मंगलवार, 15 जनवरी 2013

संपादकीय
विलुप्त् होती जा रही प्रजातियां की चिंता कौन करें ?

               हमारे आसपास के जीव-जन्तु और पौधे खत्म होते जा रहे हैं, हम केवल चिंता और चिंतन कर रहे हैं, दूसरों के जीवन को समाप्त् करके आदमी अपने जीवन चक्र को कब तक सुरक्षित रख पाएगा ? ईश्वर के बनाए हर जीव का मनुष्य के जीवन चक्र में महत्व है । क्या मनुष्य दूसरे जीव के जीवन में जहर घोल कर अपने जीवन में अमृत कैसे पाएगा ?
    अगले सौ वर्षो में धरती से मनुष्यों का सफाया हो जाएगा । ये शब्द आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रैंक फैंमर के है । उनका कहना है कि जनसंख्या विस्फोट और प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा इस्तेमाल की वजह से इन्सानी नस्ल खत्म हो जाएगी । साथ ही कई और प्रजातियाँभी नहीं रहेगी, यह स्थिति आइस-एज या किसी भयानक उल्का पिंड के धरती से टकराने के बाद की स्थिति जैसी होगी।
    हम देख रहे है कि धीरे-धीरे धरती से बहुत सारे जीव-जन्तु विदा हो गए, दुनिया से विलुप्त् प्राणियों की रेड लिस्ट लगातार लम्बी होती जा रही  है । इन्सानी फितरत और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधंुध दोहन ने हजारों जीव प्रजातियों और पादप प्रजातियों को हमारे आसपास से खत्म कर दिया है । औद्योगिक खेती और शहरी-ग्रामीण विकास में वनों के विनाश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । अकेले भारत में ही लगभग १३३६ पादप प्रजातियां असुरक्षित और संकट की स्थिति में मानी गई है । एक रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती से ७२९१ जीव प्रजांतियाँ इस समय विलुिप्त् के कगार पर हैं, वनस्पतियों की ७० फीसदी प्रजातियों और पानी में रहने वाले जीवों की ३७ फीसदी प्रजातियां और ११४७ प्रकार की मछलियों पर भी विलुिप्त् का खतरा मंडरा रहा है । वर्तमान समय में तीन रूझान ऐसे हैं जो मानव जाति के भविष्य पर मंडारते खतरे की ओर गंभीर संकेत कर रहे है - मौसम संबंधी आपदाआें में बढ़ोत्तरी, पीने के साफ पानी की बढ़ती माँग और मानव और पशु अंगों की कालाबाजारी धरती पर पिछली शताब्दी, पर्यावरण और मौसम संबंधी आपदाआें और दुर्घटनाआें की रही है जिसमें सूखा, अत्यधिक तापमान, बाढ़ और तूफान आदि शामिल है ।

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