शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

९ खाद्य पदार्थ


खाद्य पदार्थ
अंगूर : तुझसे कैसे रहें दूर ?
डॉ. किशोर पंवार
जब बागों में फूलों की और बाज़ार में फलों की बहार होती है, विशेष रूप से अंगूर की । तो फलों की दुकान और सड़क किनारे हाथ ठेलों पर अंगूर ही अंगूर दिखाई देते हैं । इन्हें देखते ही खरीदने का मन करने लगता है । अंगूर के गुच्छेदेखने में भी बड़े सुंदर लगते हैं । ऐसा लगता है कि किसी ने हरे-पीले बड़े-बड़े मोतियों को एक गुच्छे में बांध दिया हो । बहुत कुछ हैअंगूर पर लिखने को । जैसे बचपन में पढ़ी कहानी खट्टे अंगूर-अम्लानी द्राक्षानी । एक लोमड़ी जंगल में अंगूर की बेल पर लगे अंगूर के गुच्छोंको खाने के प्रयास में बार-बार ऊपर की ओर उछलती है । परंतु कई बार की कोशिश के बाद भी उसके हाथ अंगूर नहीं आते । तब वह अंगूर खट्टे हैं कहकर वहां से चल देती है। मज़ेदार बात यह है कि अंगूर की एक जाति का नाम फॉक्स ग्रेप भी है । जो खट्टी होती है। यानी कहानी में कुछ दम है । अंगूर पर लिखने के लिए अंगूर की बेटी भी है - दुनिया का सबसे पुराना और लोकप्रिय पेय पदार्थ । पूरी दुनिया में यह एक बहुत बड़ा उद्योग है । कई सरकारों इसकी बदौलत ही चलती हैं । इसके चलते ही वाइन किंग और पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए जैसे जुमले पढ़ने को मिलते है ।अंगूरी की बेल अंगूर के पौधे का नाम है वायटिस वाइनीफेरा । वाइन का अर्थ है बेल । तो अंगूर की बेल होती है । यह बहुत मज़बूत और मोटी होती है । यह अपने लिपटने वाले जंतुआेंसे सहारे पर लिपट जाती है । यह एक बहुवषी कठोर लता है जिसे हम कठलता यानी लायना भी कह सकते हैं । अंगूर के तने पर एकान्तर क्रम से एक पती और एक प्रतान यानी कुडलित धागे नुमा रचना (टेड्रिल) लगी होती है । यही बेल को किसी मज़बूत सहारे पर लिपटकर चढ़ने में सहायता करती है । प्रतान हवा में झूलते रहते हैं, किसी ठोस सहारे के संपर्क में आते ही संपर्क वाले हिस्से और उसके विपरीत दिशा में असमान वृद्धि होने से यह सहारे पर एक छल्लेनुमा रचना बना लेते हैं । इस तरह यह बेल सहारे से लिपट जाती है । प्रतान का बाकी हिस्सा कुंडलित होकर स्प्रिंग की तरह कार्य करते हुए बेल को तेज़ हवा के झोकों में टूटने व नीचे गिरने से बचाता है । पत्तियां काफी बड़ी हथेली के आकार की सुंदर, गहरी हरी होती हैं । अंगूर की इन्हीं लताआें पर फूल गुच्छों में लगते हैं । फल भी गुच्छों में लगते हैं क्योंकि फूलों से ही तो फलों का निर्माण होता है । अंगुर का पुष्पक्रम पेनिकल प्रकार का होता है । जिसका मुख्य अक्ष शाखाआें में बंट जाता है । प्रत्येक शाखा पर फिर फूल खिलते हें । पुष्पक्रम के ऊपरी हिस्से में पहले और नीचे वाले हिस्से में बाद में । यही कारण है कि गुच्छे में बड़े-बड़े अंगूर ऊपर की ओर लगते हैं ओर फिर नीचे की ओर क्रमश: छोटे होते जाते हंै । इसी वजह से अंगूर के गुच्छे इतने सुंदर और आकर्षक होते हैं । अंगूर के फूल पंचतयी होते हैं अर्थात इनमें पांच अंखुड़ियां और पांच हरी-पीली पुखुड़ियां होती हैं और साथ में मकरंद ग्रंथियां भी । अंगूर: फल भी, औषधि भी अंगूर के फल स्वादिष्ट रसीले ओर ऊर्जा से भरपूर होते हैं । उसके पत्ते भी औषधीय गुणों की खान हैं । पत्तियों में स्रावरोधक और सूजनरोधी गुण होते हैं । इनमें टेनिन क्वेसीटिन टारटेट, इनसीटोल, कोलीन और कैरोटीन प्रचुरता से मिलते हैं । जिन लोगों का लीवर कमज़ोर होता है या जिनकी पित्त निर्माण प्रक्रियाधीमी हो जाती है उन्हें भोजन के रूप में अंगूर के सेवन की विशेष सलाह दी जाती है । आर्युवेद में इससे द्राक्षासव नाम का टॉनिक भी बनाया जाता है जो क्षुधावर्धक एंव बलवर्धक माना जाता है । प्रसिद्ध टॉनिक च्यवनप्राश में अंगूूर भी एक घटक के रूप में डाला जाता है । कुल मिलाकर यह एक श्रेष्ठ फल है ।इतिहास के झरोखे से अंगूर अंगूर की बेल के बारे में इतना सब कुछ जान लेने के बाद आइए, इसका कुछ इतिहास भी जान लें । इसका वैज्ञानिक नाम वायटिस वाइनीफेरा है जो वायटेसी कुल का पौधा है । इसकी लगभग ६० प्रजातियां हैं । इनमें से अधिकांश उत्तरी अमेरिका की देशज हैं । अंगूर मानव द्वारा उपयोग किया जाने वाला सबसे पहला फल है । और तब से आज तक उच्च् ऊर्जा युक्त भोजन का मुख्य स्रोत बना हुआ है । अंगूर पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी यूरोप में बहुत पहले से ही उगाए जात रहे हैं । अंगूर की पत्तियों के जीवाश्म फ्रांस और इटली में प्राचीन काल की चट्टानों में मिलते हैं । इसी तरह अंगूर के बीच भी स्विटज़रलैंड की झीलों के आसपासऔर मिस्र के पुराने मकबरों से प्राप्त् हुए हैं । ये सब अंगूर के पुरातन होने के प्रमाण हैं । मिस्र में अंगूर की खेती एवं इससे शराब बनाने का इतिहास लगभग ५००० वर्ष पुराना है । बाइबिल में नोआ द्वारा अंगूर का बगीचा लगाए जाने का ज़िक्र है जिसे संभवत: फिलिस्तीन में उत्तर से लाया गया होगा । इसी तरह ओल्ड टेस्टामेंट में भी वाइन का ज़िक्र लगभग १६५ और न्यू टेस्टामेंट में १० बार आता है । इससे उस समय अंगूर और वाइन के महत्व का अंदाज लगाया जा सकता है। पुराने यूनानी और रोमन अभिलेखों में भी अंगूर का वर्णन है । इसे फ्रांस में ६०० ईसा पूर्व लाया गया था । वहां की मोनेस्ट्रीज़ ने इसके बगीचे लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । उत्तरी अमेरिका में कोलंबस के प्रवेश के सदियों पूर्व से ही रेड इंडियन जंगली अंगूरों को इकट्ठा करते थे जिनमें फॉक्स ग्रेप (वायटिस लेब्रुस्का) और रिवर बैंक ग्रेप (वायटिस वलपीना) शामिल थे । कोलंबस के ५०० वर्ष पूर्व नोर्समेन ने इस द्वीप की यात्रा की थी और वहां उग रहे जंगली अंगूरों को देखकर इसे वाइनलैंड नाम दिया था । वायटिस वाइनीफेरा अमेरिका में करीब १६१६ में लाया गया । वर्तमान में इस प्रजाति की करीब ५००० किस्में उगाई जाती हैं । भारत में अंगूर की बेलें विभिन्न आगंतुकों द्वारा फारस और अफगानिस्तान से लगभग १३०० ईस्वीं में लाई गई थीं । वर्तमान में अंगूर की खेती पूरी दुनिया के शीतोष्ण और उपकटिबंधीय क्षेत्रों में होती है । वायटिस वाइनीफेरा अंगूर की सबसे लोकप्रिय प्रजाति है । ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति कैस्पियन सागर तट पर एशिया में हुई । जंगली अंगूर की कई प्रजातियां आज भी यूरोप, निकट पूर्व और उत्तरी भारत में पाई जाती हैं ।रंग-बिरंगे अंगूर अंगूर का फल बेरी श्रेणी का है अर्थात एक ऐसा रसीला फल जिसमें सिर्फ एक या दो बीज होते हैं । अंगूर के फलों के रंग में भी बहुत विविधता देखी जाती है। सफेद, हरे, गुलाबी, लाल और गहरे जामुनी यानी लगभग काले । इन फलों के छिलके पर एक पतली मोम की पर्त चढ़ी होती है जिस पर फफूंद और यीस्ट की करोड़ों कोशिकाएं चिपकी रहती है - एक फल पर लगभग १ करोंड़ । अंगूर की शक्कर को किण्वन से शराब में बदलने का कार्य इन्ही के जिम्मे है । इनमें पाए जाने वाले एन्जाइम शक्कर को अल्कोहल में बदल देते हैं । अंगूर के रस मेंे मुख्यत: पानी और १८ से २५ प्रतिशत तक शक्कर होती है तथा कुछ कार्बनिक अम्ल होते हैं । शक्कर में ग्लूकोज़, फ्रक्टोज़ होती हैं। अम्लोंे में टारटेरिक और मेलिक अम्ल प्रमुखता से रहते हैं । शक्कर व कार्र्र्बनिक अम्लों के कारण ही अंगूर खट्टे-मिठे लगते हैं । अंगूर में अमीनो अम्ल, विटामिन, लवण और ऑक्सीकरण-रोधी एन्थोसाइनिन भी होते हैं । यही कारण है कि अंगूर एक श्रेष्ठ फल और पोषक पदार्थ हैं ।अंगूर की बेटी शराब को शायरों ने अंगूर की बेटी कहा है । दुनिया भर में उत्पादित लगभग ८० प्रतिशत अंगूर का उपयोग तो वाइन नामक शराब बनाने में किया जाता है । शेष १० प्रतिशत ताज़े फल के रूप में खाए जाते हैं और बाकी सुखाकर ड्राईर् फ्रुट्स के रूप में । ताजे खाए जाने वाले अंगूरों की उम्दा किस्मों को टेबल ग्रेप्स या डेसर्ट ग्रेप्स कहते हैं । शराब बनाने वाली किस्मों को वाइन ग्रेप्स और बाकी को रेज़िन (किशमिश) कहा जाता हैं मस्कट और ऐलेक्जेंड्रिया, थामसन सीडलेस और सुल्तान । जबकि प्रचलित टेबल ग्रेप्स हैं नियाग्रा एम्पुर, हैदराबाद का अनाब-ए-शाही और पूसा सीडलेस । ये दोनों भारत में विकसित की गई हैं । अंगूर से शराब बनाना उतना ही पुराना है जितनी हमारी सभ्यता । शराब दुनिया का सबसे ज्यादा प्रचलित पेय है । इसे बनाने वाले सदियों से इसके साथ ही रहते आए हैं- खमीर के रूप में । ग्रेप वाइन के तीन जाने-माने रंग हैं सफेद, लाल और गुलाबी । सफेद वाइन बनाने के लिए अंगूर को छिलके उतराने के बाद किण्वित किया जाता है । रेडवाइन के लिए काले-लाल अंगूरों को छिलके सहित और रोज़ वाइन बनाने के लिए किण्वन शुरू होने के बाद छिलकों का हटाया जाता है । ड्राय वाइन बनाने के लिए किण्वन तब तक चलने देते हैं जब तक सारी शर्करा शराब में न बदल जाए । वहीं स्वीट वाइन के लिए थोड़ी शक्कर उसमें रहने देते हैं । शेम्पेन बनाने के लिए किण्वन जारी रहते हुए ही उसे क्रिकेट के खिलाड़ियों को जीतने की खुशी में सबके सामने सामने शेम्पेन की बोतल खोलने में मज़ा क्यों आता है । ***
वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए याचिका
मध्यप्रदेश के पेंच बांध अभयारण्य में राष्ट्रीय राजमार्ग के प्रस्तावित विस्तार के विरोध को लेकर भारतीय वन्य जीव न्यास (डब्ल्यूटीआई) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है । संगठन का कहना है कि राजमार्ग के विस्तार से जंगली पश्ुाआें की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है ।

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