गुरुवार, 18 अगस्त 2016

 प्रदेश चर्चा
म.प्र. : बर्बादी की राह पर तालाब
अमिताभ पाण्डेय 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को तालाबों का शहर कहा जा सकता हैं। ११ वीं शताब्दी में राजा भोज ने यहां एक विशाल तालाब बनवाया था । आज यह अपने मूल आकार से एक चौथाई भी नहीं रह गया है। इसके बावजूद इस पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। आवश्यकता है कि समाज जागरूक होकर अपने तालाबों को बचाए । यदि तालाब बचेंगे तो ही हम भी बचेंगे ।
मध्यप्रदेश में प्रशासन की उदासीनता, अफसरों-कर्मचारियों की मिलीभगत और भू माफिया की बुरी नियत के चलते यहां तालाबों के अस्तित्व पर संकट बढ गया है। इन्दौर के पीपल्याहाना तालाब से लेकर भोपाल के बड़े तालाब तक को खत्म करने की कोशिश पूरी शिद्दत से जारी है । 
हद तो यह है कि सरकार व प्रशासन के जिन अफसरों पर जलस्त्रातों को बचाने की जिम्मेदारी है, वे खुद ही तालाबों को खत्म करने के प्रयासों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। तालाबों के आसपास अतिक्रमण करने वालों की पहुंच तालाब के  दायरे और उसकी सीमाओं को लगातार कम कर रही हैं। सरकार के जो प्रतिनिधि पानी बचाने की बात करते हैं वे खुद ही तालाबों का पानी कम कर देना चाहते हैं। इसके लिए तालाबों के पूरा भर जाने के पहले ही पानी बहाया जा रहा है । 
इस संदर्भ में राजधानी भोपाल के बड़े तालाब का जिक्र करना जरूरी होगा । हाल ही में हुइ्र् बारिश के बाद पूरा भर जाने के  पहले ही इसे थोड़ा खाली करवा दिया गया । भोपाल शहर की पहचान का प्रतिरूप बड़े तालाब का पानी उच्च्तम स्तर १६६६.८० फीट तक पहुंचने केे पहले ही इस वर्ष उसे थोडा खाली करा दिया गया । पूरा भरने के पहले ही भदभदा के गेट इसके पहले शायद कभी नहीं खोले गये थे । सवाल उठता हैंकि इस बार जब पानी का स्तर १६६५ फीट तक पहुंचा तभी भदभदा के गेट खोलने की जरूरत क्यों पड़ गई ? 
इस मामले में कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण कर पक्के निर्माण कर लिये हैं अत्यधिक वर्षा से बड़े तालाब का पानी वहां तक जा पहुंचा था । कैचमेंट एरिया में पक्के निर्माण करने वाले ज्यादातर लोग राजनीतिक व प्रशासनिक प्रभाव वाले हैं और उन्होंने पानी को पक्के निर्माण के आसपास ज्यादा फैलने से रोकने के लिए भदभदा के तीन गेट खुलवा दिये और उनकी तरफ आ रहे पानी को बाहर करवा दिया । 
उल्लेखनीय है कि १२ जुलाई को बड़े तालाब का पानी भदभदा बांध के तीन गेट खोलकर बाहर कर दिया गया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ,महापौर आलोक शर्मा की मौजूदगी में बांध के तीन गेट खोले गये थे । इसके बाद तालाब में पानी का स्तर कुछ कम तो हो गया लेकिन भदभदा के रास्ते बहनेवाला पानी अपने पीछे कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया है । ये सवाल बेवक्त  और बेवजह पानी छोड़ने के पीछे के दबाव-प्रभाव की ओर संकेत करते हैं । यह दबाव निश्चित रूप से उन लोगों का हो सकता है जिनके द्वारा तालाब के कैचमेंट एरिया में अवैध निर्माण कर लिया गया है । 
हाल ही में एक पखवाड़े तक हुई जोरदार बारिश के बाद बड़े तालाब का पानी कैचमेंट एरिया में तो फैला ही साथ ही यह पानी नगर निगम द्वारा बनाई गई रिटेनिंग वाल को भी पार कर गया। बढ़ते पानी से कैचमंेट एरिया मेंे बने एक विशाल निजी अस्पताल को भी खतरा पैदा हो गया था । यदि पानी तुरंत खाली नहीं करवाया जाता तो इस निजी अस्पताल के आसपास ज्यादा पानी भर जाने की आशंका  थी । शायद इसीलिए निजी अस्पताल के मालिकों ने अपने राजनीतिक सम्पर्क का इस्तेमाल कर भदभदा बांध के तीन गेट खुलवा दिये । यहां साढ़े १४ घंटे तक खुले रहे तथा  इनसे ३०४.५ क्यूबिक मीटर पानी बहा दिया   गया । पानी बह जाने के बाद नगर निगम द्वारा बनवाई गई रिटेनिंग वाल पुन: नजर आने लगी ओैर निजी अस्पताल के आसपास भरा पानी भी कम हो गया ।   
इस बारे में भोपाल के पर्यावरणविद डा. सुभाषचन्द्र पाण्डेय का कहना है कि किसी भी जलाशय को उसके सर्वोच्च् स्तर तक पहुंचने के पहले खोला ही नहीं जाना   चाहिये । उन्होंने कहा कि बड़े तालाब को पूरा भरने से पहले ही उसका पानी बहा देना एक तरह का गलत कदम है और पेयजल की कीमत पर कुछ लोगों के निजी हितों की रक्षा की जा रही है । इस बारे में सूत्रों का कहना है कि बड़े तालाब के कैचमंेट एरिया में एक विशाल निजी अस्पताल से लेकर आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ प्रशासनिक अफसरों के फार्म हाउस हैं।  
उच्च् न्यायालय के अधिवक्ता सिध्दार्थ गुप्ता का कहना है कि भोपाल में बड़े तालाब के केचमेंट एरिया से लेकर छोटे छोटे नालों तक पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि नगर निगम, राजस्व सहित अन्य विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना कैचमंेट एरिया व नालों पर अतिक्रमण किया ही नहीं जा सकता है । जो भी अतिक्रमण हुआ है उसके लिए अधिकारी भी जिम्मेदार हैं। श्री गुप्ता ने कहा कि यदि बड़े तालाब के कैचमंेट एरिया के आसपास इसी तरह अतिक्रमण बढ़ते रहे तो आनेवाले कुछ वर्षों में यह एक छोटी सी तलैया में बदल जायेगा । 
अपने स्वार्थ की खातिर इस विशाल तालाब के मूल स्वरूप को नुकसान पहुंचाने वालों की पहचान कर उन पर कड़ी कार्यवाही की जाना चाहिये अन्यथा आनेवाले समय में इसके किनारों पर आलीशान होटल, फार्म हाउस, निजी अस्पताल आदि की संख्या बढ़ती चली जायेगी और इसका जलभराव क्षेत्र लगातार सिमटता जायेगा । 
गौरतलब है भोपाल में एक जमाने मंे लगभग दो दर्जन विशाल तालाब हुआ करते थे जिनकी पहचान अब खत्म सी हो गई है । अदालती दांव-पंेच और तारीख पर तारीख लगने से तालाबों पर कब्जा करने वालों के हौसले बुलंद हुए जिसका परिणाम यह है कि ताल तलैयों का शहर कहलाने वाले इस शहर में तालाबों के सामने खुद को बचाये रखने की चुनौती बढ़ती जा रही है । 
गौरतलब है कि भोपाल ही नहीं प्रदेश के अन्य महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक के जलस्त्रोत अतिक्रमण करने वालों के कारण अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं । इस सन्दर्भ में मध्यप्रदेश के सबसे बड़े इन्दौर शहर का जिक्र करना जरूरी होगा जहां होल्कर राज्य के समय बने पीपल्याहाना तालाब पर मिट्टी डालकर न्यायालय परिसर बनाने की तैयारी की जा रही थी । जब जनप्रतिनिधि और समाजसेवी इसके विरोध मंे एकजुट हुए तो निर्णय में बदलाव का आश्वासन मिला ।  दलगत राजनीति को भुलाकर भोपाल के नेता और समाजसेवी भी यदि आम जनता के साथ ऐसी एकजुटता दिखाये तो बड़े तालाब के अच्छे दिन फिर लौट सकते हैं, वरना अतिक्रमण करने वालों की बुरी नजर तो इसे लग ही गई है ।

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