सोमवार, 14 मई 2012

मालवा की ओर बढ़ता रेगिस्तान
    पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी स्टेट ऑफ एन्वार्यमेंट रिपोर्ट के अनुसार १४.७ करोड़ हेक्टेयर यानि लगभग ४५ प्रतिशत भूमि जलभराव, अम्लीयता व कटाव आदि कारणों से बेकार हो गई है । भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा अपनी रिपोर्ट विजन - २०२० में दी गई जानकारी के अनुसार देश की कुल १५ करोड़ हेक्टेयर की उत्पादकता काफी घट गई  है । देश में ८४ लाख हेक्टेयर भूमि जल भराव व खारेपन की समस्या से ग्रस्त है । पिछले दो दशक में ही देश की कुल खेती योग्य भूमि में विभिन्न कारणों से २८ लाख हेक्टेयर की कमी आंकी गई  है । खनन, उद्योग, ऊर्जा, उत्पादन एवं शहरीकरण भी तेजी से भूमि लील रहे है ।
    अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के अध्ययन के अनुसार देश के कुल भौगोलिक भू-भाग का लगभग चौथाई हिस्सा रेगिस्तान में बदल गया है । राजस्थान का २१.७७, जम्मू कश्मीर का १२.७८ एवं गुजरात का १२.७२ फीसदी क्षेत्र रेगिस्तान में बदल गया है । राजस्थान का रेगिस्तान एक ओर दिल्ली तथा दूसरी ओर मध्यप्रदेश में मालवा की तरफ फैल रहा है । उपजाऊ भूमि किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी धरोहर होती है । कृषि हेतु पशुधन भी आवश्यक है परन्तु देश में इस पर भी संकट है । देश के लगभग छह लाख गांवो में बीस करोड़ गाय-बैल थे एवं आजादी के समय प्रति हजार की आबादी पर ७०० गाय-बैल         थे । अब यह संख्या घटकर २०० ही रह गई है । कृषि के लिए जल जरूरी है लेकिन वर्तमान में जल की उपलब्धता घटती जा रही है एवं वह प्रदूषित भी हो रहा है । वर्ष १९५१ में देश में प्रति व्यक्ति ५२३६ घनमीटर पानी उपलब्ध था, जो १९९१ में २२२७ हो गया और २०१३ तक १५५५ घनमीटर ही रह जाएगा । केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार देश की २० में से ८ नदी घाटी क्षेत्रों में जल की कमी है । देश में लगभग १५० नदियां न केवल प्रदूषित है अपितु वे गंदे नालों में बदल गई है । भूजल का उपयोग ११५ गुना बढ़ा है एवं देश के ३६० जिलों में भूजल स्तर में खतरनाक गिरावट आई है । लगभग आठ करोड़ ट्यूबवेल भूमिगत जल का ेउलीच कर खाली कर रहे है । हिमालय से निकलने वाली नदियों को ग्लेशियर्स से जल प्राप्त् होता है परन्तु भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा सेटेलाइट से किए गए अध्ययन के अनुसार हिमालय के लगभग ७५ फीसदी ग्लेशियर पिघल रहे है ।  सन्१९८५ से २००५ के मध्य ग्लेशियर औसतन ३.७५ किमी पीछे खिसक आए है । इसी तरह मैदानी भागों में ३३ फीसदी भूभाग पर वन होना चाहिए परन्तु है केवल २१  फीसदी पर ही । इसमें भी केवल दो फीसदी सघन वन, १० फीसदी मध्यम और ९ फीसदी छितरे वन है ।
डॉ. ओ.पी. जोशी, पर्यावरणविद्, इन्दौर (म.प्र.)

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