शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

पर्यावरण समाचार

पर्यावरण मंत्रालय ने पाउच पर प्रतिबंध लगाया

पर्यावरण और वन मंत्रालय ने गुटका, तंबाकू और पान मसाला बेचने के लिए प्लास्टिक पाउच के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया । साथ ही मंत्रालय ने खाद्य पदार्थोंा की पैकेजिंग के लिए भी रीसायकल प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगाई है ।
हाई कोर्ट ने दिसंबर में कहा था कि मार्च २०११में गुटका, पान मसाला तथा अन्य तंबाकू उत्पादों की प्लास्टिक के पाउचों में बिक्री पुरी तरह से रोक दी
जाए । इसके बाद दो फरवरी को सुप्रीम कोर्ट कानून को अमल में लाने के लिए केन्द्र को और समय देने से इंकार कर दिया था । शीर्ष अदालत ने केन्द्र से कहा कि वह नए नियमोंको दो दिन के भीतर अधिसूचित करें। इसके मद्देनजर पर्यावरण और वन मंत्रालय ने रीसाइकल प्लास्टिक निर्माण और उपयोग नियम १९९९ को निष्प्रभावी करते हुए प्लास्टिक कचरा नियम २०११ को अधिसूचित कर दिया ।
नई अधिसूचना के तहत गुटका, तंबाकू और पान मसाला की पाउच में भरने, पेक करने तथा बेचने के लिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को प्रतिबंधित किया गया है ।अब खाद्य पदार्थोंा की पैकेजिंग के लिए भी एक बार इस्तेमाल हो चुके प्लास्टिक या कम्पोस्टेबल प्लास्टिक के दोबारा उपयोग की इजाजत नहींदी जाएगी।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने स्वीकार किया है कि प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध फिलहाल संभव नहीं है । नए नियम कहते हैं कि सामान भरने के लिए थैलियों के इस्तेमाल को भारतीय मानक ब्यूरो के मानदंडों के अनुरूप ही इजाजत दी जाएगी । वास्तविक चुनौती शहरोंमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में सुधार की है ।
पर्यावरण मंत्रालय ने साफ तौर पर कहा है कि उपभोक्ताआें को कोई भी थैली नि:शुल्क मुहैया नहीं कराई जाए और इनके लिए नगरीय निकाय न्यूनतम राशि तय करें ।
मंत्रालय ने कहा है कि प्लास्टिक की थैलियाँ सफेद या सिर्फ उन्हीं रंगों वाली होगी जो भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों में तय है । १९९९ की अधिसूचना के तहत प्लास्टिक की थैलियों की मोटाई कम से कम २० माइक्रोन होना जरूरी था । नई अधिसूचना में इसे ४० माइक्रोन किया है ।

पाठ्यक्रम में शामिल होगा गैस कांड

दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में से एक २-३ की भोपाल गैस त्रासदी का दर्द अब स्कूलोंमें पढ़ाया
जाएगा । राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने आठवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान विषय की पुस्तक में भोपाल गैस त्रासदी को शामिल किया है । पुस्तक को नए शैक्षणिक सत्र में लागू होने की उम्मीद है ।
एनसीईआरटी के एक अधिकारी ने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के अध्याय वाली सामाजिक विज्ञान की इस पुस्तक को कुछ दिन पहले जारी किया गया है । पाठ्यपुस्तक मेंकानून एवं सामाजिक न्याय पाठ की पृष्ठभूमि काले रंग से है, जिसपर लाल रंग से लिखा गया है । पाठ में एक स्थान पर लिखा है, डाउ अब और कितनी मौत ? इस गेस त्रासदी के विषय में पाठ की शुरूआत में लिखा गया है, दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में शामिल यह त्रासदी भोपाल में २४ वर्ष पहले हुई थी । शहर में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी थी जिससे दो दिसम्बर को जहरीली मिथाइल आइसो साइनाइड (एमआईसी) गैस का रिसाव हुआ था ।
पुस्तक में उल्लेख है कि जहरीली गैस के रिवास से प्रभावित होने वाले लोगों में अधिकतर समाज के कमजोर और कामकाजी वर्ग के लोग थे । इस अध्याय में गैस से प्रभावित एक बच्ची का चित्र भी है । इस पाठ में गैस त्रासदी के २४ वर्ष बाद स्वच्छ पेयजल, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाआें के संबंध में न्याय मांग के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के अभियान का भी उल्लेख किया गया है । अध्याय मेंभोपाल में यूका की ओर से अपनाए गए सुरक्षा उपायों की अमेरिका के विभिन्न संयंत्रों में अपनाए जाने वाले मापदंडों की तुलना की गई है । इसमें पश्चिमी वर्जिनिया में स्थापित कम्यू
टरीकृत चेतावनी एवं निगरानी प्रणाली का उल्लेख किया गया है जबकि भोपाल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं किए जाने की बात कही गई है ।

अमेरीकी रेस्त्रां परोसेगा शेर का मांस

अमेरिका में एक रेस्त्रां ऐसा भी है जहां अजगर, मरमच्छ, सांप, कंगारू और कछुए से बने व्यंजन परोसे जाते हैं । अब ये रेस्त्रां अपने मीनू में अफ्रीकी शेर से बने व्यंजन शामिल करने जा रहा है । इस रेस्त्रां का नाम है बोका टेकोस वाई टेक्विला । रेस्त्रां के प्रबंधक ब्रायन मेजन ने बताया कि यहां १६ फरवरी से शेर का मांस भी परोसा जाएगा । उन्होंेने कहा कि कुछ उत्सुक ग्राहक शेर के मांस के व्यंजन के लिए आर्डर दे चुके हैं ।
मेजन ने कहा हमने छह महीने पहले ही अपने मीनू में अजगर और सांप वगैरह के व्यंजन शामिल किए थे । हमारे यहां हर बुधवार को यह व्यंजन परोसे जाते हैं ।
स्थानीय फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग का कहना है कि इन सभी जानवरोंके मांस तब तक बेचे जा सकते हैं, जब तक ये सभी विलुप्त् जानवरों की श्रेणी में नहीं आ जाते हैं ।
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