रविवार, 24 अप्रैल 2011

कविता

पर्यावरण पर कुंडलियाँ
रामचरण `आजाद'

यारों लगता चढ़ गया, मानव मति को जंग ।
काट - काट कर पेड़ वो, करता कुदरत तंग ।।
करता कुदरत तंग, मौत को देता न्योता ।
खिलें कहां से फूल, बीजों काँटों को बोता ।।
कहे `राम' कविराय, मानुज न तरू को मारो ।
दें खानें को फू्रट, सुलाते छाया यारों ।
बेदर्दी नर पेड़ पर, नित्य चलाए आर ।
बिना वन कैसे बरसे, बरषा मूसला धार ।।
वरष मुसलाधार, धरा की प्यासी मिटाती ।
उठे महक सब ओर, हरी हो भू की छाती ।।
कहें राम कविराय, रखो वृक्ष से हमदर्दी ।।
जीवन - दाता पेड़ , बनो ना तुम बेदर्दी ।
मनुज रहा कर भूल, मारकर जीवन दाता ।
युगों - युगों से रहा, पेड़ और नर का नाता ।।
कहें राम कविराय, समझ नहीं जमाने को ।
उसको ही मारते, देय डाल जलाने को ।।
उपकारी ना पेड सा, करो मनुज कुछ ध्यान ।
सच्चे नीत के सीने, तुम ठोको न कृपान ।।
तुम ठो कोन कृपान , दर्द होता है भारी ।
बिना पेड़ के गीत, बढेंगी रोज बीमारी ।।
कहे राम कविराय, लगाओ क्यारी क्यारी ।
हृदय धरो यह ज्ञान, पेड़ सच्चे उपकारी ।।
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