रविवार, 24 अप्रैल 2011

पर्यावरण - समाचार

संरक्षित जंगल में बाघों की संख्या घटी

मप्र में बाघों की गणना को लेकर मार्च २०११ के नतीजों में एक और बेहद चौंकाने वाला तथ्य सामने आए है । उन क्षेत्रों में बाघ घट गए , जहां इन्हें बचाने के लिए ज्यादा रिााश् खर्र्च की गई और सुरक्षा के भी चाक चौबंद इंतजाम किए गए, लेकिन उन खुले क्षेत्रों में बाघ बढ़ गए, जहां इनकी देखभाल तक करने वाला कोई नहीं था । बीते चार वर्षो में प्रदेश के टाइगर रिजर्व के ५५०६ वर्ग किमी क्षेत्र के लिए केन्द्र से प्रदेश को १३९ करोड़ रूपए मिले । यह राशि २००८ तक मौजूद ३०० बाघों के लिए थी । यानी एक बाघ पर ११ करोड़ रूपए खर्च किए गए। या प्रदेश में हर महीने तीन करोड़ रूपए खर्च किए गए । प्रदेश में बाघों की संख्या घटकर २५७ रह गई । २००८ में पन्ना टाइगर रिजर्व में २४ बाघ थे जो इस बार घटकर मात्र तीन रह गए । वहीं कान्हा टाइगर रिजर्व मे ं८९ बाघ मिले थे जो ६० रह गए । जबकि इंदौर - देवास के गैर संरक्षित क्षेत्रों में जहां एक भी बाघ नहीं था, वहां ७ बाघों के हाने की पुुुष्टि हुई है । इसी प्रकार कूनो-श्योपुर क्षेत्र में भी पहली बार तीन बाघ मिले है । वहीं रायसेन में ९ की तुलना में १४ बाघों की पुष्टि हुई है । सबसे अधिक बाघ विश्व प्रसिद्ध कान्हा टाइगर रिजर्व में घटे जहां सबसे अधिक राशि आवंटित होती है ।

तेंदुए को जिन्दा जलाया

अब तब किसी इंसान को जिन्दा जलाकर मारने की खबरें आती रही लेकिन उत्तराखंड में कुछ लोगों ने पिंजरे में बंद एक तेंदुए को पेट्रोल डालकर जिन्दा जलाकर मार डाला । पुलिस ने इस संबंध में दो लोगों को गिरफ्तार कर अन्य की तलाश शुरू कर दी है ।
घटना उत्तराखंड के पौढ़ी जिले के धामधर गाँव की है । पुलिस के अनुसार २३ मार्च को गाँव के कुछ लोगों ने वन विभाग एवं पुलिस जवानों के सामने एक तेंदुए को मिट्टी का तेल डालकर जिन्दा जलाकर मार डाला । उत्तेजक भीड़ के सामने न तो वन विभाग के कर्मी कुछ कर पाए और न ही पुलिसकर्मी तेंदुए की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसने किसी मनुष्य को नुकसान नहींपहुँचाया था । घटना के संबंध में फिलहाल धामधार गाँव के निवासी विजयसिंह, मानवरसिंह, एवं दो महिलाआें समेत कुल १० लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया गया है । इनमें विजय और मानवर को गिरफ्तार कर लिया गया । जिले के पुलिस अधीक्षक पुष्कर ज्योति ने आश्वासन दिया कि जल्द ही अन्य आरोपी भी गिरफ्तार कर लिए जाएँगे ।

सख्त होंगे पर्यावरण मंजूरी के नियम

पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने बड़ी परियोजनाआें के लिए पर्यावरण मंजूरी के नियम और सख्त कर दिए है । मंत्रालय ने इस बात पर नजर रखने के लिए कि कंपनियां पर्यावरण मंजूरी की शर्तोका पालन कर रही है या नहीं, यह आवश्यक बना दिया है कि सीमेंट, कोयला और स्टील कंपनियां अपने संयंत्र परिसर में वायु प्रदषण से जुड़े आंकड़े अपनी वेबसाइड़ों पर प्रकाशित करेंगी ।
एक अन्य आदेश के जरिए मंत्रालय ने यह भी आवश्यक कर दिया है कि पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन देने से पहले कंपनी के पास वन मंजूरी होना जरूरी है । वन मंजूरी का मतलब है कि परियोजना क्षेत्र में जंगल काटने के लिए अनुमति । वर्तमान में कंपनियां बिना वन मंजूरी लिए पर्यावरण मंजूरी ले सकती है । मंत्रालय को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ा है जब कंपनियों के बिना वन मंजूरी लिए काम शुरू कर दिया । इसमें जिंदल स्टली एंड पावर जैसे हाई प्रोफाईल मामले भी शामिल है ।
पर्यावरण मंजूरी दो या तीन महीने में मिल जाती है । जबकि वन मंजूरी मिलने में सालों तक लग सकते है । इसके चलते मिलते कंस्ट्रक्शन शुरू कर देती थी ।
मंत्रालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सीमेंट, कोयला और स्टील कंपनियां अपने संयंत्रों में वायु गुणवत्ता के सेंसर लगाएगी । साथ ही इसके परिणाम अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करेंगी ।
हाल ही में एक समिति ने पाया था कि सरकार किसी परियोजना को मंजूरी देने के लिए शर्ते तो बहुत सारी लगाती है, लेकिन इनका पालन हो रहा है या नहीं इस पर निगरानी रखने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है ।

रूस ने धु्रवीय भालुआें के शिकार पर से हटाया प्रतिबंध

रूस ने धु्रवीय भालुआें के शिकार पर प्रतिबंध हटा लिया है । उल्लेखनीय है कि अखंडित रूस (सोवियत संघ) में इस प्राणी के शिकार पर १९५७ में प्रतिबंध लगा दिया गया था यह फैसला वन्य प्राणी संरक्षण आंदोलन के तहत किया गया था । रूस से सुदूरवर्ती चुकोटा क्षेत्र के गर्वनर रोमन केपिन ने पिछले दिनों इस प्राणी के शिकार पर से प्रतिबंध हटाने के पत्र पर हस्ताक्षर किए । इस पत्र के मुताबिक उस क्षेत्र के निवासी पूरे वर्ष में १९ मादा भालुआें सहित कुल २९ धु्रवीय भालुआें का शिकर कर सकतेहै ।
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