बुधवार, 21 मई 2008

८ पर्यावरण परिक्रमा

चीन में बनेगा पांडा प्रजनन केन्द्र
चीन के सिचुआन प्रांत में विश्व का सबसे बड़ा पांडा (द ग्रेट वाइट पांडा) प्रजनन केन्द्र बनने जा रहा है । ऐसा माना जा रहा है कि यह नया नेचर रिजर्व विश्व की इस अत्याधिक लुप्त्प्राय प्रजाति के २०० जीवों के लिए नया घर साबित होगा । उल्लेखनीय है कि ग्रेट वाइट पांडा दुनियाभर में पांडाआें की मिलने वाली प्रजातियों में से सबसे बड़ा है । वेलोंग नेचर रिजर्व के प्रमुख झांग हेमिन के अनुसार इस रिजर्व में कुल २० आउटडोर होम्स होंगे और २०,००० वर्ग मीटर का मैदान भी होगा । उल्लेखनीय है कि चीन दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ पांडा पाया जाता है । वहाँ सिचुआन, गंसू और शांझी प्रांतों के नेचर रिजर्व में १६०० पांडा प्राकृतिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इसके अलावा २१७ पांडा वहाँ के चिड़ियाघरों में भी हैं । वोलोंगे नेचर रिजर्व कुल २००० वर्ग किमी में फैला हुआ है और चीन का पहला ऐसा रिजर्व है जो सिर्फ पांडाआें के लिए बनाया गया है । इस नेचर रिजर्व में साल के अंत तक १३० पांडाआें के प्रजनन कराने की योजना है । वैसे इन पांडाआें में से आठ पांडाआें को बीजिंग भेजा जाएगा जहाँ ओलिम्पिक खेलों के दौरान आने वाले पर्यटक इन्हें देख सकेंगे । चीन को विश्वास है कि ये पांडा पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षिक करेंगे ।
तंबाकू कंपनियों ने दिग्गजों को खरीदा था
यह जानी मानी बात है कि जब धूम्रपान के खतरे में स्पष्ट सामने आने लगे है, तो दुनिया की तंबाकू कंपनियों ने पैसा देकर ऐसे शोध करवाए थे कि धूम्रपान के खतरे कम दिखें । अब पता चला है कि तंबाकू कंपनियों ने कुछ दिग्गज बुद्धिजीवियों को धूम्रपान की वकालत करने के लिए भी पैसे दिए थे । लोगों के दिल-दिमाग पर असर डालने के लिए तंबाकू कंपनियों ने अर्थशास्त्रियों, दार्शनिकों और समाज वैज्ञानिकों का एक पूरा नेटवर्क तैयार किया था । हाल ही में उजागर हुए दस्तावेजों से पता चला है कि इस नेटवर्क के सदस्यों ने धूम्रपान के पक्ष में जोरदार अभियान छेड़ा था । कैलीफोर्निया विश्वविद्यलाय के विशेषज्ञों के साथ मिलकर इन दस्तावेजों का एक अध्ययन कोलरैडो की एन लैण्डमैन ने प्रकाशित किया है । उन्हें उक्त दस्तावेज लीगेसी टोबेको डाक्यूमेंट्स लायब्रेरी से प्राप्त् हुए । इस लायब्रेरी में तंबाकू उद्योग से संबंधित ८० लाख दस्तावेज संग्रहित हैं, जिन्हें हाल ही में सार्वजनिक किया गया है । दस्तावेजों से पता चलता है कि मनोवैज्ञानिक हैन्स आइसेन्क और दार्शनिक रॉजर सक्रटन इस नेटवर्क से निकटता से जुड़े थे । यह नेटवर्क १९७० के दशक में अस्तित्व में आया था । यही वह समय था जब धूम्रपान के खतरों पर व्यापक बहस छिड़ी हुई थी । दस्तावेज बताते हैं कि दुनिया की सात प्रमुख सिगरेट कंपनियों की एक बैठक १९७७ में हुई थी जहां `मिलकर काम करने का निर्णय लिया गया था । इन कंपनियों में फिलिप मॉरिस, ब्रिटिश अमेरिकन टोबेको और रॉथमैन्स शामिल थीं । इस अभियान में ऐसे अकादमिक लोगों को जोड़ा गया, जो तंबाकू पर प्रतिबंध के खिलाफ थे । जैसे कुछ अर्थ शास्त्रियों द्वारा यह सवाल उठवाया गया कि क्या धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने से कोई वित्तीय लाभ मिलेगा । इसी प्रकार से एक मानव वैज्ञानिक को जोड़ा गया जिसेन दलील दी कि धूम्रपान से लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं । यानी धूम्रपान के सामाजिक फायदे हैं । इसी प्रकार से हैन्स आइसेन्क ने बताया कि तंबाकू से जुड़ी बीमारियां वास्तव में जिनेटिक कारणों से होती है । इन सारे मामलों में यह कभी नहीं बताया जाता था कि उक्त विचारों के प्रस्तुतीकरण का तंबाकू उद्योग से क्या संबंध है । जैसे १९८५ में एक किताब छपी थी स्मोकिंग एण्ड सोसायटी : टुवर्ड्स ए मोर बेलेंस्ड पर्स्पेक्टिव । यह पूरी तरह उद्योग द्वारा प्रायोजित थी मगर इसका जिक्र नहीं था । इसी प्रकार से १९९८ में रॉजर स्क्रटन ने दी टाइम्स में धूम्रपान के पक्ष में तर्क दिया था कि धूम्रपानी लोग स्वास्थ्य सेवाआें पर कम दबाव डालते हैं क्योंकि वे जल्दी मर जाते हैं । बाद में पता चला कि स्क्रटन को जापान टोबेको इंटरनेशनल से वार्षिक भुगतान प्राप्त् होता था । तंबाकू कंपनियों ने १९९० के दशक में ५० लाख डॉलर देकर एसोसिएशन फॉर रिसर्च इन्टु दी साइन्स ऑफ इन्जॉयमेंट की स्थापना करवाई । यह समूह स्वास्थ्य में `शुद्धतावाद' के खिलाफ प्रचार करता था ।
हिमांचल प्रदेश की केन्द्र सरकार से बंदर निर्यात की गुहार
हिमाचल प्रदेश की सरकार ने केंद्र सरकार से कहा है कि बंदरों के निर्यात को प्रतिबंध से तत्काल मुक्त किया जाए। फिलहाल हो यह रहा है कि हिमाचल में बंदरों की सेंना फसलों को खराब कर रही है । इससे सरकार, को खासा नुकसान हो रहा है । वन विभाग की ओर से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखा गया है, जिसमें कहा गया है कि बंदरों के निर्यात पर पिछले ढाई दशक से लगे प्रतिबंध को समाप्त् किया जाए । वन विभाग के सूत्रों ने यह जानकारी दी दरअसल १९८२ में केन्द्र सरकार ने पशुआें के अधिकारों की आवाज उठाने वाले लोगो की बात मानते हुए बंदरो के निर्यात पर रोक लगा दी थी।तब से यह पूरे देश मेंलागू है । बंदरो का निर्यात अमेरिका और ब्रिटेन के लिए प्रतिबंधित किया गया है । दरअसल इन देशो में बंदरो पर प्रयोग किए जाते है, इसके लिए जमकर पैसा दिया जाता है । हिमाचल में अभी करीब ३.५ से ४ लाख बंदर मौजूद हैं । इसीलिए प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से बार-बार निवेदन कर रही है कि वह अपने ढाई दशक पुराने फैसले पर फिर से सोचे । बंदरों के निर्यात की अनुमति के अलावा हिमाचल सरकार न इस समस्या से निपटने के लिए कई दूसरे प्रयास भी किए है । इसमें विशेष रुप से बागवानी और खेती करने वालों का सहयोग लिया जा रहा है । हिमाचल के वन मंत्रालय के मुताबिक वानरों द्वारा की जा रही उधम को रोकने के लिए गंभीर प्रयास जारी हैं। कई बार लेसर तकनीकी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है ।
बांस की पूर्ण क्षमता के दोहन की मांग
बांस उत्पादन और बिक्री पर पिछले दिनोंनई दिल्ली में त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमें इस असाधारण पौधे की क्षमता के दोहन की मांग की गई । इस सम्मेलन का उद्घाटन पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री एस रघुपति द्वारा किया गया। इस अवसर पर कृषि एवं सहयोग विभाग के सचिव, डा. पीके मिश्रा, डीए आरई के सचिव और आई सीए आर के महानिदेशक डा. मंगला राय और आईएनबीए आर (इंटरनेशनल नेटवर्क आन बप्अू, आईएनबीएबार) की महानिदेशक डा. जे कूस्जे हूगेन्दूर्न ने भी अपने वक्तव्य दिए । श्री रघुपति ने वनवासियों के जीवनयापन से सुुधार लाने और रोजगार उत्पन्न करने में बांस की अत्यधिक क्षमता के बारे में बताया । डा. मिश्रा ने पिछलने एक वर्ष में राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा की गई प्रगति का विस्तृत विवरण दिया । यह मिशन बांस उत्पादन में खासतौर पर पूर्वोतर में सफल रहा है और कुशल और अकुशल युवाआें के लिए रोजगार उत्पन्न करने मेंभी सफल रहा है । उन्होने कहा कि इस मिशन ने विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट रणनीतियों का विकास किया है । डा. मिश्रा ने यह भी कहा की बांस उत्पादन एवं संवर्द्धन के लिए बहुत देशों में संशोधित प्रौद्योगिकी उपलब्ध है और भारत इसका लाभ उठा सकता है । डी ए आर ई के सचिव और आईसीएआर के सचिव डा. मंगला राय ने जोर देते हुए कहा कि बांस उत्पादन पर्यावरण को मदद करता है । और बांस इस ग्रह पर सबसे तेज बढ़ने वाला पादप है और अवक्रमित भूमि को हरा-भरा करने के लिए सर्वोत्तम छतरी प्रदान करता है । डा. राय ने कहा कि बांस एक टिकाऊ प्राकृतिक संसाधन है और पूरे विश्व में २.२ बिलियन से अधिक लोगों को आमदनी, भोजन एवं आवास प्रदान करता है । डा. हूगेन्दूर्न ने विविधता के क्षय एवं सामुदायिक स्तर पर मानकीकरण एवं बांस संवर्धन में प्रशिक्षण के अभाव पर चिंता व्यक्त की । उन्होंने भारत समेत अनेक देशों में बांस उत्पादन द्वारा आमदनी बढ़ाने में सहयोग के उदाहरण दिए । इस सम्मेलन में ३५ देशों के वैज्ञानिक किसान उद्यमी, गैर सरकारी संगठन और राज्य सरकार के प्रतिनिधि ने भाग लिया । इम्प्रूवमेंट ऑफ बम्बू प्रोडक्टिविटी एवं मार्केटिंग फार ससटेनेबुल लाइवलीहूड शीर्षक वाला यह सम्मेलन बांस की उत्पादकता और बांस उत्पादन के व्यापार से संबंधित मुद्दों में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित कर दिया है । बांस रोपण सड़क किनारे, खेतों की मेड़ों पर एवं घरो के अहातों में भी किया जा सकता है । यह हमारे देश के सभी भागों में पाया जाता है । सरकारी पोधारोपण कार्यक्रमों में भी वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बांस रोपण पर जोर दिया जाता है । वन विभाग एवं अन्य सरकारी पौध शालाआें में बांस के पौधे किसानों के लिये रियायती दरों पर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है ।***

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