सोमवार, 20 अगस्त 2007

सम्पादकीय

कचरे से बढ़ता प्रदूषण खतरनाक
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयोगी हो जाने से इकट्ठा हो रहे कचरे का निपटान ढंग से नहीं हो पाने के कारण पर्यावरण केखतरे बढ़ रहे है । एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख टन ई-वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है । इसमें देश में बाहर से आने वाले कबाड़ को जोड़ दिया जाए तो न केवल कबाड़ की मात्रा दुगुनी हो जाएगी, वरन् पर्यावरण के खतरों और संभावित दुष्परिणामों का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा । प्रतिवर्ष भारत में बीस लाख कम्प्यूटर अनुपयोगी हो जाते हैं । इनके अलावा हजारों की तादाद में प्रिंटर, फोन, मोबाईल, मॉनीटर, टीवी, रेडियो, ओवन, रेफ्रिजरेटर, टोस्टर, वेक्यूम क्लीनर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर, सीडी व डीवीडी प्येयर, वीडियो गेम, सीडी, कैसेट, खिलौने, फ्लोरेसेंट, ट्यूब, ड्रिलिंग मशीन, मेडिकल इंस्टूमेंट, थर्मामीटर और मशीनें भी बेकार हो जाते हैं । जब उनका उपयोग नहीं हो सकता तो ऐसा कचरा खाली भूमि पर इकट्ठा होता रहता है, इसका अधिकांश हिस्सा जहरीला और प्राणीमात्र के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है । कुछ दिनों पहले इस तरह के कचरे में खतरनाक हथियार व विस्फोटक सामगी भी पाई गई थी । इनमें धातुआे व रासायनिक सामग्री की भी काफी मात्रा होती है जो संपर्क में आने वाले लोगों की सेहत के लिए खतरनाक होती है । लेड, केडमियम, मरक्यूरी, एक्बेस्टस, क्रोमियम, बेरियम, बेेटीलियम, बैटरी आदि यकृत, फेफड़े, दिल व त्वचा की अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं । अनुमान है कि यह कचरा एक करोड़ से अधिक लोगों को बीमार करता है । इनमें से ज्यादातर गरीब, महिलाएँ व बच्च्े होते हैं । इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई होना जरूरी है । महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल व मध्यप्रदेश में इस कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है । मुंबई, दिल्ली, बंगलोर, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, सूरत, नागपुर इसके बड़े केंद्र है । ये सब बारूद के ढेर पर बसे हैं । मेनन कमेटी की सिफारिश पर इसके लिए नियम भी बनाए गए थे, उनमें हर वर्ष सुधार भी होता रहा है । मगर देश के लोगों की मानसिकता अभी कबाड़ संभालने व कचरे से सोना निकालने की बनी हुई है । इस कारण कचरे से पर्यावरण प्रदूषण का खतरा बड़ता जा रहा है ।

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