मंगलवार, 26 जुलाई 2011

जल संरक्षण

जामड़ : हर बंदू को सहजने का प्रयास
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
मध्यप्रदेश में जल संरक्षण और संर्वधन कार्यक्रम जन आंदोलन बने इस विचार को केन्द्र में रखकर पिछले वर्ष १० अप्रैल २०१० को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने रतलाम जिले में जामड़ नदी के पुनरूत्थान के कार्य से प्रादेशिक जलाभिषेक अभियान की शुरूआत की थी ।
रतलाम जिले के आदिवासी अंचल में बहने वाली यह प्रमुख नदी है जो अंचल के ग्रामीणजनों एवं पशुआें को पानी देने के साथ ही सिंचाई में भी सहायक होती है । इसी नदी का पानी धोलावड़ जलाशय में पहुंचता है जहां से रतलाम शहर को वर्षभर पेयजल उपलब्ध होता है । जामड़ नदी का पुनरूत्थान कार्य प्रारंभ किया गया है जिससे नदी में अधिक से अधिक समय तक पानी उपलब्ध रहे और जन, जंगल तथा कृषि को वर्षभर जल मिलता रहे । इस योजना में प्रथम वर्ष २०१०-११ में कुल ३०७
कार्यो पर शासकीय योजना से ११२.४० लाख रूपये एवं जनसहयोग से १५७.३५ लाख रूपये कुल २६९.७५ लाख रूपये व्यय किये गए । योजना के द्वितीय वर्ष २०११-१२ में ५८५ कार्यो पर ५२१.५० लाख रूपये खर्च किये जावेगें ।
जामड़ नदी माही की सहायक नदी है । इसका उद्गम रतलाम के निकटवर्ती नेपाल ग्राम की पहाड़ियों से हुआ है । नदी के उदगम स्थल के निकट ही स्थित ग्राम ईशरथुनी में नदी का प्रवाह एक सुन्दर झरने का निर्माण करता है । इस झरने के कारण ही इसे जामड़ नाम दिया गया है । भू-आकृतिक दृष्टि से देखे तो नदी का प्रवाह मूलत: बेसाल्ट आच्छादित चट्टानों के क्षेत्र से होता है जो जगह-जगह अपरदमित एवं दरारयुक्त है । इन चट्टानों की पागम्यता अल्प से मध्यम श्रेणी की है ।
इन दिनों जामड़ में बरसात के बाद अक्टूबर तक ही पानी उपलब्ध रहता है । सर्दियों में ही पानी का प्रवाह सुख जाने का कारण नदी में अंत: सतह स्त्राव (सब सरफेस फ्लो) का समाप्त् हो जाना है जो पहले नदी मेंउसके आसपास के क्षेत्रोंसे भू-जल रिसाव के रूप में वर्षभर उपलब्ध होता था । नदी के जलग्रहण क्षेत्र में भू-जल स्तर में १ से ३ मीटर की गिरावट दर्ज की गई है । जामड़ के सुखने से तटीय ग्रामों में विभिन्न प्रयोजन के लिए पानी की आपूर्ति की समस्या होने लगती है ।
जामड़ के पुनजीर्वित होने पर होने वाले लाभों में मुख्यत: भू-जल में २-३ मीटर की वृद्धि, लगभग १८०० हेक्टेयर अतिरिक्त फसल क्षेत्रमें वृद्धि, ग्रामीण पलायन में २०-३० प्रतिशत की कमी, नदी के तटीय क्षेत्र के १९ गांवों के ४६०३ परिवार तथा उनके २२००० पशुआें को पीने का पानी तथा निस्तार की सुविधा में बढ़ोत्तरी के साथ ही कुल कृषि उत्पादन में १० से २० प्रतिशत की बढ़ोत्री होगी ।
जामड़ २७ किलोमीटर बहने वाली नदी है जो ९ ग्राम पंचायतों के १९ ग्राम से होकर गुजरती है । नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में आने वाले ग्रामों की पानी की कुल आवश्यकता ३६५१.५४ हेक्टयर मीटर है । यहां वर्षा से उपलब्ध होने वाला पानी ८०२६ हेक्टेयर मीटर है । इस प्रकार ४३७४ हेक्टेयर मीटर सरप्लस वर्षा जल है जिसे रोका जा सकता है, इसी को ध्यान में रखकर योजना बनाई है ।
प्रदेश में अनेक शताब्दियों से बहती आई नदियों का पिछले कुछ दशकों में जमकर दोहन किया गया जिसके फलस्वरूप कई नदियों की जीवन धारा ही समाप्त् हो गई । अब उन्हे फिर से सदानीरा बनाने के प्रयास चल रहे है । अगले तीन साल में प्रदेश की ५५ नदियों को सदानीरा बनाया जाएगा । प्रदेश सरकार ने प्रदेश के सभी ५० जिलों की ५५ नदियों के पुनर्जीवन की योजना बनाई है । इनमें धार जिले में ०३, दतिया, जबलपुर व भोपाल जिले में २-२ नदियों तथा बाकी सब जिलों में एक-एक नदी का चयन किया गया है ।

देश को आजादी मिलने के समय मध्यप्रदेश में जमीन के अंदर भूजल १५ फीट की गहराई पर मिल जाता था । जनसंख्या बढ़ने तथा खेती और उद्योगों के विस्तार के कारण जमीन के पानी का अत्यधिक दोहन प्रारंभ हुआ । इससे तेजी से हालात बिगडे और कई नदियों का अस्तित्व संकट में आ गया । प्रदेश सरकार ने चयनित नदियों के १५-२० किलोमीटर के क्षेत्र में नदी उपचार कार्य करने का तय किया है । इनमें नदियों के जलागम क्षेत्र में कन्ट्ररट्रेंच, परकोलेशन टैंक, तालाब, मेढ़बंधान, मृदा बांध, स्टापडेम, पहाड़ पठार पर गली प्लग जैसी संरचना बनाई रही है , इसके अलावा पौधारोपण भी किया जा रहा है ।
मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है । प्रदेश की लगभग ७० प्रतिशत खेती वर्षा आधारित है । ऐसी स्थिति में असमय सूखा और मानसून की अनियमितता से न केवल फसल उत्पादन प्रभावित होती है, अपितु
प्रदेश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है । इन दिनों बढ़ते हुए जैविक दबाव के कारण अन्य प्रयोजनोंहेतु भी संग्रहित किये गये सतही जल और भूजल आधारित उपयोग वाले क्षेत्रों में भी मानसून की अनियमितता का परिणाम दिखने लगा है । आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रदेश में जल संरक्षण व संवर्धन और प्रबंधन का काम प्राथमिकता से हो । जल संरक्षण और प्रबंधन का दायित्व सरकार का तो है ही परन्तु समाज भी इस दायित्व का निर्वाह कर रहा है ।
प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए संवहनीय कृषि उत्पादन तथा अन्य प्रयोजनों हेतु पानी की समुचित उपलब्धता अति आवश्यक है । इस हेतु वर्ष २००६ से राज्य सरकार ने जल अभिषेक अभियान प्रारंभ किया था, जिसकी अवधारण सरकार और समाज की साझेदारी पर आधारित है । जल अभिषेक अभियान के अन्तर्गत विगत ४ वर्षो (वर्ष २००६-०७ से वर्ष २००९-१० तक) में रूपये ५२००
करोड़ की लागत से १० लाख से अधिक जल सरंक्षण व संग्रहण संरचनाआें का निर्माण हुआ है । प्रदेश में जल अभिषेक अभियान के सकारात्मक परिणाम मिल रहे है ।
विगत वर्ष २०१०-११ से जल अभिषेक अभियान के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए इसकी कार्यनीति में समाज के और अधिक जुड़ाव तथा स्थानीय भौगोलिक विशिष्टताआें के अनुरूप उपयुक्त जल संरक्षण कार्यो का चयन व सघन कार्यान्वयन को प्राथमिकता दी गई है । इस हेतु जरूरी कदम उठाये गये है ।
जल अभिषेक अभियान से समाज से और अधिक जुड़ाव के लिए ग्राम स्तर पर बुजुर्गो और युवाआें की पीढ़ी बीच पीढ़ी जल संवाद जैसी खुली चर्चायें आयोजित की गई । इन चर्चाआें में बुजुर्गो ने आज की पीढ़ी को कम होती पानी की उपलब्धता से अवगत कराकर जल संरक्षण की आवश्यकता के प्रति चेताया । जल संरक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर नेतृत्व विकसित

करने की कोशिशें भी सरकार कर
रही है । ग्रामों में पंचायतों ने जल संरक्षण कार्यो को प्राथमिकता दी है । ऐसे सरपंच जिन्होनें जल अभिषेक अभियान हेतु उल्लेखनीय जल संरक्षण एवं भूजल संवर्धन कार्य करवाकर खेती, पेयजल एवं अन्य प्रयोजनों के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की उनकों भागीरथ जल नायक कहा गया ।
नदिया भारतीय समाज की आस्था के केन्द्र के साथ-साथ स्थानीय समाज की आजीविका की पोषक भी रही है । नदियों के जलागम क्षेत्र में जल संरक्षण के कार्यो के निष्पादन से पानी के प्रवाह को पुनर्जीवित किया जा सकता है ।
इस अवधारण पर जल अभिषेक अभियान के अन्तर्गत प्रत्येक जिले में सूखी नदियों को पुनर्जीवित करने का कार्य हाथ में लिया गया है जिससे न केवल क्षेत्र की जैव विविधता संरक्षित होगी, अपितु इन नदियों पर आधारित आजीविका को सुकून भरा जीवन जीने का सबंल भी मिलेगा ।


जल अभिषेक अभियान के अन्तर्गत पूर्व से मौजूद जल संरक्षण संरचनाआें के सुधार और प्रबंधन में स्थानीय समुदाय की सहभागिता बढ़ाने के भी प्रयास किये जा रहे है ताकि पानी की इस परम्परागत धरोहर का सतत उपयोग किया जा सके ।
जल संरक्षण के कार्यो में स्थानीय स्तर पर स्वामित्व बोध जाग्रत करने के लिए निजी खेतों पर जल संरक्षण कार्यो के कार्यान्वयन के लिए सामर्थ्यवान कृषकों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है । ऐसे कृषक जिन्होनें स्वयं के संसाधनों से निजी खेतों पर जल संरक्षण का कार्य किया, वे भागीरथ कृषक कहे गये ।
इस अभियान को जन आंदोलन बनाने की दिशा में कुछ जरूरी बातों पर विचार करना होगा । ज्रलाभिषेक के मैदानी कार्यो में कई विभागों का सहयोग लिया जा रहा है जिसमें बेहत्तर समन्वय वाले जिलों में इसके परिणाम बेहत्तर आ रहे है । जल संरचनाआें का ज्यादातार कार्य मनरेगा के अन्तर्गत हो रहा है । मनरेगा की अपनी मर्यादा है इसलिए इन मर्यादाआें का पालन करते हुए काम करने की अपनी व्यवहारिक कठिनाईयां है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीणों के पास अपने अनुभव और विरासत में मिला ज्ञान है उसका इस कार्यक्रम में उपयोग होना चाहिए । इस महत्वाकांक्षी अभियान में युवा शक्ति का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा ह्ै । प्रदेश में राष्ट्रीय सेवा योजना, एन.सी.सी., भारत स्काउट गाईड और नेहरू युवा केन्द्र जैसे संगठन है जिनके पास बड़ी संख्या में संस्कारित युवा है इस युवा शक्ति का पूरा उपयोग इस अभियान में करना होगा ।
सन् १९५२ में स्वीेकृत प्रथम पंचवर्षीय योजन की रणनीति में यह बात मुख्य रूप से थी कि टिकाऊ एवं स्थाई लाभ तभी सुनिश्चित किये जा सकते है जब समुदाय की भरपुर भागीदारी हो । पानी की समस्या समाज के हर वर्ग को प्रभावित करती है । इस तथ्य के प्रकाश में समाज के सभी वर्गो का अपेक्षित सहयोग इस अभियान में लेना होगा ।

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