सोमवार, 14 मई 2012

स्वास्थ्य
अनैतिक ड्रग ट्रायल : अंतहीन यातना
अमिताभ पाण्डेय

    देशभर में अनैतिक ड्रग ट्रायल के मामले सामने आने से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इस संबंध में कानूनी प्रावधानों की कमी का फायदा दवा कंपनियां उठा रही हैं । जहां एक ओर अनेक सामाजिक संस्थाएं इस अनैतिकता के खिलाफ संघर्षरत हैं तो दूसरी और संलिप्त् चिकित्सक एवं अधिकारी भी अपने बचाव के लिए कमर कस चुके हैं । यह तो समय ही बताएगा कि अंतत: कौन सफल होता है ।
    अगर आप चिकित्सकों को भगवान और चिकित्सालयों को बीमारी से मुक्ति का साधन मानते है तो संभल जाईये । सभी चिकित्सक या अस्पताल ऐसे नहीं है जो ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हों । ऐसे चिकित्सक व चिकित्सालय जो पूंजीवाद की आंधी में भी निस्वार्थ सेवा भावना के साथ मरीजों के हित संरक्षण में लगे हैं, वे अभिनंदनीय है । यहां उन चिकित्सकों का जिक्र हो रहा है जो मरीजों को मात्र अपनी आय का साधन मानते हैं । बीमार मरीज जिनके लिए अलग-अलग बहानों से पैसा वसूलने की मशीन है । वसूली का यह सिलसिला मरीज को देखने के लिए प्रारंभ में मांगे जाने वाले मनमाने शुल्क से शुरू होता है और अनावश्यक जांच, महंगी दवाईयां के बाद भी खत्म नहीं होता । सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नजर नहीं आता ।
    आज चिकित्सा ऐसा क्षेत्र बन गया है जहां बड़े कारोबार, बड़े मुनाफे की गुंजाईश है । मनमाना पैसा देने के बाद भी इस बात की ग्यारन्टी नहीं है कि मरीज ठीक हो जाएगा ? सेवा के इस क्षेत्र में पर्याप्त् धन के अभाव में मरीज के उपचार को बंद कर बीमारी की हालत में ही उसे अस्पताल से बाहर निकालने के मामले देखे गए हैं । जिस अस्पताल को सरकार के नियम शिथिल करके ३० एकड़ से ज्यादा जमीन उपलब्ध कराई, मुख्यमंत्री सहायता कोष से गरीबों के उपचार के लिए धन पहुंचाने के इंतजाम किये, वहां भी गरीबों के उपचार में लापरवाही देखी गई है । समय पर पर्याप्त् आर्थिक सहायता न पहुंचने के ऐसे अस्पतालों में गंभीर बीमारियों के मरीज बेमौत मारे गये जिनको समय रहते बचाया जा सकता था । कभी तो ऐसा भी होता है कि गंभीर बीमारी के लिए मुख्यमंत्री सहायता कोष से स्वीकृत राशि उपचार पर आधी भी खर्च नहीं हो पाती और मरीज की मौत जो जाती है । ऐसे में बची राशि अस्पताल के प्रबंधक ही हड़प कर जाते हैं । न तो यह राशि मरीज के परिजनों को दी जाती है न ही वापस मुख्यमंत्री सहायता कोष में जमा कराई जाती है ।
    यदि गंभीरता व गहराई से निष्पक्ष जांच की जाए तो म.प्र. की राजधानी भोपाल में ही तालाब से लेकर मैदान एवं पहाड़ी तक पर बने अस्पतालों में ऐसे कई मामले देखे जा सकते हैं । महंगी फीस में पिछले वर्षो में कई स्वार्थी चिकित्सकों एवं अस्पताल प्रबंधकों ने एक और काला अध्याय ड्रग ट्रायल का जोड़ दिया है । अनेक अनपढ़, शिक्षित, गरीब व मजदूर मध्यप्रदेश के कुछ अस्पतालों व चिकित्सकों द्वारा की जा रही धोखाधड़ी को अब तक नहीं समझ पाए हैं ।
    दरअसल, ड्रग ट्रायल ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मरीजों पर नई दवाआें का प्रयोग कर उसका प्रभाव देखा जाता है । अमेरिका समेत कई देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए नए-नए शोध, आविष्कार करती रहती हैं । गहन शोध, परीक्षण के बाद बीमारियों के उपचार के लिए दवा बनाई जाती है जिसका प्रयोग सबसे पहले चूहे तथा अन्य जानवरों पर किया जाता है । उसका आकलन, विश्लेषण करने के बाद इंसान की बारी आती है । विकसित देशों ने ड्रग ट्रायल को लेकर सख्त कानून बनाए हैं । जबकि आदमी का पद, प्रभाव देखकर कानून को लचीला अथवा निष्प्रभावी बना दिये जाने की कल्पना भारत जैसे अति उदार देश में ही संभव है जहां प्राचीन काल से ही समरथ को नहीं दोष गुसाई का तर्क देकर सक्षम लोगों को गंभीर अपराधों के दोष से भी मुक्त करने के बहाने खोज लिये जाते   हैं ।
    ऐसे में नई दवाईयों के प्रभाव को देखने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनयिां गरीब, पिछड़े देशों की ओर चल देती    हैं । विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रबंधक विकासशील अथवा गरीब देशों के प्रभावशील नेताआें, नीति निर्धारकों एवं उच्च् पदों पर आसीन अधिकारियों को अपने पक्ष में कर लेते हैं । इसका नतीजा यह होता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन देशों के नागरिकों, मरीजों पर नई दवाआें का मनमाफिक प्रयोग करने की छूट मिल जाती है । मरीजों का पता ही नहीं चलता और डॉक्टर उनके शरीर पर नई-नई दवाआें के प्रयोग करते रहते हैं । इसे अनैतिक ड्रग ट्रायल कहा जाता है । मोटी रकम के लालच में डॉक्टर, अस्पतालों के प्रबंधक व सरकारी विभागों के कुछ अधिकारी भी ड्रग ट्रायल की प्रक्रिया में मरीज की जान से खिलवाड़ के लिए तैयार हो जाते हैं । नई दवा बनाने वाली जो कंपनी मरीजों पर अपनी दवा का प्रभाव या दुष्प्रभाव देखना चाहती है वह अस्पताल प्रबंधन व डॉक्टरों को लाखों रूपए, कीमती उपहारों के साथ ही मुफ्त विदेश यात्रा भी करवाती है ।
    भारत में ड्रग ट्रायल का काम अलग-अलग राज्यों में खूब चल रहा   है । निजी ही नहीं सरकारी अस्पताल और उनमें भर्ती मरीज भी ड्रग ट्रायल की प्रयोगशाला में बदल गये हैं । बीमार मरीजों के साथ विभिन्न प्रकार की नई-नई दवाआें का प्रयोग मध्यप्रदेश के कुछ सरकारी अस्पतालों में देखा गया । जिन मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया गया उनको इसकी जानकारी भी नहीं देकर उनके साथ धोखधड़ी की गई । ड्रग ट्रायल के शिकार हुए मरीज अब भी दोषी डॉक्टरों पर कड़ी कार्यवाही का इंतजार कर रहे  हैं ।
    ड्रग ट्रायल का बड़ा मामला पिछले वर्ष मध्यप्रदेश के इन्दौर शहर में सरकारी चिकित्सालय में देखने में  आया । वहां महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविघालय एवं मनोरोग अस्पताल में भर्ती दो दर्जन से अधिक मरीजों को ड्रग ट्रायल का शिकार बनाया गया । ये मरीज विभिन्न बीमारियों का उपचार करवाने अस्पताल में भर्ती हुए थे । उनकी बीमारियां भले ही ठीक नहीं हुई हो लेकिन उनके शरीर पर नई दवाआें का प्रयोग जरूर कर लिया गया।
    ड्रग ट्रायल का मामला उजागार हुआ तो पता चला कि कई सरकारी डॉक्टरों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मोटी रकम लेकर विदेश यात्रा कर, कीमती उपहार आदि सुविधाएं लेकर बीमार मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया है । इस मामले को जोरदार ढंग से उठाया     गया । इसके जवाब में राज्य सरकार ने स्वीकार किया कि मरीजों को बिना बताये ड्रग ट्रायल किया गया है । इस मामले की जांच के उपरान्त राज्य अपराध अनुसंधान ब्यूरो के पुलिस महानिरीक्षक ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि ड्रग ट्रायल में अनियमितताएं हुई हैं । मरीजों के साथ धोखाधड़ी की गई । इसके उपरान्त भी ड्रग ट्रायल के आरोपी चिकित्सकों को बचाने के लिए रोज नए-नए रास्ते, बहाने तलाश किये जा रहे है । ऐसे चिकित्सकों को संरक्षण देकर बचाने का प्रयास करने वालों में सत्तारूढ़ दल के नेता ही नहींबल्कि चिकित्सा विभाग के कुछ अधिकारी भी शामिल है । यहां यह बताना जरूरी होगा कि जिन मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया गया उनमें से अधिकांश गरीब थे ।
    उल्लेखनीय है कि इन्दौर में सरकारी व निजी अस्पतलों में ड्रग ट्रायल का मामला तो पत्रकारों, समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों की जागरूकता से उजागर हो गया, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार डॉक्टरों पर सरकार कब कार्यवाही करेगी । ऐसे डॉक्टरों को क्या चिकित्सा के पेशे से बेदखल किया जायेगा ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है । हाल ही में मुख्यमंत्री से ड्रग ट्रायल के दोषी चिकित्सकों को बर्खास्त करने हेतु निष्पक्ष एवं निर्भीक कार्यशैली वाले उच्च् अधिकारियों के साथ विधायकों की जांच कमेटी गठित करने, ड्रग ट्रायल के शिकार मरीजों को उचित मुआवजा देने की मांग की गई है । राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है । दूसरी ओर राज्य सरकार ने ड्रग ट्रायल को वैधानिक बनाने तथा इसको उचित ठहराने के प्रयास तेज कर दिये हैं । इससे यह जाहिर होता है कि अनैतिक ड्रग ट्रायल करने वालों की पहुंच सरकार में किस स्तर तक   हैं ।    

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