गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

विशेष लेख
बृहत् पौधारोपण : एक जरूरी उपाय
डॉ. किशोरीलाल व्यास
    आज पर्यावरण विनाश एक विश्वजनीन समस्या बन चुकी है । मानव विकास की दौड़ में लगातार  विनाश करता जा रहा है । प्रकृति का बेतहाशा हनन, वनोंकी कटाई, उद्योग-धंधो की भरमार, उपभोक्ता वस्तुआें का उत्पादन, व्यापार, बाजार और इसी प्रकार का एक मकड़ जाल जिसमें समग्र मानव जाति  फंसती जा रही है । उसका कोई निस्तार  नहीं । विश्व के ८०% संसाधनोंका उपभोग २०% सम्पन्न देश करते हैं । दूसरी ओर गरीब देशों की ८०% जनता केवल२०% प्राकृतिक संसाधनों पर अपना जीवन यापन करती है । विषमता बढ़ती जा रही है उसके साथ-साथ विश्व मेंशोषण, बेरोजगारी, भुखमरी, बीमारियाँ आदि भी बढ़ती जा रही है । 
     आज विश्व की कोई भी नदी साफ-सुथरी, प्रदूषण-रहित नहीं है । ब्राजील के वर्षा वनों का काटकर, उसमें घांस पैदा की जा रही है, जिसे गाय-बैल बछड़ों को खिलाया जाता है, जिससे कि इन पशुआें का मांस निर्यात कर विदेशी डॉलर कमा    सके ?पशुआें के अभाव में बैलगाड़ी की जगह डीजल गाड़ी चलेगी और पशुआें की नस्ले समाप्त् होती   जाएगी । अमेरिका में ब्राजील के मांस के बने बर्गर बड़े चाव से खाएब जाते हैं । अर्थात् प्रतिदिन अपने सुबह के नाश्ते मेंऔसतन एक अमेरिकन बा्रजिल का एक वृक्ष खाता है । इस प्रकार वृक्ष सम्पदा समाप्त् हो रही है । विश्व के घने वर्षावन इस प्रकार लुप्त् होते जा रहे हैं ।
    भारत में गाय बैलों की सर्वश्रेष्ठ नस्ल आेंगोल (आ.प्र.) में होती है । ऊंचा-पूरा जानवर और गजब का शरीर सौष्ठव । दुर्भाग्य से हमारी गाय-बैलों की आेंगोल नस्ल समाप्त् होती जा रही है । थार पारकर, गुजराती गाय, रेडसिंधी भी समािप्त् पर है । हैदराबाद के चारो ओर अल-कबीर, अल्लाना  इत्यादि विशालकाय यांत्रिक कत्लखाने है जिनमें पाँच-पाँच हजार पशु पर शिफ्ट करते हैं । इस जानवरों का माँस डिब्बे में बंद कर मिडिल इस्ट भेजा जाता है और बदले में हम इन देशों से डीजल खरीदते हैं ।
    ये पशु यदि जीवित रह जाएं तो हमारे ग्रामीण परिवहन में डीजल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । दूसरे, ये जानवर क्या खाते हैं ? घाँस-फूल और चारा । बदले में हमें बहुमूल्य गोबर देते हैं । गोमूत्र देते हैं जिससे हमारी जमीन की ऊर्वरा शक्ति बढ़ती है । हम स्वस्थ जैव खेती कर सकते हैं । हमारे कृषि उत्पादन विषाक्त रसायनों तथा कीटकनाशकों से बचे रहेंगे । पर्यावरण संरक्षण का यह सहज उपाय है ।
    एक ओर बड़े-बड़े औघोगिक प्रतिष्ठान उज२ गैस लाखों टन के हिसाब से वातावरण में उड़ले रहे है, स्वचलित वाहनों का टनो का धुंआ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर संसार के गहन वर्षावन तथा अन्य वन बड़ी तेजी से कटते जा रहे है । कागज की खपत प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है । कागज उत्पादन के लिए लाखों पेड़ प्रतिदिन काटे जा रहे हैं । कागज बचाओ पेड़ बचाओ हमारा नारा होना चाहिए ।
    ग्रीन हाऊस इफेक्ट, ग्लोबल वार्मिग तथा बेतहाशा प्रदूषण इस प्रक्रिया का परिणाम है जिसके फलस्वरूप मानव जाति विविध बीमारियों से ग्रस्त होकर अकाल मृत्यु पा रही है । सूखे, बाढ़, अकाल, अनावृष्टि आदि विपत्तियों का सामना कर के जानमाल की प्रतिवर्ष क्षति उठा रहा है ।
    ग्लोबल वार्मिग बड़ी भयानक स्थित है । इसके कारण वातावरण में उज२ तथा अन्य गैसें जमा हो जाती हैं, परिणामत: सूर्य की किरणें ऊष्मा तो लाती है पर यह ऊष्मा पृथ्वी पर ही कैद हो जाती है, वातावरण से बाहर नहीं निकल पाती । परिणामत: प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ता जाता है । इसके दुष्परिणाम होते है - धु्रवीय ग्लेशियरों का द्रुत गति से पिघलना, सूखा, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि । इससे समुद्र स्तर बढ़ता है । पर्यावरण चक्र जो अबाध गति से सदियों से चल रहा है, उसे मनुष्य ने अपने क्रिया कलापों द्वारा बाधित किया, उसे भंग किया । ग्लोबल वार्मिग के कारण खुले वातावरण में काम करने वाले - मजदूर, किसान, धूप में अनिवार्य रूप से खड़े रहने वाले विघार्थी, शिक्षक, सेल्समेन आदि बुरी तरह से प्रभावित होंगे । वे अनेक प्रकार की त्वचा संबंधित बीमारियों से ग्रस्त होंगे ।
    इन्फ्रारेड तथा अल्ट्रावायलेट किरणें जो छनकर पृथ्वी पर आती हैं तथा अपेक्षाकृत कम हानिकारक होती है, ओजोन परत के हट जाने से सीधे धरती पर आएगी तथा मनुष्यों, पशुआें तथा फसलों को बहुत हानि पहुँचाएगी । ओजोन परत पृथ्वी के चारों ओर स्थित ज३ की परत है जो कतिपय रसायानों (क्लोरोफ्-लोरोकार्बन) के बहुत उपयोग के कारण क्रमश: नष्ट होती जा रही    है । इसके दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं । इन  रसायनों के उपयोग को घटाया जा सकता है तथा ओजोन परत बचाया जा सकता है । तुलसी का पौधा ओजोन परत को उतना ही अधिक संरक्षित किया जा सकता है ।
    औद्योगिक आँधी तथा स्वार्थी ठेकेदारों के कारण भारत के जंगल और वन्य प्राणी बड़ी तीव्रता से लुप्त् होते जा रहे हैं । हमारे कानून सख्त नही है, साथ ही वन विभाग के कर्मचारी भी ईमानदार नहीं है । हमारी राजनैतिक पार्टियाँ भी वन विनाश की जिम्मेदार है, सन् २००८ में भू-पोटाराम के नाम पर अदिलाबाद के संरक्षित वन की ८०० हेक्टर घने वन से आच्छादित भूमि को कम्यूनिस्टों ने साफ कर, अपने आधीन कर लिया इस कथित भूपोराटम (जमीन के लिए लड़ाई) के वन विनाश का रोकने का साहस किसी में नहीं था ।
    ग्लोबल वार्मिग का एकमात्र उपाय है - वातावरण में उज२ गैस को कम करना । अभी दिसम्बर २००९ में कोपन-हेगन में आयोजित क्लाइमेटिक चैलेंज जैसी वैश्विक बैठक में दुनिया के १९२ देशों ने भाग लिया । उज२ कम करने का आश्वासन तो मिला है । पर चीन, ब्राजिल, भारत, दक्षिण आफ्रिका जैसे देशों की प्रति औद्योगीकरण पर आधारित है । इन परिस्थितियों में एक मात्र मार्ग रह जाता है । वह है बृहत वृक्षारोपण । वृक्ष ही उज२ सोखने में सक्षम है । जंगलों का संरक्षण, वर्षा जल संरक्षण तथा बृहत वृक्षारोपण द्वारा यह प्रक्रियाबहुत कुछ कंट्रोल में लाई जा सकती है । वर्षा जल सरंक्षण पानी के बचाने का कारगर उपाय    है ।
    विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि इस समय दुनिया के लगभग ३१ देशों में पानी का भारी संकट   है । इनमें अधिकतर अफ्रीकी और मध्यपूर्व के देश है । वर्ष २०२५ तक इस सूची में भारत, ईथोपिया, केन्या, नाइजीरिया, पेरू, अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया आदि देश आ जाएेंगे । इस सभी देशों में अच्छी बरसात होती है, पर जल-संचयन संसाधनों के अभाव में सारा वर्ष जल बहकर नदियों और समुद्रों में व्यर्थ चला जाता है । भारत की स्थिति और भी गंभीर है । राजस्थान और कच्छ के मरूस्थल फैलते जा रहे है । पश्चिमी उत्तरप्रदेश, बुंदेलखण्ड, सौराष्ट्र, मराठवाड़ा, उत्तरपूर्वी कर्नाटक, तेलंगाना रायलसीमा, तमिलनाडु का कुछ भाग आदि प्रदेश सूखे भी चपेट मेंप्रतिवर्ष आते जा रहे हैं । ऐसे में वर्षा की प्रत्येक बूंद को संरक्षित करना ही एक मात्र उपाय है । इन्हे निम्न उपायों से संरक्षित किया जा सकता है ।
वर्षा जल संरक्षण :-
(१) सरोवर सरंक्षण :- प्रत्येक गाँव में सरोवर बने तथा पुराने सरोवर पनुरूज्जिवित किये जाएं । (२) छत पर गिरे हुए पानी का संरक्षण :- छत पर गिरे हुए वर्षा जल का एक ओर मोड़ कर, उसे भूमि में उतार देना, जिससे जल स्तर बढ़ता  है ।
(३) सतही सरंक्षण :- धरती की सतह पर गिरे हुए जल को संचयित करना । (४) बंड बांध कर जल का बहते जाने से बचाना ।
    जल से ही वृक्ष पनपते हैं । अत: जहाँ भी पडित या व्यर्थ जमीन हो, उसे वृक्षों से आच्छादित कर देना चाहिए । इसके लिए समाज के सभी वर्गो, धर्मो, जातियों व समुदायों का जुट जाना चाहिए । पेड़ों के काटनेपर प्रतिबंध लगाना चाहिए । ग्राम वन, स्मृति वन, वनस्पति उद्यान, ध्यान वन, सरोवर के चारों ओर वृक्षारोपण आदि कार्यक्रम लिये जा सकते हैं ।
    भारतीय रेलवे विभाग के अन्तर्गत लाखों एकड़ भूमि है, इसे योजनाबद्ध रूप में हरित किया जा सकता है । कार्यालयों, कालोनियों, घरों में अनिवार्य रूप से पौधारोपण होना चाहिए । बृहत वृक्षारोपण कार्य विश्व व्यापक होना चाहिए ।
    वृक्षो रक्षति रक्षित : । वृक्ष को रक्षित करें, वे हमारी रक्षा करेंगे ।
    पौधारोपण हेतु जल आवश्यक है । वर्षा का जल बहुत मात्रा में व्यर्थ चल जाता है । इसे संचित कर, इसका समुचित उपयोग होना   चाहिए । घरों और कालोनियों से निकलने वाला व्यर्थ का जल वृक्षारोपण हेतु उपयोग में लाया जा सकता है ।
    जल, भूमि तथा वृक्ष - इन तीनों के समुचित प्रबंध से वांछित पर्यावरण परिवर्तन लाया जा सकता  है । वृक्ष न केवल उज२ गैस को सोखते हैं, प्रत्युत प्रदेश को शीतल तथा आल्हादकारी भी बनाते है । ये ध्वनि तरंगो को सोखकर, ध्वनि प्रदूषण भी कम करते हैं । रेगिस्तान के चारों ओर शुष्कोदभिद् वृक्षों की दस से बीस पंक्तियां लगाकर, बेरोकटोक बढ़ते हुए रेगिस्तान की रोकथाम की जा सकती है । राजस्थान की रेत बवंडर को रूप में उडकर गर्मिया के मौसम में आगरा तक पहुँचती है । इस प्रकार रेगिस्तान का विस्तार होता जाता है ।    
    जोधपुर स्थित एरिड झोन रिसर्च सेंटर ने पक्तिबद्ध वृक्षारोपण कर रेगिस्तान की बढ़त को रोकने में सफलता पाई है ।
    जहाँ वृक्ष अधिक होते है, वहाँ पतझड में सूखे पत्ते गिरकर मृदा  बनाते हैं । यह मृदा वर्षा  जल को स्पंज की तरह सोखकर रखता है, और धीरे-धीरे छोड़ता है । इससे जहाँ जंगल हो वहाँ झरने सदा बहते हैं,  ऐसे प्रदेश की नदियाँ सदानीरा होती है । जंगल जल भण्डार होते हैं । अत: जल, जमीन और जंगल का अंत: सबंध बड़ा गहरा है ।
    वनस्पति उद्यान - प्रत्येक कालेज, युनिवर्सिटी तथा स्कूल में जहाँ भी काफी जगह हो, वहाँ पर निश्चित ही वनस्पति उद्यान लगाना चाहिए । यू.जी.सी. को यह सुनिश्चित कर देना चाहिए कि प्रत्येक कॉलेज अपने परिसर में वनस्पति उद्यान लगाए, जिसमें स्थानीय औषधियों पौधों का भी समावेश हो । प्रत्येक कॉलेज का विज्ञान निभता छात्रों से मिलकर यह कार्य सुनिश्चित करें । इस प्रकार के वनस्पति उद्यान से न केवल अध्ययन-अध्यापन की सुविधा होगी, प्रत्युत वातावरण पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा । इस उघाने के कारण जीव वैविध्य का विकास होगा ।

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