शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

पर्यावरण समाचार
    जीन अभियांत्रिकी स्वीकृत समिति याने जीईएसी ने ११ फसलों की प्रायोगिक खेती को पिछले हफ्ते मंजूरी दे दी है । लेकिन अधिकांश राज्यों ने इस एक्ट का विरोध किया है । इन फसलों में मक्का, चावल, जुवार, मुंगफली, गेहूं, कपास, सोयाबीन आदि शामिल हैं । लेकिन ज्यादातर राज्य जीएम फसलों के परीक्षण के लिए तैयार नहीं है जिससे म.प्र., उत्तरप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार ने इसका विरोध किया है, जबकि पंजाब, महाराष्ट्र ने समर्थन किया है । वहीं गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेेश, ओडिशा ने कोई फैसला नहीं किया है । जबकि छत्तीसगढ़ तटस्थ है । ये राज्य खाद्य पदार्थो के विरोध में लेकिन कपास के पक्ष में है ।
    जबकि इन्दौर स्थित सोपा याने सोयाबीन प्रोसेसर एसो. ऑफ इंडिया ने सरकार से म.प्र. में जैव विविधता अधिनियम २००२ को लागू करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया है । सोपा पहले भी इस तरह की मांग कर चुका है । सिर्फ मध्यप्रदेश में इसे लागू किए जाने से कारोबारी गुस्से में है । स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव के कारण कई कंपनिया बंच गई । वही बायोटेक कंपनियों की इससे पौ बारह हो जाएगी तथा वे और निवेश बढ़ाएगी ।
    इन्दौर के सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (सोपा) ने सरकार से मध्यप्रदेश मेंजैव विविधता अधिनियम २००२ को लागू करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया है । इसे संभवत: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के पांच सोयाबीन प्रसंस्करण कंपनियों पर मुकदमा दर्ज करने के आदेश के विरोध में उठाया कदम माना जा रहा है । सोपा पहले भी इसी तरह की मांग कर चुका है ।
    दूसरी तरफ राज्य जैव विविधता बोर्ड ने स्पष्ट किया कि जैव विविधता अधिनियम २००२ एक राष्ट्रीय अधिनियम है और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने भी माना है कि राज्य को इसे लागू करने का पूरा अधिकार    है । बोर्ड ने बाकी सोयाबीन प्रसंस्करण इकाई को नए नोटिस जारी किए हैं । सोपा के चेयरमेन रमेश अग्रवाल ने हाल में इस संबंध में राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था और राज्य सरकार से अनुरोध किया था कि सोयाबीन प्रसंस्करण इकाई पर जैव विविधता अधिनियम लागू नहीं हो ।

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