मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

 हमारा भूमण्डल
विश्व के सर्वाधिक जहरीले स्थान
जोई लोफ्ट्स फेरीन

    अमीर देशों की बढ़ती उपभोक्ता  मांग के चलते अल्प विकसित एवं विकासशील देश जहरीले प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं । विश्वभर से जहरीला कचड़ा इकट्ठा होकर घाना जैसे देशों में पहुंचता है और वहां वह उपचारित होता है । वहीं दूसरी ओर रसायन निर्माण इकाईयां स्थानीय लोगों की आयु घटा रही है और सोने का खनन लोगों की जान पर भारी पड़ रहा है ।
    ग्रीन क्रास स्विटजरलैंड एवं अमेरिका स्थित ब्लेकस्मिथ इंस्टिट्यूट ने हाल ही में दुनिया के दस शहरों को एक यथार्थवादी संज्ञा  देते  हुए इन्हें  मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक जहरीला स्थान निरुपित किया है । घाना में स्थित ई-वेस्ट (इलेक्ट्रानिक अपशिष्ट) से लेकर इंडोनेशिया में सोने की खदान वाला क्षेत्र और बांग्लादेश में चमड़ा सफाई संकुल इन दस सर्वाधिक जहरीले खतरों में शामिल हैं जो कि जहरीले प्रदूषण के वैश्विक संघर्ष पर प्रकाश डालते हैं । ये स्थान ब्लेकस्मिथ इंस्टिट्यूट द्वारा विश्वभर में ३००० जहरीले स्थानों, जिनकी संख्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है, में से चुने गए हैं । इनका चयन वहां जहरीले प्रदूषकों की मौजूदगी, लोगों के उसके संपर्क में आने की मात्रा और खतरे में लोगों की संख्या के आधार पर किया गया है ।
     जहरीले प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य  को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है । यह कैंसर शारीरिक दुर्बलता, अंगों को नुकसान एवं श्वास संबंधी समस्याओं का जाना-माना कारण है । अनुमान है कि विश्वभर में २० करोड़ लोगों के स्वास्थ्य को प्रदूषण से खतरा है । स्विटजरलैंड स्थित ग्रीनक्रास के  डॉ. स्टीफन रॉबिन्सन का कहना है कि प्रदूषण से होने वाली मृत्यु की तुलना एचआईवी एवं तपेदिक से की जा सकती है । जबकि उपरोक्त समस्याओं से निपटने के लिए वैश्विक तौर पर अरबों डॉलर के कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए इस तरह की पहल का सर्वथा अभाव है । ब्लेकस्मिथ इंस्टिट्यूट के वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक ब्रेट इरिक्सन का कहना है, हमारे आंकड़ों (३००० जहरीले स्थानों के आधार पर) में सर्वाधिक बड़ा मुद्दा अनौपचारिक तौर पर बैटरियों को पिघलाना है और कुआें के माध्यम से सोने का खनन वैश्विक तौर पर प्रदूषण दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है ।
    रूस का ड्झेरझिंक जिसे १० जहरीले स्थानों में शामिल किया गया है, में रसायन निर्माण के लंबे इतिहास के परिणामस्वरूप एवं अव्यवस्थित अपशिष्ट निदान की वजह से हालात विशेष रूप से खराब हैं । यहां निवास करने वाले पुरुषों की औसत आयु ४२ वर्ष एवं महिलाओं की ४७ वर्ष है। नाईजीरिया के नाइजर नदी घाटी में सन् १९७६ से अब तक तेल के करीब ७००० कुएं खोदे जा चुके हैं । इसकी वजह से यहां के निवासियों में कैंसर एवं श्वास संबंधी बीमारियों के में वृद्धि हुई है इसी के साथ स्थानीय बच्चें की  बीमारियों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है । कम एवं मध्य आय वाले देशों में जहां खनन एवं निर्माण उद्योग बहुतायत में हैं के पर्यावरणीय नियमन कमजोर हैं और पर्यावरण को सुधारने के लिए धन की कमी है । ऐसे अधिकांश जहरीले स्थान वहीं पर पाए जाते हैं । इरिक्सन का कहना है कि ``कुल मिलाकर उच्च् आय वाले देशों ने इस समस्या से पार पा लिया है । हम यह मान बैठे है कि हमने पर्यावरण प्रभाव आकलन कर लिया है।
    ब्लेकस्मिथ इंस्टिट्यूट के सहायक निदेशक डॉ. जेक कारवानोस का मानना है कि, ``विश्वभर का जहरीला प्रदूषण अंतत: घूमकर उच्च् आय देशों द्वारा की गई उपभोक्ता मांग के कारण लौटकर उन्हीं के पास पहुंचता है। (अमेरिका में) आपका सारा शरीर मूलभूत रूप से उन रासायनिक तत्वों से ढका हुआ है जो कि अन्य देशों से इसलिए आता है, क्योंकि ये देश तो इनका उपयोग करने में समर्थ ही नहीं हैं ।`` इतना ही नहीं इन्हें विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठ न एवं एशिया विकास बैंक जैसे आंचलिक एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों से धन प्राप्त होता है । इरिक्सन का यह भी कहना है कि ``इन्हें उपचारित करने की राह का बड़ा रोड़ा खतरनाक अपशिष्ट के भराव हेतु जमीन की कमी है । कुछ मामलों में उपचार करने हेतु काफी समय भी लगता है । चेरनोबिल के आसपास का क्षेत्र आगामी २०० से ३०० वर्षों तक न तो रहने और ना ही आर्थिक उद्देश्यों के  लिए काम में आ सकता है ।
    प्रदूषण की तस्वीर डरावनी नजर तो अवश्य आ रही है, लेकिन कुछ अच्छी खबरें भी हैं। सन् २००७ में नामित दस सर्वोच्च् जहरीले खतरों वाले कुछ स्थल इस बार की सूची में नहीं हैं । कम से कम ऐसा एक स्थान है डोमिनिकन गणराज्य के लेड बैटरी गलन क्षेत्र को उपचार सुविधा के  माध्यम से पूरी तरह से उपचारित कर दिया गया है और इसके परिणामस्वरूप स्थानीय बच्चें के स्वास्थ्य में सुधार भी हुआ है ।     हाल ही के वर्षों में कुछ सरकारों ने जहरीले प्रदूषण से निपटने में खास प्रतिबद्धता दर्शाई है । उदाहरण के लिए भारत ने इस दिशा में व्यापक कार्य प्रारंभ किया है। साथ ही यहां राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष की स्थापना भी की गई है, जो कि इन प्रदूषित क्षेत्रों के पुनरूद्धार का कार्य करेगा ।

कोई टिप्पणी नहीं: