शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

प्रसंगवश

प्रसंगवश
पर्यावरण प्रदूषण में भारत भी आगे है
कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन करने वाले देशों में अमेरिका और चीन के बाद भारत का नंबर आता है । रूस, जर्मनी, जापान, यूनाईटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रिका व दक्षिण कोरिया का नंबर बाद में लगता है । योरप के सत्ताईस राष्ट्रों के कुल उत्सर्जन की मात्रा भारत से थोड़ी ही ज्यादा है । ऊर्जा का उत्सर्जन वर्ष भर में ११.४ अरब टन होने का अनुमान है । सन् २००० में यह मात्रा ८.५ अरब टन से भी कम थी । इसमें से चीन के ऊर्जासंयंत्र ३.१ अरब टन, अमेरिका के ऊर्जा संयंत्र २.८ अरब टन व भारत के ऊर्जा संयंत्र ६३.८ करोड़ टन कार्बन डाईाऑक्साइड का उत्सर्जन करते है । भारत की नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन के सोलह संयंत्र अकेले१८.६ करोड़ टन गैस उत्सर्जित करते है । चीन में ऐसी पांच अमेरिका में दो, दक्षिण अफ्रीका में एक और जर्मनी में एक बड़ी कंपनियाँ है । चीन के हृानेग पावर इंटरनेशनल के संयंत्र २८.५ करोड़ टन गैस उत्सर्जित करते है । इन आँकड़ों से उन लोगों को सचेत होना जरूरी है जो वैश्विक तापमान में वृद्धि के खतरों से चिंतित हैं और पर्यावरण प्रदूषण के दुष्परिणामों को नियंत्रित करने के विषय में पहल कर रहे है । ऊर्जा उत्पादन के लिए लकड़ी, कोयला, गैस, तेल व जीवाश्म आधारित तत्वों का प्रयोग करने से ऐसी गैस का सर्वाधिक उत्सर्जन होता है । संसार में उत्पादित ऊर्जा का ६० प्रतिशत इनसे मिलता है । मगर इससे कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्पन्न होती है। पेड़-पौधे भी ऐसी ही गैस छोड़ते हैं । इसे ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है । पिछली दो सदियों में वातावरण में इस गैस की मात्रा २८ प्रति लाख इकाई से बढ़कर ३९ प्रति लाख इकाई हो गई है । इसके कारण न केवल पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वरन प्राणियों व वनस्पतियों का जीवन तथा कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । सूखा, अकाल, बाढ़, वनों में अग्नि, जल संकट, महामारियाँ व श्वास-हृदय रोग इसके उदाहरण हैं । अनुमान है कि इस सदी में ६ डिग्री फेरनहीट तापमान बढ़ जाएगा और निम्नस्तरीय धरातल पर पानी फैल जाएगा यह जरूरी है कि बिजली या ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाया जाए । उसके बिना कृषि, खनन, उद्योग व संचार परिवहन सेवाआें का विकास संभव नहीं है । भारत की अर्थव्यवस्था ८ प्रतिशत से अधिक रफ्तार से तभी बढ़ सकती है जब बिजली व अन्य अधोसंरचना का विकास हो । ***

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