गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

दृष्टिकोण
वन्यप्राणी संरक्षण और मिथ्या सक्रियता
डॉ. लक्ष्मीनारायण मित्तल

    वन्य प्राणियों पर क्रुरता न हो, इसके लिए कई कानून बनाये गये हैं । अभी पिछले दिनों स्कूलोंमें जीव-विज्ञान की प्रयोगशालाआें में मेढ़कों और अन्य जानवरों की चीर फाड़ पर रोक लगाने की आवाज उठी और सरकार ने इस पर रोक लगायी है ।
जैन और कुछ और धर्मवलम्बियों के स्कूलों में तो इसमें बरसों से रोक लगी हुई है । कहते हैं अब कम्प्यूटर के आ जाने से उसमें चीर फाड़ सिखाया जा सकता है । शायद यह किसी तरह का और एक विडियो गेम हो ।
    मदारियों पर तो बहुत दिनों से जानवरों का खेल दिखलाने पर रोक लगी हुई है । सर्कस में जानवरों का खेल दिखलाने पर भी रोक है । 
     परन्तु घर पर कुत्ता या बिल्ली पालने पर रोक नहीं है । भारत में अब मध्यम परिवार भी कुत्ता पालने लगे है । विदेशों में तो इन जानवरों को अकेलेव्यक्ति का साथी माना जाता है ।
    जंगलों का काटना जारी है । आधुनिक विकास की अवधारणों ने जंगलों को बहुत छोटा कर दिया है । इसी से अखबारों में कभी-कभी समाचार मिलते रहते है कि लक्कड़बग्गा जैसे जंगली जानवर इंसानों की बस्ती में आ जाते है ।
    मदारियों पर रोक है, सर्कस वालों पर रोक है, परन्तु जंगल काटकर जंगली पशुआें की रिहाइश छिनने पर रोक नहीं है । मूलत: घोड़ा, गाय, गधा, कुत्ता, बिल्ली ये सब जंगली जानवर है । मनुष्य के जीवन उपयोगी होने से इन्हें पालतू शब्द से अभिहित किया है ।
    गाय का दूध उसके बछड़े के लिए है । कीट-नाशकों का प्रयोग करके हम करोड़ों कीट-पतंगों को नष्ट कर देते हैं । इन पर रोक नहीं है । मांसाहार के लिए पशुआें के वध पर रोक नहीं है । गाय के चमड़े से बनी वस्तुआें पर रोक नहीं है । परन्तु चूहे या मेढ़ंक के चीर फाड़ पर रोक है जिससे शिक्षार्थी को प्रयोगात्मक ज्ञान प्राप्त् करते है । 
    असल में कुल बात आधुनिक विकास की परिभाष से सम्बद्ध है । विकास के नाम पर जंगली जानवरोंके रिहायशी जंगलों को काटना वाजिब है परन्तु गरीब मदारी के शो पर रोक है । हम यह क्यों भूल जाते हैं कि सर्कस में या मदारी द्वारा जानवरों का प्रदर्शन प्रशिक्षण की कला है जिससे उनका जीवन यापन होता है । हमनें इस कला पर कुठाराघात कर दिया है ।
    बुद्ध ने जानवरों को न मारने को अहिसां कहा है । परन्तु अहिंसा में भी जायज हिंसा की अनुमति है । यह अहिंसा का सिद्धान्त किसी वाद से संबंधित नहीं है । यह स्थान और काल की परिस्थिति पर निर्भर करता है । अच्छा हो जानवरों पर अत्याचार, विषय पर व्यापक विचार हो और आधुनिक विकास के नाम पर जो अत्याचार जानवरों पर हो रहे हैं, उन पर रोक लगायी जाये ।

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