शनिवार, 12 जनवरी 2008

४ जनजीवन

धारावी : वैधानिक लूट का नया औजार
निधि जामवाल/मौरीन नन्दिनी/रावलीन कौर
दक्षिणी मुम्बई के उत्तरी किनारे पर स्थित एशिया की सबसे बड़ी गंदी बस्ती `धारावी' आजकल बिल्डरों की आंख का तारा बनी हुई है । बांद्रा और वर्ली जैसे पाश इलाके से जुड़ी इस बस्ती ने न केवल हजारों व्यक्ति निवास करते हैं बल्कि यहां से अपना रोजगार भी संचालित करते हैं । गंदी बस्ती पुर्नवास प्राधिकरण का कहना है कि विकसित होने के बाद १४००४ करोड़ रू. के अनुमानित मूल्य में बिकने वाली इस संपत्ति से भवन निर्माताआे (बिल्डरों) के करीब ४७५४ करोड़ रू. का लाभ प्राप्त् होगा । वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि लाभ इससे कई गुना अधिक होगा । महाराष्ट्र गृह एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एम.एच.ए.डी.) के पूर्व अध्यक्ष चन्द्रशेखर प्रभु की गणना के अनुसार बिल्डरों को करीब २१००० करोड़ रू. प्राप्त् होंगे । २२३ हेक्टेयर में फैलेइस भूखंड में से १४४ हेक्टेयर को १ जून २००७ को हथिया लिया गया है। ९२५० करोड़ रू. के धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिये महाराष्ट्र सरकार ने हितग्राहियों से प्रस्ताव भी आमंत्रित कर लिए हैं । इस योजना में औसत सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ५७००० परिवारों का पुनर्वास होना है । ४० हेक्टेयर में ७ करोड़ वर्ग फिट निर्माण हेतु १०० से अधिक कंपनियों ने रूचि दिखाई है । मुंबई स्थित एमएम कन्सलटेंट के मुकेश मेहता द्वारा १९९५ में कल्पित इस योजना को बस्ती निवासियों के लिए ऐसा सुनहरा अवसर बताया गया है जिसके अंतर्गत उन्हें बहुमंजिला भवनों में २२५ स्के. फीट के फ्लेट मुफ्त में मिल जाएंगे और बाकी की जमीन बेच दी जाएगी । इन भवनों का प्रथम १५ वर्ष तक रखरखाव भी बिल्डर को ही करना होगा । परंतु यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक कार की पार्किंग हेतु २४८ स्के. फीट स्थान की आवश्यकता होती है और यहां एक पूरे परिवार को मात्र २२५ स्के. फीट स्थान उपलब्ध करवाया जा रहा है । एक महत्वपूर्ण तथ्य जिसे सरकार नजरअंदाज कर रही है वह यह है कि यह सिर्फ रहवासी क्षेत्रभर नहीं है अपने आप में यह एक `विशेष आर्थिक क्षेत्र' भी है। यहां पर रिसायकलिंग से लेकर मिट्टी के बर्तन बनाने, खाद्य प्रसंस्करण व चमड़ा उद्योग तक हैं । यहां के निवासियों का कहना है कि वे धारावी के विकास का भी समर्थन तो करते हैं परंतु उस तरह से नहीं जिस तरीके से सरकार ने सोचा है । हाल फिलहाल यहां १५० स्के. फीट से लेकर १००० स्के. फीट तक की करीब ५००० खाद्य प्रसंस्करण इकाईयां कार्यरत हैं । ये चकली, फरसान, नमकीन व चिप्स जैसे नामचीन उत्पादों का निर्माणकरती हैं । साथ ही यहां २० चमड़ा शोधन इकाईयों भी कार्यरत हैं जिनका सालाना कारोबार ८० करोड़ रू. से अधिक का है । नए धारावी में इनके लिए कोई जगह नहीं होगी क्योंकि इन्हें प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता है । वहीं यहां ४ से ५ हजार इकाईयां पुर्नसंचरण (रिसायकलिंग) का कार्य करती हैं, जिनका प्रतिदिन का लेनदेन १ करोड़ रू. से ज्यादा का होता है । वहीं ये प्रतिदिन ४ हजार टन से जयादा कबाड़ का पुनर्चक्रण भी करती हैं । इन्हीं सबके बीच `कुम्हारवाड़ा' स्थित है जो कि ५ हेक्टेयर (१७ एकड़) में फैला है एवं २००० परिवारों की जीविका इस व्यवस्था पर निर्भर है । ये सभी बहुत ही सुंदर पारंपरिक व डिजायनर मिट्टी बर्तन बनाते हैं । उनका कहना है कि अचानक बाहरी लोग आकर हमारी जमीन और हमारी खुशहाली में रूचि लेने लग गए हैं। स्थानीय कुम्हारों का कहना है कि हमारी जमीन व जीविका को छीनने के किसी भी प्रयत्न का पुरजोर विरोध किया जाएगा। वैसे कुम्हारों ने योजना के विरूद्ध बम्बई उच्च् न्यायालय वृहत मुम्बई नगर निगम, और एमएचएडीए में अपील दायर कर दी हैं । दिल्ली स्थित शहर नियोजक ए.जी.के. मेनन का कहना है कि `योजना व्यक्तियों से संबंधित होना चाहिए न कि धन से । धारावी योजना पूर्णतया पूंजी आधारित रणनीति पर निर्भर है । आकल्पक इस भूमि को मात्र एक आर्थिक संसाधन के रूप में देख रहे हैं और उसे अधिकतम भी करना चाहते हैं ।' धारावी की यह योजना पूर्णतया बिल्डर समुदाय के हित को ध्यान में रखकर बनाई गई है । गंदी बस्ती पुनर्वास प्राधिकरण की वर्तमान प्रचलित नीति में बिल्डर को उसके द्वारा विकसित प्रत्येक एक फुट भूमि के बदले ०.७५ स्के. फीट भूमि की पात्रता है । परंतु धारावी के मामले में यह अनुपात बदल दिया गया है । यहां पर पुनर्वास हेतु २२५ स्के. फीट के फ्लेट के बदले बिल्डर को ३०० स्के. फीट का फ्लेट मिलेगा । शहरी भूमि सीलिंग अधिकार व नियम, सन् १९७६ के अंतर्गत सरकार सिर्फ गरीबों को घर उपलब्ध करवाने के लिए ही भूमि का अधिग्रहण करा सकती है । परंतु सरकार बजाय यह करने के कह रही है कि वह जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के अंतर्गत ऋण प्राप्त् करने की पूर्व शर्त को पूरा करने के लिए इस कानून मेंही परिवर्तन कर देगी । शहरी सीलिंग कानून के अनुसार मुम्बई में निजी अधिपत्य हेतु ५०० वर्ग मीटर से बड़े भूखंड की पात्रता नहीं है । अतिरिक्त भूमि सरकार को वापस करनी होगी । इस नियम के तहत पिछले २६ वर्षो में सरकार केवल ४० हेक्टेयर भूमि ही अधिग्रहित कर पाई है । वहीं मुम्बई स्थित बिल्डर हीरानंदानी कंसट्रक्शन ने इस कानून का उल्लंघन करते हुए मुम्बई और थाणे में २०० हेक्टेयर उस भूमि का दुरूपयोग किया जिसके अंतर्गत १४० हेक्टेयर भूमि का आबंटन कमजोर वर्गो को एक कमरे के आवास उपलब्ध करवाने हेतु किया गया था । यहां पर उनके लिए एक कमरा भी नहीं बना । मुम्बई की १.२० करोड़ की आबादी में से आधी गंदी बस्तियों में रहती है । बैंगलोर स्थित आल्टरनेटिव ला फोरम का अध्ययन बतलाता है कि मुम्बई के ६० लाख गंदी बस्ती निवासियों के पास यहां की कुल भूमि का मात्र १२.५ प्रतिशत क्षेत्र ही है । जिसका मूल्य ८०००० करोड़ रू. है । परंतु सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि जहां एक ओर हजारों हजार लोग बेघर हैं वहीं एक लाख से ज्यादा फ्लेट खाली पड़े हुए हैं । शहरीकरण हेतु राष्ट्रीय आयोग का कहना है कि मुम्बई की खाली पड़ी भूमि में से ५५ प्रतिशत सिर्फ ९१ व्यक्तियों के स्वामित्व में है । इस स्वामित्व को सरकार और प्रशासन दोनों ही मान्यता प्रदान कर रहे हैं। महाराष्ट्र के आवास विभाग के मुख्य सचिव एस.एस.क्षत्रिय का कहना है कि `ऐसा नहीं है कि मुम्बई में आवास उपलब्ध नहीं हैं। परंतु ये गरीबों की पहुंच से बाहर हैं । बहुत थोड़े से बिल्डर मुम्बई के आवास क्षेत्र पर नियंत्रण किए हुए हैं। इस गठजोड़ को तोड़कर आवास क्षेत्र के विनियमन करने की आवश्यकता है ।' वैसे सरकार ने बस्ती निवासियों के लिए एक फार्मूला भी बनाया है । इसके अंतर्गत जिनके पास २५१ स्के. फीट से लेकर १००० स्के. फीट तक के आवास है उन्हें २२५ स्के. फीट नि:शुल्क (छोटे घरवालों की तरह) दिया जाएगा और अतिरिक्त ६७५ स्के. फीट उसे बिल्डर से कमेटी द्वारा तय किये गए मूल्य पर खरीदना होगा । स्थानीय जनता का कहना है कि पहली बात तो यह है कि सरकार हमसे हमारी भूमि लेकर यह कह रही है कि अब हम उसे बिल्डर से बाजार मूल्य पर पुन: खरीदें । दूसरा सरकार ने अभी तक उस समिति को अंतिम रूप नही दिया है जो कि यह बताएगी कि अतिरिक्त स्थान खरीदने की दर क्या होगी और यह भी नहीं बताया कि इसका बाजार मूल्य क्या होगा ? इस योजना के अंतर्गत ८५ प्रतिशत भूमि रहवासी और १५ प्रतिशत व्यावसायिक होगी । स्थानीय निवासियेां का कहना है कि हमोर लिए तो सब कुछ व्यावसायिक जैसा ही है । अभी जबकि योजना ने मूर्त रूप लेना भी प्रारंभ नहीं किया है तभी इस सम्पत्ति के भाव आसमान छूने लगे हैं । यहां पर व्यावसायिक सम्पत्ति का भाव २५ से ३०००० रू. प्रति स्के. फीट और रहवासी का ५ हजार रू. हो गया है । योजना के चलते इसके और भी बढ़ने की आशंका है क्योंकि पास के ही बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स में हाल फिलहाल के भाव ५०००० रू. स्के. फीट हैं । धारावी बचाआे समिति के अध्यक्ष राजू कोरडे का कहना है कि योजना निर्माण हेतु बुलाई गई निविदाएं गैर कानूनी हैं और वे इसके खिलाफ न्यायालय में जाएंगे । केन्द्र सरकार ने गंदी बस्तियों के लिए एक नीति का प्रारूप तैयार किया था पंरतु वह अभी तक प्रारूप रूप में ही है। इस प्रारूप नीति का भी विरोध हो रहा है क्योंकि यह निजी व सार्वजनिक भागीदारी पर आधारित है । साथ ही यह गरीबों के भूमि अधिकार की बात भी नहीं करती । अन्य नीतियों की तरह यह भी विश्व बैंक की निजी-सार्वजनिक भागीदारी नीति पर आधारित है । अनेक संगठनों का मानना है कि जबकि वे भूमि का पूरा मूल्य गरीबों से ही वसूल कर लेना चाहते हैं तो इसमें सामाजिक कल्याण की बात कहां आती हैं ? इस समस्या के समाधान को लेकर विचार सामने आ रहे हैं । इस बात में कोई मतभेद नहीं है कि गरीबों के लिए आवास की नीति कल्याणकारी होनी चाहिए साथ ही इसमें सुरक्षा की गारंटी भी होनी चाहिए । इस संबंध में एक मत इस हेतु स्वतंत्र नियामक की नियुक्ति की बात करता है जिससे कि संबंधित नियम बनाए जा सकें । वहीं दूसरा वित्तिय अनुशंसाआें की बात करता है । वैसे इस संबंध में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय की प्रतिक्रिया का सभी को इंतजार है । परंतु इस दिशा में सर्वप्रथम कदम एक कार्यान्वित हो सकने वाली `राष्ट्रीय गंदी बस्ती नीति' का निर्माण ही है । ***

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