल में गिरावट आई है । श्री कुलकर्णी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ४ दशक पहले अलकनंदा के पास के ग्लेशियरों का कुल रकबा ७६४ वर्ग किलोमीटर था, जो अब घटकर ४३८ वर्ग किलोमीटर रह गया है । इसी तरह गंगा की प्रमुख धारा भागीरथी के पास के १८७ ग्लेशियरों का १२१८ वर्ग किलोमीटर का दायरा अब घटकर १०७४ वर्ग किलोमीटर हो गया है। पिछले ४० वर्षोंा में भागीरथी के १४४ वर्ग किलोमीटर के ग्लेशियर पिघल गए हैं। उत्तराखंड की धौली और गौरी गंगा नदियों की स्थिति भी खराब है ।
बूढ़े बरगद से डरता है बुढ़ापा
मनुष्य की चार अवस्थाआें में बुढ़ापा सबसे नापसंद अवस्था है पर यह प्रकृति की वह हकीकत है जिसे स्वीकार करना ही पड़ता है । बहरहाल बुढ़ापे की ओर तेजी से बढ़ रहे लोगों के लिए यह खबर काफी राहत देने वाली होगी । अपने कई गुणों के कारण आयुर्वेद चिकित्सा और भारतीय जीवन पद्धत्ति का चहेता रहा बरगद अब बुढ़ापा भी रोकने में कामगार साबित होगा । इसकी हवाई जड़ों में एन्टी आक्सीडेन्ट की उपलब्धता सर्वाधिक पायी गयी है । इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकेगा । कभी घर के बूढ़े बुजुर्गोंा की तरह ग्रामीण भारतीय समाज का अभिन्न व सम्मानित अंग रहे बरगद पर इलाहबाद विश्वविद्यालय में चल रहे शोध से छन कर ये बाते सामने आयी हैं। आयुर्वेदिक औषधि की खान माने जाने वाले बरगद पर अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी लट्टू है । इलाहबाद विश्वविद्यालय के जैव रसायन विभाग के अध्यक्ष प्रो. बेचेन शर्मा के अनुसार यहां किये जा रहे पशुआें पर प्रयोग सल रहे तो बरगद मनुष्य में बुढ़ापा या एजिंग रोकने का सर्वसुलभ व सस्ता उपाय साबित होगा। उन्होंने बताया कि शरीर के अंदर विभिन्न मार्गोंा से स्वतंत्र मूलक या फ्री रैडिकल्स पहंुचते रहते हैं । यह विषाक्त फ्री रैडिकल्स विभिन्न बीमारियों व असामान्य शारीरिक स्थितियों के कारक होते हैं । इसमें शरीर मेंे झुर्रियां पड़ना, नींद न आना, बालों का जल्दी झड़ना या सफेद पड़ जाना, पसीना आना, सहन शक्ति की कमी, बिन कारण उत्तेजित हो जाना, निर्णय लेने की अक्षमता, संवेदनशीलता का कम हो जाना जैसी स्थितियां शामिल हैं । शरीर के उम्र दराज दिखने के पीछे भी इन्हीं फ्री रैडिकल्स को जवाबदार माना जाता है । प्रो. शर्मा के अनुसार शरीर की कोशिकाएं एन्टी आक्सीडेन्ट के माध्मय से इन फ्री रैडिकल्स का प्रबंधन करती हैं। शरीर के कई एन्जाइम भी इन फ्री रैडिकल्स को बदलते रहते हैं। शरीर में एन्टी आक्सीडेन्ट की मात्रा को बढ़ा कर फ्री रैडिकल्स पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानम, बाल
मुकुन्दम सिरसा नमामि...।
यह श्लोक बरगद की दीर्घ जीविता व महत्व को बताता है । प्रलय काल में भी यह नष्ट नहीं होता व भगवान विष्णु बाल रूप में सभी देवताआें के साथ इस पर निवास करते हैं । पंडित राम नरेश त्रिपाठी के अनुसार वट का आयुर्वेद में खासा महत्व है । इसकी जड़े छाल, फल, पत्ते, दूध सभी औषधि हैं । चर्म रोग व बहुमूत्र में छाल औषधि के रूप में इस्तेमाल होता है । इसका फलों का प्रयोग मधुमेह व बहुमूत्र जैसे रोगों में किया जाता है । वट का दूध कटे छिले व घाव में काफी असरकारक है ।
पवन ऊर्जा उत्पादन ३३ हजार मेगावाट हो जायेगा
देश में आगामी १०-१२ वर्षोंा में गैर परंपरागत स्त्रोतों से बिजली उत्पादन में तेज वृद्धि होने की उम्मीद है । वर्ष २०२२ तक पवन ऊर्जा उत्पादन वर्तमान ११ हजार मेगावाट से तीन गुणा बढ़कर ३३ हजार मेगावाट तक पहुंच जाने की उम्मीद है । नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्री डा. फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि सरकार गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोेतों को बढ़ावा दे रही है और आने वाले १०-१२ वर्षोंा में इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अगले तीन वर्ष में ही सौर ऊर्जा उत्पादन जो कि इस समय नाममात्र का ही है बढ़कर १३०० मेगावाट तक पहुंच जायेगा । डा. अब्दुल्ला ने कहा कि पवन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में निजी एवं सार्वजनिक भागीदारी प्रयासों के जरिये इसका उत्पादन २०२२ तक तीन गुणा बढ़कर ३३००० मेगावाट तक पहुंच जायेगा। मंत्रालय के पास निजी क्षेत्र से भागीदारी के अनेक प्रस्ताव आ रहे हैं, इनका परीक्षण किया जा रहा है और जल्द ही इन्हें मंजूरी दे दी जायेगी । इस क्षेत्र में सरकारी भागीदारी ज्यादा नहीं होगी लेकिन निजी क्षेत्र देश के दूरदराज इलाकों में पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिये काफी रूचि ले रहा है । उम्मीद है कि १३ वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक इस क्षेत्र में काफी प्रति देखने को मिलेगी । सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मंत्रालय ने अपने प्रयास तेज किये हैं । उन्होंने प्रधानमंत्री डा. मनमोहनसिंह को वचन दिया है इसलिये तीन वर्ष में ही सौर ऊर्जा उत्पादन भी बढ़कर १३०० मेगावाट तक पहुंच जायेगा।
बायोनिक आंखों से सबकुछ दिखने लगा
बायोनिक आंखो की मदद से ३० साल बाद दोबारा देखने में सक्षम हुए एक नेत्रहीन व्यक्ति ने लाखों नेत्रहीन लोगों के लिए उम्मीद की एक नई किरण जगा दी है । पीटर लेन (५१) ने ब्रिटेन के एक अस्पताल में बायोेनिक आंखे लगवाई और अपनी दृष्टि खोने के ३० साल बाद वह फिर से आंशिक रूप से देखने में सक्षम हो गया । पीटर उन ३२ लोगों में शामिल था, जो मैनचेस्टर रॉयल आई हास्पिटल में इस साल के शुरूआत में बायोनिक आंख एक अंतर्राष्ट्रीय परीक्षण में शामिल हुए थे। वह एक आनुवांशिक रोग के कारण अपनी दृष्टि खो चुका था, लेकिन इस प्रतिरोपण की मदद से अब वह साधारण शब्दों को पढ़ सकता है । डेली मेल मेें प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक बायोनिक आंख प्रकाश के श्रंृखलाबद्ध बिंदुआें की मदद से उसे किसी वस्तु की बाहरी रूपेरखा देखने में भी सहायता करता है । पीटर ने बताया कि किसी भी चीज को देखने में सक्षम नहीं होने के बाद अक्षरों और शब्दों को एक खास स्क्रीन पर देखना बहुत ही आश्चर्यजनक अनुभव है । मैं डैड, मैट, कैट पढ़ सकता हूं । पीटर ने बताया कि मैं इस वक्त सिर्फ छोटे शब्दों को ही पढ़ रहा हूं और चिकित्सक मुझसे छोटे अक्षर पढ़वाने की कोशिश कर रहे हैं । यह तो शुरूआत भर है और उन्होंने कहा है कि वे मुझे एक स्क्रीनदेंगे ताकि मैं घर में भी पढ़ सकूंगा। पीटर ने बताया कि अब वह बाहर निकलने पर अधिक स्वतंत्र और मजबूत महसूस करता है । नेत्ररोग विशेषज्ञ पाउलों स्टांजा ने बताया कि रोगियों की हालत में सुधार के बारे मेंे हमने जितना सोचा था, उससे तेजी से सुधार हो रहा है । यह निश्चित तौर पर रोगियों और वैज्ञानिक समुदाय, दोनों को बहुत अधिक प्रोत्साहित करने वाला है, हालांकि इस दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है ।
क्यों खतरनाक है कार्बन डाइऑक्साईड
क्या ऑक्सीजन के बिना जीवन की कल्पना की जा सकती है ? बिल्कुल नहीं । लेकिन कार्बन डाइ ऑक्साइड में सांस लेना जानलेवा क्यों हो सकता है, इसका जवाब शायद कम ही लोगों के पास हो । लोवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताआें ने चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया कि कार्बन डाई ऑक्साईड मस्तिष्क में अम्ल पैदा करता है जो प्राणघातक हो जाता है । विश्वविद्यालय के साइकिएट्री एण्ड न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर जॉन वेमी ने बताया कि सांस के जरिए सीओटू फेंफड़ों से होकर मस्तिष्क तक पहुंचता है । इससे मस्तिष्क में अम्ल पैदा होता है जो व्यक्ति भय, चिंता और बेचैनी बढ़ाता है । उन्होंने कहा कि सीओटू की मात्रा यदि ज्यादा हो जाएतो व्यक्ति जान से हाथ धो बैठता है । जॅान वेमी ने बताया कि अध्ययन के इन निष्कर्षोंा से संत्रास और चिंता जैसी विकृति का इलाज विकसित करना संभव है। वेमी ने बताया कि अध्ययन के दौरान उनकी टीम ने मस्तिष्क में मौजूद ऐसे प्रोटीन का पता लगाया जेा कि किसी व्यक्ति में भय,चिंता हड़बड़ी के लिए जिम्मेदार होता है । ***

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