सोमवार, 11 जून 2012

 प्रसंगवश
सावधान ! समुद्र का जल तेजाबी हो रहा है
    समुद्र कार्बन डाईऑक्साईड को सोखने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । हरे-भरे पेड़ पौधों के बाद समुद्र ही वायुमण्डल की कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करने का दूसरा बड़ा माध्यम है । लेकिन वायुमण्डल में तेजी से बढ़ता कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर समुद्र के पानी को भी प्रभावित कर रहा है । समुद्र के पानी की पीएच तेजी से बदल रही है और यह पानी आने वाले समय में तीव्र तेजाब में बदल सकता है ।
    वैज्ञानिकों ने कहा है कि समुद्र में स्थित मंूगे की चट्टानों और कुछ जलीय जीवों को पानी की इस बदलती प्रकृति के ही चलते नुकसान पहुंच रहा है । वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ दशकों में तेजी से हो रहे इस परिवर्तन पर चिंता जताई हैं और नीति निर्धारिकों से इस तरह के परिवर्तन रोकने की दिशा में शीघ्र कदम उठाने की अपील की है । इसमें कहा गया है कि समुद्र के पानी के अम्लीय बनने की प्रक्रिया में तेजी आई है और यह बहुत नुकसानदेह हो सकता है । आंकड़ों के अनुसार १८वीं शताब्दी में औद्योगीकरण शुरू होने से अब तक वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा लगभग ४० फीसदी बढ़ चुकी है । परिणामस्वरूप दुनिया भर के  महासागर तेजी से अम्लीय होते जा रहे हैं । इसका सीधा असर समुद्री जीवन के अलावा मनुष्यों पर भी पड़ रहा है । खाद्य श्रृखंला पर हा ेरहे असर के नतीजे आगे चलकर घातक हो सकते हैं । ब्रिटेन के पर्यावरण सचिव हिलेरी बेन ने इन खतरों के प्रति आगाह किया है ।
    महासागरों के अम्लीय होने के पीछे कार्बन उत्सर्जन को जिम्मेदार माना जा रहा है और इसलिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती बेहद जरूरी है । आंकड़ों के अनुसार पिछले २०० साल में जैविक ईधन के जलने  से निकली कार्बन डाईऑक्साइड का ५० फीसदी से ज्यादा समुद्र सोख चुके हैं ।
    हिलेरी बेन के अनुसार कार्बन डाईऑक्साइड की सांद्रता बढ़ने के कारण महासागर अम्लीय होते रहे हैं । इसका असर महासागरों में रहने वाले जंतुआें पर पड़ रहा है । महासागरों में बढ़ती अम्लीयता मूंगा चट्टानों और मछलियों, केंकड़ों पर असर डाल रही है। वर्ष २००७ में हुए अध्ययन के  मुताबिक मूंगों का विकास १४ प्रतिशत तक घट गया है । विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रोटीन के लिए मछलियों पर निर्भर है। समुद्री पर्यावरण में परिवर्तन के चलते यह पूरी खाद्य श्रृंखला ही गड़बड़ा जाएगी ।                                                        
                                                   डॉ. दिनेश मणि, इलाहाबाद (उ.प्र.)

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