शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

१३ पर्यावरण समाचार

केवलादेव उद्यान का नया रूप निखरा
विलायती बबूल को जड़ से उखाड़ने के जन भागीदारी अभियान की बदौलत राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर का रूप निखर गया है । पिछले डेढ़ दशक से करोड़ों की संख्या में कुकुरमुत्ते की तरह विदेशी बबूल (प्रौसोफिस ज्यूलीफिलोरा) ने इस उद्यान को एक तरह से लील लिया था । इस कारण स्थानीय प्रजाति के बेर, हींस, पीलू, कदम्ब, जामुन इत्यादि पेड़-पौधे विलायती बबूल की जकड़न में आ गए थे और विभिन्न वन्य जीवों के स्वछंद विचरण में बाधा उत्पन्न हो गई थी । इस वर्ष के आरंभ में उद्यान के निदेशक सुनयन शर्मा की पहल पर केवलादेव उद्यान को विलायती बबूल से मुक्त करने के इस अनुष्ठान में निकटवर्ती १५ गाँवों के लगभग ३ हजार परिवारों को जुटाया गया। लोकतांत्रिक तरीके से ग्रामसभा की समितियों की बैठक बुलाकर गरीब और पिछड़े तबके के परिवारों को वरीयता देकर बबूल के पेड़ उखाड़ने के लिए निर्धारित खेत्र का आवंटन किया गया । इन परिवारों के स्त्री पुरूष और युवा अपना पसीना बहाकर सात-आठ फुट तक गहरे ग े खेदकर इन पेड़ों को जड-मूल से उखाड़ रहे हैं । अपने परिश्रम के रूप में इन पेड़ों से निकली जलाऊ एवं इमारती लकड़ी उन्हें ले जाने की छूट दी गई है। केवलादेव उद्यान प्रशासन ने विलायती बबूल को जड़ से उखाड़ने को वरीयता दी और उसके साथ ही परिवार विशेष को आवंटित क्षेत्र से बबूल के अन्य छोटे पौधों का सफाया कर इलाके को साफ सुथरा बनाने की जिम्मेदारी सौंपी । पारदर्शिता के साथ इस पूरे कामकाज का रामनगर मल्हा तथा अन्य ब्लॉक के अनुसार व्यवस्थित रिकार्ड भी रखा गया । स्वच्छ प्रतिस्पर्धा के साथ उद्यान के निकटवर्ती गाँवों के लोग ग्रामीण और पर्यावरण मित्र के रूप में इस अनुष्ठान से जुड़े हैं । उद्यान निदेशक के अनुसार विलायती बबूल उन्मूलन अभियान के सरकार पर कोई वित्तीय बोझ नहीं आया है । बल्कि इससे अर्जित लकड़ी बेचकर कई परिवार कर्जे से भी मुक्त हुए हैं । विलायती बबूल के पेड़ों से पैदा होने वाले बीजों की फलियाँ खाकर मींगनी के रूप में छिछली झीलों सहित उद्यान क्षेत्र में विलायती बबूल की अप्रत्याशित वृद्धि ने इस उद्यान के अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर दिया था लेकिन इस अभियान ने उद्यान को नवजीवन प्रदान किया है । छिछली झीलों में काफी संख्या में उग आए विलायती बबूल के पौधों को राज्य सरकार के स्तर पर नष्ट करने के लिए वित्तीय संसाधनों की जरूरत है ।

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