सोमवार, 12 अगस्त 2013

बहस
कोयला : खनिज या जैव संसाधन
ज्योतिका सूद

    मध्यप्रदेश की  एक  ग्रामीण जैव विविधता प्रबंधन समिति ने कोयले को जैव संसाधन बताते हुए रायल्टी की मांग की है । इसके बाद यह बहस तीव्र हो गई है कि कोयला अंतत: क्या है । इसका निर्धारण अपने आप में जटिल एवं विवादास्पद भी है  । फिलहाल उम्मीद है कि जुलाई के दूसरे हफ्ते में यह स्पष्ट हो सकता है कि  भारत में कोयला खनिज है या जैव संसाधन । 
    मध्यप्रदेश की एक जैव विविधता समिति द्वारा कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी से दो प्रतिशत रायल्टी की मांग को लेकर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल  ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय एवं कोल इंडिया लिमिटेड को नोटिस जारी किया है । छिंदवाड़ा जिले में इकलेहरा पंचायत  जहां गांव की जैव विविधता प्रबंधन समिति सक्रिय है, ने जैव विविधता अधिनियम के प्रावधानों के तहत इन खदानों तक पहुंच एवं लाभ के बटवारे की मांग की है ।
    जैव विविधता प्रबंधन समितियां ऐसी इकाई है जिन्हें जैव विविधता अधिनियम के अंतर्गत पंचायत, मंडल या नगर पालिका स्तर पर गि त किया जाता है । जैव विविधता अधिनियम के अनुसार जैव विविधता प्रबंधन समितियों को अधिकार है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में विद्यमान जैव संसाधनों के व्यापारिक इस्तेमाल करने वाले एवं इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले व्यक्ति  से लेवी के रूप में शुल्क वसूल सकती है ।
    इस वर्ष मई मे इकलेहरा पंचायत ने राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल पीठ  में याचिका दायर करते हुए कहा कि चूंकि कोयला जैव संसाधन है, अतएव वेस्टर्न कोल फील्ड अपने राजस्व के एक भाग की हिस्सेदारी पंचायत से करे । इकलेहरा के सरपंच और जैव विविधता प्रबंधन समिति के अध्यक्ष बैजनाथ चौरसिया ने बताया कि   वैस्टर्न कोल फील्ड ने वर्ष २०१२-१३ में १,४७० करोड़ रुपए का एवं गत वर्ष १,२३० करोड़ रुपए का राजस्व एकत्रित किया था ।
    याचिकाकर्ता का तर्क है कि जैव विविधता अधिनियम की धारा २ (सी) के अंतर्गत पेड पौधों, जानवरों एवं सूक्ष्म जीवों को जैविक संसाधन माना है  । चूंकि कोयला  प्राकृतिक रूप से पेड़ों द्वारा बनता है अत: यह जैव संसाधन है । जैव विविधता अधिनियम के अंतर्गत जैविक संसाधनों के व्यावसायिक इस्तेमाल में, दवाइयां, औद्योगिक इन्जाइम, खाद्य, सुगंध, सौंदर्य प्रसाधन, रासायनिक मिश्रण, जंगली जैतून, रंग, सत् एवं जीन के हस्तक्षेप से फसल एवं पशु धन में सुधार भी आते हैं ।  इसमें परंपरागत तरीके से बीज उत्पादन करना एवं कृषि की पारंपरिक पद्धतियां, मुर्गीपालन, डेरी व्यवसाय, पशुपालन या मधुमक्खी पालना नहीं आता ।
    अपनी याचिका में जैव विविधता प्रबंधन समिति ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी के गठन के १० वर्ष पश्चात और मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड के  गठन के  ७ वर्षों के पश्चात भी इन दोनों ने जैव विविधता के व्यापारिक इस्तेमाल और न ही लाभ में हिस्सेदारी को लेकर जैव विविधता प्रबंधन समितियों से कोई बातचीत भी की है । इससे भी बुरी बात यह है कि  राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी ने अभी तक लाभ में हिस्सेदारी का प्रतिशत तक तय नहीं किया है, जिससे कि जैव विविधता अधिनियम का उल्लंघन हो रहा है और इसे जैव विविधता प्रबंधन समितियों में असंतोष फैल रहा है । उन्होंने आरोप लगाया है कि कोयला कंपनियां खनन के  पूर्व जैव विविधता प्रबंधन समितियों से अनुमति भी नहीं लेती, जो कि कानूनन अनिवार्य है ।
    अप्रैल में मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने, राजस्व की हिस्सेदारी न करने को लेकर कोयला कंपनियों  को नोटिस दिया था, लेकिन  कंपनियों ने इसे नकारते हुए कहा कि कोयला एक खनिज है । बोर्ड के अनुसार कोयला एक जैव संसाधन है ।
    मई में दायर याचिका के मद्देनजर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वेस्टन कोल फील्ड, कोल इंडिया लि., राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय मध्यप्रदेश राज्य जैव
विविधता बोर्ड को नोटिस जारी करते हुए उनसे स्पष्टीकरण मांगा है कि कोयला जैव संसाधन है या खनिज ।  म.प्र. जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव रामगोपाल सोनी ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्हें नोटिस मिल गया है, लेकिन किसी और टिप्पणी से इंकार किया । वहीं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी का कर्तव्य है कि वह वर्गीकृत करे कि कौन सा पदार्थ जैव संसाधन है, लेकिन वह इसमें असफल रही है । कोयला, खनिज है  या जैव संसाधन इस बहस ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय एवं राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी में अनेकों को खीज में ला दिया है । राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी के एक अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि ``इस बहस ने अनेक मंत्रालयों के माथे पर शिकन ला दी है, हालांकि कोयला मंत्रालय कोयले को खनिज बताता है, वहीं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय एवं राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी को अभी तय करना है! उनका निर्णय काफी महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इससे नए विवाद खड़े हो सकते हैं ।
    गेंद अब पर्यावरण एवं वन मंत्रालय एवं राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकारी के पाले में है । उनका मत ही यह स्पष्ट करेगा कि भारत में कोयला खनिज है या जैव संसाधन ! 

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