शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

कविता
ये पहाड़ियाँ
डॉ. सत्यानंद बड़ोनी

ये पहाड़ियाँ
ये वादियाँ
कर रही अठखेलियाँ
ये हिमतुंग श्रेणियां पसार रही हैं पादुका,
आशीर्वाद दे रहा
अरण्य
हिला के पातिका
स्वप्निल बुग्याल से
कुसुमित ये घाटियाँ
स्वच्छ, शीतल, मन्द बयार
वितरित करती स्वच्छता
निर्मल सुस्वादु जल
प्राण पखेरू सींचता,
अनिवर्चनीय देवभूमि
ऋषि मुनियों की तपस्थली
दृश्य निहार कर यहाँ
गगन पुलकित है जहाँ,
शांत, सौम्य यह धरा
सकल जगत की शिक्षिका
भटकें यदि हम कभी
हिमराज की हमें ताड़ना,
ऊँचाईयों का अहसास नित करा
हिमराज हमें पुकारता
देखें नीचे जब कभी
हिमराज हमें फटकारता
यहे पहाड़ियाँ ये वादियाँ

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