सोमवार, 20 अगस्त 2007

६ गैस त्रासदी

भोपाल के बाद अब गुजरात की बारी
नरेन्द्र छिब्बर/महेश एल
भोपाल गैस त्रासदी को २३ वर्ष हो गए हैं । वहां पर पड़ा जहरीला अपशिष्ट प्रत्येक मानसून में जमीन में व्यापकता से फैल कर प्रति वर्ष और अधिक क्षेत्र को जहरीला बना रहा है । भारत शासन चाहे तो कंपनी को इस बात के लिए मजबूर कर सकता है कि वह इसे अमेरिका ले जाकर इसका निपटान वहां के अत्याधुनिक संयंत्रों में करे । परन्तु इसके बजाय सरकारें अब भोपाल ही नहीं गुजरात में अंकलेश्वर व म.प्र. के पीथमपुर के निवासियों का जीवन संकट में डाल रही हैं । मध्यप्रदेश सरकार के उस विवादास्पद कदम को जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है जिसके अंतर्गत उसने भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फेक्ट्री में पड़े जहरीले अपशिष्ट को जलाने का निश्चय किया है । नागरिकों समूहों ने इस अपशिष्ट को गुजरात भेजने की घोर निंदा की है । उनका कहना है कि अंकलेश्वर (गुजरात) स्थित भस्मक बहुत ही बुरी स्थिति में है और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के लिए महज एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरण का क्या अर्थ है ? और इससे जहरीले रासायनिक अपशिष्ट के निपटान में कोई मदद भी नहीं मिलेगी । समूहों का कहना है कि इस कदम से डो-केमिकल्स को उसकी जिम्मेदारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी । उपरोक्त समूह मध्प्रदेश सरकार की इस योजना के खिलाफ मध्यप्रदेश उच्च् न्यायालय में गए थे परन्तु न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया । यह कदम न्यायालय के निर्देश से ही उठाया जा रहा है । न्यायालय ने राज्य व केन्द्र सरकार को आदेश दिया है कि वे इस अपशिष्ट के निपटान में आ रहे २ करोड़ रूपए के व्यय को साझा रूप से उठाएं । गोदाम में रखे ५ हजार मीट्रिक टन अपशिष्ट में से मात्र ३४५ मीट्रिक टन गुजरात में अंकलेश्वर स्थित भरूच इनवायरोन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (बी.ई.आई.एल.) में पहँुचेगा । अन्य ४० मी. टन अपशिष्ट इंदौर (म.प्र.) के निकट स्थित पीथमपुर में जमीन के भीतर दबा दिया जाएगा । ये कुल अपशिष्ट का क्रमश: ६.९ व ०.८ प्रतिशत भर है । भोपाल गैस त्रासदी कल्याण एवं पुनर्वास विभाग उच्च् न्यायालय से पूरे अपशिष्ट के निपटान की समयावधि व प्रक्रिया पर दिशा निर्देश की प्रतिक्षा में है। इसके सचिव अजीत केसरी कहते हैं, 'इसकी प्रत्याशा में हमने संपूर्ण जहरीले रासायनिक अपशिष्ट के परिवहन की सभी तैयारियां पूर्ण करने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी है ।' मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जो कि उच्च् न्यायालय द्वारा गठित उस टास्क फोर्स का हिस्सा है जो कि इस सफाई की तकनीकी सहमति देगा, ने कहा है कि वह अपशिष्ट के निपटान की निगरानी नहीं करेगा । वहीं गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भरोसा दिलाते हुए कहा है कि यह संयंत्र इस तरह के अपशिष्ट के निपटान हेतु पूर्णतया सज्जित है । भरूच के आंचलिक अधिकारी का कहना है कि 'बी.ई.आई.एल. की क्षमताआें का आकलन करने के बाद ही हमने यह अनुमति दी है ।' इतना ही नहीं बोर्ड के चेयरमेन एस.पी. गौतम का कहना है कि 'गैर सरकारी संगठन चाहे जो कहते रहें परन्तु यह भस्मक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का है और देश के सर्वश्रेष्ठ भस्मकों में से एक है ।' गौतम के अनुसार एक बार मध्यप्रदेश का विभाग टेण्डर की कार्यवाही पूरी कर लें तो हम अपशिष्ट के परिवहन की अनुमति दे देंगे और इस जहरीले अपशिष्ट के निपटान की प्रक्रिया की निगरानी भी रखेंगे । बी.ई.आई.एल. के प्रतिनिधि ने अहमदाबाद में कहा कि कंपनी के पास विश्वस्तरीय निपटान संयंत्र है । इतना हीं नहीं उसके पास किसी भी तरह के ठोस जहरीले रासायनिक अपशिष्ट के परिवहन, भंडारण और निपटान की भरपूर सुविधाएं उपलब्ध है । गुजरात के पूर्व नर्मदा विकास मंत्री जयनारायण व्यास ने बी.ई.आई.एल. का बचाव करते हुए कहा कि 'भोपाल के जहरीले अपशिष्ट का अंकलेश्वर में बिना स्थानीय पर्यावरण को नुकसान पहुचाए सुरक्षित निपटान कर दिया जाएगा ।' उनका कहना है कि हम ठोस अपशिष्ट भोपाल में दो दशकों से अधिक समय से पड़ा है जो कि अब तक तो कम जहरीला हो गया होगा । अतएव इसका अंकलेश्व में सुरक्षित प्रबंधन हो सकता है । परन्तु समूह इन दावों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं । भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित नागरिक व कार्यकर्ता भस्मक की प्रदूषण नियंत्रण क्षमता पर ही प्रश्नचिह्न् लगा रहे हैं । उनका कहना है कि इस जहरीले अपशिष्ट से उसी प्रकार से इलाका प्रदूषित होगा जैसा कि यूनियन कार्बाइड से भोपाल में हुआ था । इस प्रकार हम एक अन्य त्रासदी को जन्म दे रहे हैं । साथ ही उनका यह भी कहना है कि यह 'प्रदूषणकर्ता भुगतान करे' के सिद्धांत के खिलाफ है । भोपाल के एक गैर सरकारी संगठन 'इंफारमेशन एण्ड एक्शन' ने इसके खिलाफ उच्च् न्यायालय में मुकदमा भी दायर किया है । उन्होंने न्यायालय में बी.ई.आई.एल. और बैबीशीन, जर्मनी स्थित ट्रीटमेन्ट स्टोरेज डिस्पोजल फेसिलिटी का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया है । ईकार्ट शुल्ट्स द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि अंकलेश्वर में उपलब्ध न्यून सुविधाआें के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव हो सकता है । जिसके परिणामस्वरूप पारा वातावरण में फैल सकता है । साथ ही उनका कहना है कि चूंकि भस्मक में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है अतएव बाद में मलबे की धूल को भूमि के नीचे भरने से इलाके के खनिज, नमक व अन्य प्राकृतिक पदार्थ प्रदूषित हो सकते हैं । इससे इलाके में रहने वाले एक लाख लोगों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर दीर्घकालिक विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। रिपोर्ट का कहना है कि अपशिष्ट को मानवीय श्रम द्वारा खाली कर प्लास्टिक के थैलों में पुन: भरा जाएगा इससे यहां के अनुभवहीन श्रमिकों के स्वास्थ्य को भी गंभीर खतरा पैदा हो सकता है । वहीं पीथमपुर (मध्यप्रदेश) में भी जमीन के नीचे इसका भरा जाना खतरनाक है क्योंकि यह स्थान पहाड़ी पर स्थित है जहां पर कि वर्षा का पानी जा सकता है। साथ ही उनका कहना है कि यहां स्थित जोंको पर भी निगरानी रखने की पूरी सुविधा नहीं है । गुजरात में अंकलेश्वर बचाओ समिति ने स्थानीय नागरिकों की विरोध रैलियां आयोजित कर अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर जहरीले अपशिष्ट को निपटान हेतु यहां लाया गया तो हम आंदोलन करेंगे । स्थानीय नागरिकों का यह भी कहना है कि अभी तक अधिकारियों ने उनसे यह नहीं कहा है कि वे अपशिष्ट यहां पर ला रहे हैं । पर्यावरणवद् रोहित प्रजापति का कहना है कि केन्द्रीय पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिसम्बर २००६ में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा था कि वह अंकलेश्वर संयंत्र स्थित सुविधाआें का आकलन कर बताए कि वह प्रदूषणकारी तत्वों से किस प्रकार निपटेगा । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना था कि भरूच में पूर्व से ही प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है । वहीं गैर सरकारी संगठनों का कहना है कि उनके पास इसके विकल्प मौजूद हैं । वे इस हेतु एक कार्य योजना लेकर प्रस्तुत हुए हैं । उनका कहना है कि इस जहरीले अपशिष्ट को गुजरात या पीथमपुर ले जाने के बजाए सरकार इस बात पर ध्यान लगाए कि इस मानसून में यह जहरीला अपशिष्ट जमीन में और गहरे में न उतरे । उन्होंने डो-केमिकल्स से मांग की है कि वह इस जहरीले अपशिष्ट को वापस अमेरिका ले जाए, जैसा कि यूनीलिवर ने कोडाईकनाल में किया था । यह अपशिष्ट सुरक्षित तौर पर अमेरिया ले जाया जा सकता है जहां पर अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध है । अभी तक तो कंपनी ने इस बात का आकलन भी किसी संस्था से नहीं करवाया है कि आखिरकार भोपाल स्थित कारखाने में कुल कितना जहरीला अपशिष्ट पड़ा हुआ है । वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि, 'सरकारी संगठनों ने विलंब से विभ्रम की स्थिति पैदा कर दी है । अभी तक इस बात का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया गया है कि यूनियन कार्बाईड के अपशिष्ट में अन्य जोखिम भरे अपशिष्ट कितनी मात्रा में समाहित हैं ।'

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