मंगलवार, 15 जनवरी 2013

प्रसंगवश
अंगों के पुनर्निर्माण की आशा धूमिल
     सब जानते हैं कि छिपकली की पूंछ एक बार कट जाए, तो दोबारा उग आती है । मगर हाल ही में खोजा गया है कि दोबारा उगी पूंछ मूल पूंछ के मुकाबले कमजोर होती है । इस खोज से क्षतिग्रस्त अंगों के पुनर्जनन की उम्मीदोंपर सवाल खड़े हो गए  हैं ।
    फीनिक्स स्थित एरिजोना विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ मेडिसिन की रेबेका फिशर और उनके साथियोंने ग्रीन एनोली छिपकली (एनोलिस केरोलिनेंसिस) की पुनर्निर्मित पूंछ और मूल पूंछ की शारीरिक संरचना में असमानता देखी है । यह छिपकली किसी शिकारी द्वारा पकड़े जाने पर अपनी पूंछ को छोड़कर भाग जाती है और बाद में उसके स्थान पर दूसरी पंूछ उग आती है ।
    इन दोनों पूंछों की तुलना करने पर पता चला कि मूल पूंछ रीढ़ की छोटी-छोटी हडि्डयों के जुड़ने से बनी थी जबकि पुनर्जनित पूंछ एक ही लंबी उपास्थि (कार्टिलेज) से बनी थी । दानों पूंछ की मांसपेशियों में भी अंतर था । जहां मूल पूंछ में छोटी-छोटी मांसपेशियों होती हैं, वही पुनर्जनित पूंछ में मांसपेशियां लंबी-लंबी थीं जो एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली थीं ।
    सुश्री फिशर का कहना है कि इन दोंनो अंतरों से ऐसा लगता है कि पुनर्जनित पूंछ कम लचीली होगी । छिपकली की पूंछ में छोटी-छोटी मांसपेशियां और हडि्डयों के बीच जोड़ के चलते बेहतर नियंत्रण संभव होता है जबकि एक ही लंबी कार्टिलेज नली और लंबे मांसपेशीय तंतुआें के साथ यह संभव नहींहोगा । फिशर को लगता है कि आगे अध्ययन बताएंगे कि इसका छिपकली की चपलता पर क्या असर होता है ।
    सुश्री फिशर ने कार्टिलेज की अच्छी तरह जांच-पड़ताल की तो पाया कि पूरी कार्टिलेज में बारीक छिद्र हैं । सिरे की ओर छिद्रों की संख्या ज्यादा है । इन छिद्रों में से रक्त नलिकाएं निकलती हैं मगर तंत्रिकाएं नहीं । कार्टिलेज के अंदर की तंत्रिकाएं अंदर ही रह  जाती हैं, और बहुत हुआ तो सिर्फ अंतिम सिरे पर मांसपेशियों तक पहुंच पाती हैं । दूसरी ओर, मूल पूंछ में रक्त वाहिकाएं और तंत्रिकाएं हडि्डयों के बीच की जगह से नियमित अंतराल पर निकलती हैं ।
    कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जॉसन पामेरॉन्ट्रज का कहना है कि इन दोनों संरचनाआें के बीच बड़ा अंतर है ।और उपरोक्त उदाहरण तो एक ऐसे जंतु का है जिसमें पुनर्जनन काफी अच्छे से होता है । इसका मतलब है कि इंसानों में तो अंगों का पुनर्जनन बहुत कठिन होगा । 

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