बुधवार, 17 अगस्त 2011

विशेष लेख

विशेष लेख
क्या खतरे की घंटी है मोबाइल फोन ?
मानसी दास/अरूण मेहता

दूरसंचार विभाग ने कहा है कि वह जल्दी ही मोबाइल हैंडसेट निर्माताआें को अपने हैंडसेट्स की पैकिंग पर स्पेसिफिक एब्जार्प्शन रेशिओ (एसएआर) को प्रमुखता के साथ प्रदर्शित करने का आदेश देगा । एसएआर रेडियो फ्रि क्वेंसी ऊर्जा की उस मात्रा का पैमाना है जो हैंडसेट का इस्तेमाल करते समय शरीर द्वारा अवशोषित की जाती है । अगर यह मात्रा कम है तो इसका मतलब है कि उससे विकिरण का खतरा कम है ।
वर्तमान में हम अंतर्राष्ट्रीय गैर-आयनीकारक विकिरण सुरक्षा आयोग के दिशानिर्देश किसी भी सेलफोन टॉवर से ९०० मेगाटर्ज पर ४.५ वॉट/वर्गमीटर और १८०० मेगाहटर्ज पर ९.२ वॉट/वर्गमीटर तक के विकिरण की अनुमति देते हैं । भारत इनमेंे से दूसरे वाले स्तर का अनुसरण करता है । समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि भारत फ्रिक्वेंसी एक्सपोजर सीमा को मौजूदा स्तर के दसवें भाग तक घटा सकता है । मौजूदा मानक उष्मा प्रभाव पर आधारित है और गैर-ऊष्मीय एक्सपोजर के खतरों का समाधान पेश नहीं करते है ।
भारत जैसे गर्म देश में लोगों का बॉडी मॉस इंडेक्स (यानी ऊंचाई के सापेक्ष शरीर का वजन) बहुत कम है, शरीर में वसा की औसत मात्रा कम है और वातावरण में रेडियो फ्रिक्वेंसी का घनत्व ज्यादा है । समिति अपनी रिपोर्ट में कहती है कि ऐसी स्थिति में इस तरह के विकिरण से भारतीय लोगों को बहुत ज्यादा जोखिम हो सकता है । इसके मद्देनजर सरकार यह मानती है कि विकिरण के असुरक्षित स्तर से संपर्क नुकसानदेह हो सकता है । पिछले साल तहलका पत्रिका द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि नई दिल्ली का ८० फीसदी हिस्सा असुरक्षित विकिरण स्तर का सामना कर रहा था ।
मोबाइल फोन का विकिरण
मोबाइल फोन रेडियो तरंगों के माध्यम से सिग्नल प्रेषित करते हैं । इन रेडियो तरंगों में रेडियो फ्रिक्वेंसी एनर्जी होती है जो इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन का ही एक रूप है । मोबाइल हैंडसेट के भीतर मौजूद सर्किट्स और उसके एंटिना से विकिरण संचारित होता है । यह विकिरण सभी दिशाआें मेंं फैलता है, कहीं कम,कहीं ज्यादा । मोबाइल फोन का उपयोगकर्ता इस विकिरण का कितना हिस्सा अवशोषित करेगा, यह नेटवर्क में डिजिटल सिग्नल कोडिंग, एंटिना की डिजाइन और सिर के सापेक्ष उसकी स्थिति जैसे कई कारकोंपर निर्भर करेगा । अमरीकन नेशनल स्टैंडर्ड इंस्टीट्यूट (एएनएसआई) ने मोबाइल फोन के एसएआर को इस तरह से परिभाषित किया है : वह रफ्तार जिस पर किसी जैविकीय पदार्थ को रेडियो फ्रिक्वेंसी इलेक्ट्रोमेग्नेटिक एनर्जी दी जाती है । इसे उस पिण्ड की प्रति इकाई मात्रा में बहने वाली एनर्जी के रूप में व्यक्त किया जाता है, यानि वॉट/किलोग्राम । जब बात मानव ऊतकों की होती है तो एसएआर ऊतकों द्वारा अवशोषित की जाने वाली गर्मी की मात्रा का पैमाना है ।
भारत ने मोबाइल हैंडसेट द्वारा फैलने वाले विकिरण के एक्पोजर की सुरक्षित सीमा के मानक के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के दिशानिर्देश को स्वीकार किया है - पूरे शरीर के लिए औसत एसएआर ०.०८ वॉट/किलोग्राम, सिर एवं धड़ के लिए औसत एसएआर २वॉट/किलोग्राम और अन्य अंगों के लिए औसतन एसएआर ४ वॉट/किलोग्राम माना गया है ।
अमरीका में मोबाइल फोन का जो भी मॉडल बेचा जाता है उसकी निर्देशिका में एसएआर की जानकारी अवश्य रहती है । वहां के फेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन (एफसीसी) ने १.६ वॉट/किलोग्राम एसएआर स्तर को सुरक्षित माना है । किसी भी मोबाइल फोन की एसएआर संबंधी जानकारी एफसीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध रहती है । कभी-कभार यह मोबाइल की बैटरी पर भी अंकित रहती है या फिर फोन की निर्माता कंपनी हर स्तर का पहचान नंबर प्रकाशित करती है। यूरोप में एसएआर २वॉट/किलोग्राम से अधिक नहीं हो सकता जबकि कनाड़ा में इसका अधिकतम स्तर १.६ वॉट/किलोग्राम रखा गया है ।
भारत में किसी भी मोबाइल फोन के एसएआर का उल्लेख आमतौर पर उपभोक्ता निर्देशिका में होता है । उपभोक्ता चाहें तो उस कंपनी की वेबसाइट पर भी देख सकते हैं । एक लोकप्रिय मोबाइल कंपनी के कुछ मोबाइल फोन के कान के पास एसएआर ०.६१ से १.०७ वॉट/किलोग्राम के बीच है । सस्ते मोबाइल बनाने वाली देश की एक अन्य लोकप्रिय मोबाइल कंपनी के हैंडसेट का एसएआर ०.६७२ वॉट/किलोग्राम है ।
कम कीमत में कीबोर्ड वाले मोबाइल फोन बेचने वाली और स्टाइलिश हैंडसेट के लिए मशहूर कई कंपनियां अपनी वेबसाइट्स पर एसएआर के संबंध में जानकारी प्रदर्शित नहीं करती है ।
विकिरण पर शोध
विकिरण दो प्रकार के होते है। एक, आयनीकारक विकिरण जिनसे टकराकर परमाणुआें से इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं और आयॅन का निर्माण है (जैसे एक्स-रे) दूसरा, गैर आयनीकारक विकिरण जिसमें आमतौर पर इलेक्ट्रॉन अलग नहीं होते हैं । यह उतना घातक नहीं माना जाता जितना कि आयनीकारक विकिरण होता है। इसमें वस्तु की सतह केवल गर्म होती है । मोबाइल फोन और मोबाइल फोन टॉवरों से निकलने वाला विकिरण गैर-आयनीकारक होता है ।
गैर-आयनीकारक विकिरण के साथ चिंता यह है कि इसका असर लंबे समय तक हो सकता है । हालांकि यह ऊतकों को तत्काल नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन वैज्ञानिक इस बात को लेकर पक्के तौर पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है कि इस विकिरण के लगातार प्रभाव से किस तरह की समस्याआें का सामना करना पड़ सकता है ।
इस बाबत किए गए शोध के नतीजे काफी अलग-अलग हैं और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते कि मानव स्वास्थ्य के लिए मोबाइल फोन का विकिरण कितना घातक है ।
अनुसंधान पर एक नजर
मोबाइल फोन के विकिरण का सबसे जाना-माना प्रभाव ऊष्मीय प्रभाव है जिसमेंगर्मी संबंधी अधिकांश प्रभाव सिर की सतह पर होते हैं । ऊष्मीय प्रभाव मानव ऊतकों को उसी तरह गर्म करने की क्षमता रखता है, जैसे किसी माइक्रोवेव ओवन में खाना गर्म होता है । इसमें तापमान में बढ़ोतरी उससे भी कम होती है जितनी धूप में सिर खुला रहने पर होती है । मस्तिष्क के रक्तसंचार में यह क्षमता होती है कि वह खून के प्रवाह मेंबढ़ोतरी कर अतिरिक्त गर्मी के असर को खत्म कर सके । हालांकि आंख के कॉर्निया में तापमान के नियंत्रण की कोई व्यवस्था नहीं होती है। दो से तीन घंटे तक १०० से १४० वॉट/किलोग्राम एसएआर पर खरगोश की आंखों में मोतियाबिंद का होना पाया गया । इस एसएआर पर आंख के लेंस का तापमान ४१ डिग्री सेल्सियस हो गया । वैसे जब बंदरों को इन्हीं परिस्थितियों से गुजारा गया तो उनमें मोतियाबिंद नहीं हुआ ।
वर्ष २००९ में डेनमार्क, फिनलैंड, नार्वे और स्वीडन के तमाम वयस्कों (कुल १.६ करोड़ लोग) पर यह जानने के लिए अध्ययन किया गया कि क्या इन देशों में ब्रेन ट्यूमर के प्रकोप में बढ़ोतरी हो रही है । वर्ष १९९८ से २००३ के दौरान ब्रेन ट्यूमर के प्रकोप में अंतर का कोई स्पष्ट रूझान नहीं देखा गया । इससे इतना ही संकेत मिलता है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से जुड़े ब्रेन ट्यूमर की शुरूआती अवधि ५ से १० साल तक हो सकती है । ऐसे में ब्रेन ट्यूमर के मामलों की दर में रूझान का पता लगाने के लिए लंबे समय तक फालो-अप करना जरूरी होगा ।
वर्ष २००३ में आठ चूहों का जीएसएम कम्युनिकेशन वाले अलग-अलग क्षमता के मोबाइल फोन के संपर्क में रखा गया । इन चूहों के मस्तिष्क के कॉर्टेक्स और हिप्पोकैम्पस एवं बैसल गैंग्लिया में तंत्रिका क्षति पाई गई ।
वर्ष २००४ में किए गए एक अध्ययन में निष्कर्षो में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि थोड़े-थोड़े अंतराल पर कम अवधि के लिए मोबाइल फोन का
इस्तेमाल करने से एकूस्टिक न्यूरोमा का खतरा बढ़ता है (यह एक ऐसा ट्यूमर है जिससे सुनने की क्षमता घट सकती है, संतुलन की समस्या बढ़ सकती है और चेहरे का लकवा होने की आशंका हो सकती है) । हालांकि इन निष्कर्षो से ये संकेत जरूर मिलते है कि कम से कम १० साल तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने में एकूस्टिक न्यूरोमा का खतरा हो सकता है ।
सन् २००९ के उत्तरार्द्ध मेंजर्नल ऑफ द नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट ने उत्तरी यूरोप में कई कैंसर अस्पतालों के आंकड़ों के आधार पर एक आलेख प्रकाशित किया था । इसमें बताया गया था कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल और ब्रेन ट्यूमर के बीच कोई विशेष संबंध नहीं है । उस अतरांल में भी ब्रेन ट्यूमर के मामलोंमें कोई अंतर नहीं आया जब मोबाइल फोन का इस्तेमाल बढ़ा था ।
स्वीडन स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के मस्तिष्क विज्ञान विभाग में वैज्ञानिक ओले जोहानसन मोबाइल फोन के विकिरण पर पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से शोध कर रहे हैं । उन्होनें पाया है कि मनुष्य का मस्तिष्क इलेक्ट्रोमेग्नेटिक विकिरण के प्रति काफी संवेदनशील होता है । मोबाइल उद्योग ने उनके निष्कर्षो को कमोबेश नकार दिया है ।
वाशिंग्टन स्थित एक सरकारी निगरानी समूह एनवायर्मेटल वर्किग ग्रुप ने २००९ में कहा कि अब तक ऐसे कोई पुख्ता वैज्ञानिक सबूत नहीं मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हों कि मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से कैंसर ह्ो सकता है । लेकिन हालिया अध्ययन बताते है कि जो लोग पिछले १० साल से मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें मस्तिष्क और मुंह में ट्यूमर होने की आंशका हो सकती है ।
जॉर्ज कार्लोे एक सरकारी स्वास्थ्य वैज्ञानिक, महामारी विशेषज्ञ और वकील हैं जिन्होंने १९९३ से १९९९ के बीच मोबाइल कंपनियों द्वारा वित्त पोषित २.८५ करोड़ डॉलर के अनुसंधान कार्यक्रम की अगुवाई की थी । उन्होने कहा, सेलफोन के इस्तेमाल से ट्यूमर, कैंसर, आनुवांशिकी क्षति और अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरों में बढ़ोतरी के चिकित्सा वैज्ञानिक संकेतों के बीच सरकार और मोबाइल फोन उद्योग ने लोगों को अकेला छोड़ दिया है ।
एक और वैज्ञानिक माइकल कुंडी भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि तमाम साक्ष्य बढ़ते खतरे का संकेत देते हैं लेकिन मोबाइल फोन के दीर्घकालीन इस्तेमाल संबंधी सूचनाआें के अभाव के चलते आज इसका आकलन नहीं किया जा सकता कि यह खतरा कितना है ।
मंत्रिमंडलीय समिति की रिपोर्ट में भारत में रेडियो फ्रिक्वेंसी के स्त्रोतों के बारे मेंविस्तार से जानकारी दी गई है । इसके अनुसार देश में१ से ३०० किलोवॉट संचार क्षमता के ३८० एएम/एफएम टॉवर, १० से ५०० वॉट संचार क्षमता के १२०१ टेलीविजन टॉवर, २० वॉट संचार क्षमता के ५.४ लाख सेल फोन टॉवर और १ से २ वॉट संचार क्षमता के ७० करोड़ से अधिक मोबाइल फोन है । इसके अलावा खासकर महानगरों में १० से १०० मिलीवॉट संचार क्षमता वाले वाई-फाई डिवाइस का भी तेजी से विस्तार होता जा रहा है।
भारत के लिए मोबाइल फोन विकिरण इसलिए भी खतरे की घंटी है, क्योंकि यहां का दूरसंचार उद्योग दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रहा है और वायरलेस कनेक्शनों की संख्या के मामले में यह विश्व में दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार नेटवर्क है । मोबाइल फोन उपभोक्ताआें की संख्या में हर माह लगातार बढ़ोतरी हो रही है । साथ ही आधुनिकतम मोबाइल फोन और अन्य संचार उपकरणों के कारण बैेडविथ की भूख भी बढ़ती जा रही है । भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अनुमान लगाया है कि मार्च २०१४ तक भारत में मोबाइल उपभोक्ताआें की संख्या १०० करोड़ तक पहुंच जाएगी ।
गौरतलब है कि भारत में टॉवरों की स्थापना को लेकर कोई नियंत्रण नहीं है । यही वजह है कि हमारे शहरों में टॉवर या एंटिना का बहुत ही अव्यवस्थित जाल-सा-बिछा मिलेगा । मोबाइल टॉवर भी जगह-जगह कुकुरमुत्तों की तरह उगे जा रहे हैं ।
एहतियात बरतें
हमेशा न्यूनतम एसएआर वाला मोबाइल ही खरीदें । कम एसएआर का मतलब है विकिरण एक्सपोजर का खतरा भी कम होना । उच्च् एसएआर का मतलब होगा कि विकिरण की कान से अधिक निकटता । मोबाइल फोन के साथ सहायक उपकरणों के इस्तेमाल से एसएआर के मूल्य में बदलाव हो सकता है ।
मोबाइल फोन का हमेशा शरीर से दूर रखें । सिर के पास इलेक्ट्रोमेग्नेटिक विकिरण को कम करने के लिए स्पीकर फोन या हैंड-फ्री सेट का इस्तेमाल करें । यह सुनिश्चित करें कि विकिरण को अवशोषित करने के लिए हैंडसेट में फेराइट बीड लगी हो ।
वे लोग जिनके शरीर में प्रत्यारोपण किया गया हो, उन्हें मोबाइल फोन प्रत्यारोपित अंग से कम से कम ३० सेंटीमीटर दूर रखना चाहिए ।
ऐसे फोन का इस्तेमाल करें जिसमें बाह्म एंटिना लगा हो । उस फोन को वरीयता दें जिसमें बात करते समय एंटिना कपाल से दूर रहे ।
बाह्म एंटिना नहीं होने पर कार में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें ।
लिफ्ट जैसे धातुई परिवेश में मोबाइल फोन पर बातचीत से बचें, क्योंकि इसमें विकिरण के बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं होने से वह आपके शरीर में ही जाएगा ।
विकिरण कवच वाले मोबाइल का इस्तेमाल करें । कई कंपनियां इस तरह के कवच की पेशकश करती हैं ।
मोबाइल फोन के विकिरण को बाधित करने वाले यंत्री, जैसे एंटिना, वाई-फाई, जीपीएस, ब्ल्यूटूथ का इस्तेमाल करें । ये विकिरण उत्सर्जित करने वाले बिन्दुआें को वांछित समय के लिए निष्क्रिय कर देते हैं ।
कुछ शोधकर्ता ने उन स्थानों पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने को लेकर आगाह किया है जहाँ सिग्नल कमजोर होते हैं उनके अनुसार इस दौरान विकिरण ज्यादा होता है ।

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