शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

वृक्ष हमारे मित्र

सहजन : चमत्कारी पेड़
डॉ.किशोर पंवार

प्रकृति का चमत्कार ही है उसने सहजन या सुरजना की फली के वृक्ष को इतनी विशेषताएं प्रदान की है । आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी प्राकृतिक जैव विविधता को पहचाने और उसके संवर्द्धन की दिशा मेंउचित प्रयास करें ।
पिछले कुछ अर्से से पर्यावरणवादी टिकाऊ विकास की बातें कर रहे हैं । टिकाऊ विकास यानि ऐसा विकास जो लम्बे समय तक हमार साथ दे हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बिना नुकसान पहुंचाए उन्हें देर तक उपलब्ध बनाएं रखें, हमारी आर्थिक वृद्धि भी बाधित न हो और पर्यावरण भी शुद्ध बना रहे और प्राकृतिक विनाश नहीं हो । कुल मिलाकर यही है स्थायी विकास का टिकाऊ विकास ।
दरअसल, यह अवधारणा १९८७ में ब्रुटलेण्ड की चर्चित पुस्तक अवर कॉमन फ्यूचर से निकली है । जिसमें यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि हमारे प्राकृतिक संसाधन अनुकूल और अमिट नहीं है । हमारे जंगल, कोयला, पेट्रोल और पीने लायक साफ पानी सभी बड़ी तेजी से घट रहे हैं । अत: अब आगे विकास ऐसा होना चाहिए जिसमें धरती की सेहत का भी ख्याल रखा जाए । वस्तुत: विकास के नाम पर पूरी दुनिया में जिस तेजी से मानवजन्य कारणों से जैव विविधता का क्षरण, भूमि उपयोग का बदलता परिदृश्य रेगिस्तानी करण और जलवायु परिवर्तन हो रहा है ये सब वैश्विक चिन्ता के विषय है तथाकथित विकास दर प्रारूप प्रकृति के विनाश का कारण बन रही है । उदाहरण के तौर पर वर्तमान मेंसड़कों का जो चौड़ीकरण और सीमेंटीकरण हो रहा है क्या इस हेतु पारिस्थितिक प्रभावों का अध्ययन किया गया है ? इन्वायरमेंटल इम्पेक्ट असेसमेंट (ई.पी.ए.)केवल उद्योगों के लिए ही क्यों अनिवार्य हो ? क्या नगरीय निकायों जैसे सार्वजनिक उपक्रमोंपर ये लागू नहीं होना चाहिए ?
हमारी हवा, पानी, मिट्टी अब आगे और खराब न हों, खेतों की मिट्टी अधिक समय तक उपजाऊ बनी रहे यह आज की एक गम्भीर समस्या है । मिट्टी को उर्वर बनाए रखने के लिए रासायनिक खाद व कीटनाशकोंऔर खरपतवारनाशकों का कम उपयोग करना होगा । आर्गेनिक फार्मिंग पर ज्यादा जोर देना होगा । कोशिश करना होगी कि खेती पर उर्जा की निर्भरता कम हो । किसानों को भी अच्छी गुणवत्ता
वाला स्वास्थ्यरक्षक इंर्धन उपलब्ध हो । पशुआें को बढ़िया पौष्टिक चारा मिले और किसानों की आर्थिक आजादी हो, परन्तु ये सब होगा कैसे ? वर्तमान अंधकारमय परिदृश्य में आशा की एक किरण नजर आती है । यह सब संभव है । केवल एक पेड़ के समूचित प्रबन्ध से इसका नाम है सहजन जिसे हम सुरजने के नाम से जानते हैं। मुनगा भी यही हैं और मोरिंगा भी । हम सब इसके फलोंको पहचानते हैं । इसकी लम्बी ड्रमस्टिक के नाम से जानी जाने वाली फलियों को सब्जी के रूप में सदियों से उपयोग में ला रहे हैं । परन्तु इसके अन्य अद्भुत गुणों से अनजान हैं । यह पूरा पेड़ बड़ा चमत्कारी है । इससे देश के किसान विशेषकर छोटे किसानों की किस्मत का ताला खुल सकता है ।
सुरजने की पत्तियां और टहनियों पशुआें के लिए पौष्टिक चारा है । बीज बोने के पूर्व यदि सुरजने कि पत्तियों को खेत में मिलाएं तो उससे जड़ों में लगने वाले सड़न और गलन रोग से मुक्ति मिलती है ।
इसकी पत्तियों का रस फसलों के लिए बेहतर टॉनिक का काम करता है । इसकी पत्तियों के रस के छिड़काव से फसलों का उत्पादन ३० प्रतिशत तक बढ़ता है । इसके पौधों को खेत में हरी खाद के साथ में मिलाया जा सकता है । यह प्राकृतिक खाद का काम करता है । सुरजने की पत्तियों से प्रदूषण रहित स्वच्छ बायो गैस बनाई जा
सकती है । इसका उपयोग मिश्रित खेती में भी किया जा सकता है क्योंकि इस पेड़ से छाया नहीं होती और उच्च् गुणवत्ता का प्रोटीन युक्त जीवांश मिलता है । इसके बीजों के चूर्ण को शहद साफ करने में काम लाया जाता
है । गन्ने के रस को साफ करने में भी इसका उपयोग किया जाता है ।
इस पर फूलों की बड़ी बहार आती है,जिसमें मकरन्द अधिक मात्रा में होता है । अत: इसका उपयोग शहद उत्पादन में भी होता है । बीजों से खाद्य तेल निकलता है, जो गुणवत्ता में ओलिव ऑयल (अलसी का तेल) के समान है । बीजों में ४० प्रतिशत तक तेल पाया गया है । बीजों के चूर्ण का उपयोग गन्दे पानी को शुद्ध करने मेंभी किया जाता है । यह फिटकरी के मुकाबले पानी को ज्यादा साफ करता है । साथ ही बैक्टीरिया को हटाता है । मलावी और अफ्रीका में इसके बीजोंसे बड़े पैमाने पर पानी साफ किया जा रहा है । यहीं नहीं इसके बीजों से पानी का ठोसपन भी कम होता है ।
इनके अलावा इसका गूदा अखबारी कागज बनाने के काम भी लाया जा सकता है । छाल से रस्सियां बनाने के लिए उम्दा किस्म का रेशा प्राप्त् होता है । फलियां बेचकर आर्थिक आय तो प्राप्त् की ही जा सकती है । इसकी पत्तियां, फल, फूल, बीज और तो और छाल सभी कुछ उपयोगी हैं। इसके इन्हीं गुणों को ध्यान में रख कर इसे मूरे में अरजन टिगा कहा जाता है । जिसका अर्थ है स्वर्ग का पेड़ । ***

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