मंगलवार, 26 जुलाई 2011

कृषि जगत

क्या शीत लहर प्राकृतिक आपदा है ?
सुश्री ज्योतिका सूद
पिछले वर्षो में अनेक अनुशंसाआें के बावजूद शीतलहर को प्राकृतिक आपदाआें की श्रेणी में न डालना भारतीय शासन व्यवस्था का कृषि के प्रति दुराग्र्रह ही दिखाता है । इस वर्ष मध्यप्रदेश में पाला पड़ने से हजारों कराे़ड रूपए की फसलें नष्ट हो गई और लाखों किसान बर्बादी के कगार पहुंच गए हैं । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पहल पर पुन: उपरोक्त मसले पर बहस प्रारंभ हुई है ।
जलवायु के बदलते स्वरूप से सचेत हुई केन्द्र सरकार अब शीतलहर या पाला पड़ने को आपदा सहायता कोष में शामिल कर सकती है । वर्तमान में राष्ट्रीय आपदा नियंत्रण कोष एवं राज्य आपदा नियंत्रण कोष के अन्तर्गत तूफान, सूखा, भूंकप, सुनामी या कीटों के प्रकोप जैसी विपदाआें से ही पीड़ितों को मुआवजा मिल पाता
है । गृह मंत्रालय के एक सूत्र का
कहना है कि वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी
की अध्यक्षता वाला मंत्री समूह शीतलहर या पाला पड़ने को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर इसे राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय आपदा राहत कोषों में सम्मिलित करने पर चर्चा कर रहा है । गृह मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि इस हेतु संसद में एक संशोधन लाना होगा । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के अनुरोध के पश्चात यह विमर्श प्रारंभ हुआ है । इस वर्ष जनवरी में पाले के कारण मध्यप्रदेश पर बहुत ही विपरीत प्रभाव पड़ा था । केन्द्रीय कृषि मंत्रालय एवं योजना आयोग दोनों ने ही इस पहल का स्वागत किया है ।
मध्यप्रदेश में इस वर्ष अत्यधिक ठंडे मौसम के कारण करीब ३६ लाख हेक्टेयर में रबी की फसलें जैसे अरहर, चना, मसूर, मटर, गेहूं और सब्जियों की फसल नष्ट हो गई थी । इससे ४६ जिलों के करीब ३५ लाख किसान ्रप्रभावित हुए थे । राज्य सरकार मई तक १३९५ करोड़ रूपए मुआवजे के रूप में बांट चुकी है । श्री चौहान का कहना है कि १३९५ कराे़ड़ रूपए इकट्ठा करने के लिए उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों से ३७७ करोड़ रूपए उधार लेने पड़े है । इस संबंध में प्रधानमंत्री और मंत्री समूह के सदस्यों से अनेक बार मुलाकातें भी की थीं । शीत लहर या पाले को सहायता कोष में शामिल करने के अलावा उन्होनें अतिरिक्त केन्द्रीय मदद के रूप में राज्य द्वारा खर्च किए गए १३९५ करोड़ रूपए की भरपाई की बात भी कही है ।
श्री चौहान का कहना है कि मंत्रियों का समूह सैद्धांतिक रूप से उपरोक्त दोनों बातों पर राजी हो गया है । साथ ही केन्द्र मध्यप्रदेश में पाले के कारण हुई हानि के आकलन के लिए वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के एक समूह के गठन पर भी सहमत हो गया है । भोपाल स्थित भारतीय मौसम विभाग के निदेशक डी.बी.दुबे के अनुसार पाला एक प्राकृतिक आपदा है और यह अधिकांशत: फसलों को ही प्रभावित करता है । उनका यह भी कहना है कि यह किसानों को सुरक्षात्मक उपाय करने का मौका भी नहीं देता । मध्यप्रदेश में अनेक स्थानों पर शीत लहर इस वर्ष इतनी प्रबल थी कि ठंड के पिछले रिकॉर्ड टूट गए । उदाहरण के लिए रीवा जिले में ५४ वर्ष का न्यूनतम तापमान -१.२ डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ । उमरिया में तापमान-०.२ डिग्री सेल्सियस हो गया जो कि पिछले ७४ वर्षो का न्यूनतम था । वहीं भोपाल में तापमान पिछले ३३ वर्षो में सबसे कम यानि २.३ डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था । इस स्थिति को समझाते हुए डी.बी.दुबे कहते है कि यह आपदा पश्चिमी विक्षोभ की वजह से उत्तर भारत, जिसमें मध्यप्रदेश राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश शामिल हैं, में चली शुष्क एवं ठंडी हवाआें का परिणाम थी । अफगानिस्तान और पाकिस्तान के निचले इलाकों में
तुफान के खिलाफ बने प्रवाह ने
भी इन तीन राज्यों में ठंंडी हवाआें में वृद्धि की । किसानों के पास ऐसा विकल्प भी मौजूद नहीं है कि वे इस तरह के मौसम से अपनी फसला का बीमा करवा सकें । क्योंकि राष्ट्रीय फसल बीमा योजना में शीत या गर्म हवा की लहरों के बीमा का प्रावधान ही नहीं है ।
पिछले पांच वर्षो से गर्म एवं ठंडी हवाआें अथवा पाले को आपदा राहत कोष में शामिल करने हेतु बहस चल रही है । राजस्थान और उत्तराखंड इन दोनों को प्राकृतिक आपदाआें की श्रेणी में शामिल करने का आग्रह कर रहे है । परन्तु १३ वें वित्त आयोग ने उसकी मांगों को रद्द कर दिया था । भारतीय कृषि अनुसंधान शोध परिषद ने भी अनुशंसा की थी शीत लहर और लू को प्राकृतिक विपदाआें में सम्मिलित कर लिया जाए । १३ वें वित्त आयोग द्वारा इस मसले के अध्ययन हेतु नियुक्त राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने २००९ में अपने अध्ययन प्रपत्र में कहा था कि आने वाले वर्षो में जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यन्त प्रतिकूल मौसम होने से मानव जीवन पर खतरा बढ़ जाएगा ।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इसलिए आयोग शीत लहर व गर्म हवा की लहर को आपदा की श्रेणी में शामिल करने पर विचार कर सकता है । बशर्तेेंा ये शीत व गर्म हवा की लहरें अपनी प्रकृति में असामान्य हों और वे पिछले २० वर्षो के दौरान दर्ज उच्च्तम रिकॉर्ड से अधिक हो । परन्तु आयोग ने इन अनुशंसाआें की अनदेखी कर दी ।

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