विज्ञान, हमारे आसपास
जीवित टिमटिमाते तारे
नरेन्द्र देवांगन
उस दिन मेन की खाड़ी के आकाश पर संध्या का प्रकाश तेजी से सिमट रहा था । परन्तु जल की सतह से २५० मीटर नीचे, जहां सूर्य की किरणें भी कभी नहीं पहुंच पाती, समुद्र जगमगा उठा । अब तो गहरे में गोता लगाने वाली वह मिनी पनडुब्बी तक किसी और ही दुनिया के दिव्य से आलोक मेंनहा उठी ।
पनडुब्बी अब छोटी-छोटी कांब जेलीफिश के झुंड के बीच आगे बढ़ी तो मछलियों ने प्रकाश के दसियों लाख नीलाभ हरे बिन्दु छोड़ दिए । कॉकपिट में हार्बर ब्रांच ओशियानोग्राफिक इंस्टीट्यूट की एडिथ बिडर हर ओर बहते उजाले क्की धारा को विस्मित नेत्रों से देखती रही । उनका कहना है कि रोशनी इतनी तेज थी कि वाहन के डायलों को बखूबी पढ़ा जा सकता था ।
जैव संदीिप्त् के ऐसे दृश्य मानव जाति को तभी से विस्मित करते आ रहे है जब चीनियों ने आग छोड़ती मक्खियों को देख ३ हजार वर्ष पूर्व हैरानी व्यक्त की थी । जीवाणुआें से लेकर शार्क मछलियों तक दर्जनों ऐसे जीव है जो सहवास या आहार के दौरान अथवा खतरे को टालने के लिए अपनी रोशनी जला लेते हैं । अब अनुसंधान से संकेत मिलते हैं कि मानव को दिन के इस जीवित प्रकाश से कैसे लाभ प्राप्त् हो सकता है ।
जीवों के बहुत से वर्गो में ऐसी प्रजातियां है जो अंधेरे में चमकती हैं । इन दमकने वालों में केचुए हैं, पतंगे है, स्पंज है, समुद्री मृदुकवची हैं, जेलीफिश हैं, घोंघे और ऑक्टोपस हैं । चमकने वाले सूक्ष्म प्लवक जैसी संदीप्त्शिील वनस्पतियां भी हैं जो प्योर्टो रिको की फॉस्फोरेसेंट खाड़ी में अंधेरा होने के बाद तैरने वालों पर नीलाम श्वेत रोशनी फेंकती हैं । फिर जापान की जहरीली मूनलाइट खुंबी तो बढ़ते-बढ़ते १५ सेंटीमीटर व्यास तक पा लेती है ।
कई चीजें अंधेरे में अपने आप चमकने लगती हैं तो बहुत से लोगों को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं होता । न्यू जरसी के कार्टरेट की ही पुलिस को उस समय विकटतम घटना की आशंका हुई जब उसे विषाक्त रिसावों के लिए कुख्यात आर्थर किल जल मार्ग में, भूतिया हरी रोशनी देखे जाने के बारे में फोन आने लगे । संघीय तथा प्रांतीय दुर्घटना राहत दल सफाई के यंत्र लेकर पहुंचे, परन्तु उन्हें आवश्यकता नहीं पड़ी । यह रोशनी संदीप्त्शिील जेलीफिश के उस झुंड से आ रही थी जो जलधाराआें के साथ उधर बह आई थी ।
बिजली के तापदीप्त् बल्ब में तो विद्युत धारा के प्रतिरोध की गर्मी से चमक पैदा होती है जबकि जैव संदीिप्त् उन दो पदार्थो से पैदा होती है, जिन्हें जीव प्राकृतिक रूप से पैदा करते हैं - ल्यूसिफरीन तथा लूसीफरेस एन्जाइम । चूंकि प्रकृति में ये दोनों पदार्थ कई रूपों में पाए जाते हैं, इसलिए उनकी रोशनी का रंग भी भिन्न- भिन्न होता है । अधिकांश समुद्री जीव नीली रोशनी पैदा करते हैं, जो पान में अन्य रंगों की अपेक्षा अधिक दूरी तक जाती है । थल पर रहने वाले जीव व्यापक वर्णक्रम के रंगों का प्रयोग करते हैं, जैसे मध्य तथा दक्षिण अमरीका का रेलमार्गीय कृमि । यह एक गुबरैले का लार्वा है जिस पर लाल दमक वाली हेडलाइट और ११ जोड़ी हरित पीली पार्श्व रोशनियां होती हैं । अत: यह रात के अंधेरे में दौड़ती किसी सवारी रेलगाड़ी सा लगता है ।
रोशनी की गहनता भी न्यूनाधिक मिलती है । एक अकेले जीवाणु की नीली चमक इतनी कम होती है कि कई खरब मिलकर इतनी कम होती है कि कई खरब मिलकर ही ६० वॉट के बिजली के बल्ब के बराबर रोशनी पैदा कर पाते हैं । दूसरी ओर, केरेबियाई अग्नि गुबरैले के पेट पर ह्वदयाकार नारंगी रोशनी होती है, और कंधों पर दो हरित पीली बत्तियां होती हैं । ये इतनी तेज रोशनी देती हैं कि स्थानीय महिलाएं इनका उपयोग केश सज्जा तक में करती है ।
अब तक वैज्ञानिकों ने जुगनुआें की २ हजार प्रजातियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले १३० विविध संकेतों का पता लगाया है । अपनी नयनाभिराम झांकी की दृष्टि से दक्षिणपूर्व एशिया के उन नर जुगनुआें को मात देना आसान नहीं है जो एक साथ मिलकर किसी भी पेड़ पर बैठ जाते हैं और किसी चमचमाते क्रिसमस वृक्ष सा दृश्य उपस्थित करते हुए मादाआें को रिझाने के लिए एक साथ टिमटिमाने लगते हैं । थाईलैंड के कुछ भागों में तो ये इश्तहारी जुगनू एक क्रम से चमक कर पेड़ों की कतारों को लयबद्ध ढंग से जगमगाते रहते हैं ।
दमक का अत्यधिक प्रदर्शन आकर्षण तथा कपट के कालेनाटक तक को छिपाए रख सकता है । मादा जुगनू की एक ऐसी कौंध नर को जहां यह कह सकती है, मुझे थाम लो, मैं तुम्हारी हॅूं । तो एक दूसरी दमक यह जता देती है, परे रहो, मैं विकट स्वाद लिए हॅूं ।
एक परभक्षी किस्म की मादाएं दूसरी प्रजाति के भोले-भोले नर जुगनुआें को प्रेमभरी दमक स लुभा लेती हैं । फिर वे उस बेखबर प्रेमी को निकल भागने का मौका दिए बिना चट भी कर जाती हैं ।
न्यूजीलैंड की वेटोमा गुफाआें के दीप्त्शिील कृमि एक अन्य प्रकार की चाल चलते हैं । भूमिगत कंदराआें की छत से लटकते इनके लार्वा के झुंड घुप अंधेरे आकाश में टिमटिमाते तारों जैसे लगते हैं । गुुफाआें के कीट भी परोक्ष रू से यही समझते हैं और जैसे ही वे बाहर निकलने की राह की खोज में ऊपर की ओर उड़ते हैं नीचे झूलते इन चिपचिपे धागों में फंस जाते हैं । फिर ये रेंगते दीप्त्शिील कृमिलाचार शिकार को चट कर जाते हैं ।
कुछ जीव, जो अपनी खुद की रोशनी पैदा नहीं कर पाते, वे दमक उधार भी ले सकते हैं । गहरे समुद्र की एंगलर मछली शिकार को अपने सूई से तीखे दांतों के ठीक सामने आकृष्ट करने के लिए अपने माथे पर दमकने वाले जीवाणुआें से भरी थैली झुलाती चलती है । ऑस्ट्रेलिया की याबू मछली दमकने वाले जीवाणु लिए घूमती है जिसके कारण उसका निचला भाग पानी की सतह से आने वाली पृष्ठभूमि रोशनी से सामंजस्य बनाए रखता है । इसकी छ्दम प्रौघोगिकी इतनी प्रखर है कि आकाश पर उड़ते बादलों की छाया भर से उसकी अपनी रोशनी बदल जाती है ।
चमकने वाले जीव युगों से मानव इतिहास के तानेबाने में बुने हुए हैं । अमरीका पहुंचने से पहली रात को क्रिस्टोफर कोलबंस ने समुद्र में घूमती मोमबत्तियों के रूप में जिनका उल्लेख किया था वे शायद संगम ऋतु बरमुड़ा जुगनू कीटों के समूह थे । सन १६३४ में क्यूबा तट की ओर बढ़ते ब्रिटिश जहाजों को तट पर चमकती असंख्य रोशनियों के कारण हमले का इरादा छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें लगा कि वहां कड़ी प्रतिरक्षा व्यवस्था थी । इतिहासकारों को अब संदेह है कि प्रतिरक्षक वास्तव में हजारी चमकने वाले गुबरैले ही थे जिन्हें कुकूजो कहते हैं ।
वर्षो से लोगों जैव संदीिप्त् के दोहन के प्रयास भी किए हैं । १७वीं शताब्दी के दौरान, स्वीडन के किसान अत्यन्त ज्वलनशील भूसे के मचानों में रोशनी करने के लिए चमकने वाली फफूंद लगी लकड़ी का प्रयोग करते थे । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सिपाही बिना अपना पता दिए नक्शे पढ़ने के लिए एक चमकने वाले सिप्रिडाइना (वर्गुला हिल्जेनडोर्फी) को कुचल कर हथेलियों पर मल लेते थे ।
जार्जिया के सीलाइट साइंसेज, इनकारपोरेटेड के अनुसंधानियों ने ऐसे परीक्षणों का विकास किया है जिनमें ४ विभिन्न हारमोनों के स्तर को मापने के लिए चमकने वाली जेलीफिश के जीन्स का प्रयोग किया जाता है । चमकने वाले जीवाणु वास्तव में एक दिन खदान मजदूरों की कैनेरी चिड़ियों के सूक्ष्म विकल्प के तौर पर काम करने लगेंगे । मॉन्ट्रीअल में मैकगिल विश्वविघालय के विज्ञानियों ने ऐसे जीवाणु का विकास किया है जो एलुमिनियम, पारा और अन्य धातुआें के पास आते ही चमकने लगता है ।
वैसे सभी अनुसंधान बहुत फलमूलक नहीं है । कैलिफोर्निया विश्वविघालय के वनस्पति रोग विज्ञानी क्लैरेंस कैडो कुछ अधिक व्यापक विचार रखते हैं । उनका तर्क है, विज्ञान यदि सोयाबीन की जड़ों को चमका सकता है, तो क्यों न पेड़ों को भी दमका दिया जाए ? अत: कैडो ने बहिरंग प्रकाश व्यवस्था के लिए एक नया शोध आरंभ किया है - जैव संदीिप्त् से चमकता क्रिसमस वृक्ष ।
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