बुधवार, 23 नवंबर 2011

प्रसंगवश

कृमि-भक्षण की फैशन और विज्ञान
यदि आप दुनिया का एक नक्शा बनाएं और उसमें वे स्थान दर्शाएं जहां रोग-प्रतिरक्षा तंत्र संबंधी दिक्कतें बहुत अधिक पाई जाती हैं और एक नक्शा बनाएं जिसमें यह दर्शाया गया हो कि किन इलाकों में कृमि संक्रमण के सर्वाधिक मामले होते हैं, तो आपको एक रोचक पैटर्न दिखेगा । जिन इलाकों में प्रतिरक्षा तंत्र संबंधी गड़बड़ियां ज्यादा है वहां कृमि संक्रमण बहुत कम देखे जाते हैं ।
इस पैटर्न के बारे में स्वच्छता परिकल्पना यानी हायजीन हायपोथीसिस कहती है कि अत्यन्त स्वच्छ वातावरण में जीने में आपका प्रतिरक्षा तंत्र रोगजनक कीटाणुआें और परजीवियों के संपर्क से वंचित रह जाता है और उसका भलीभांति विकास नहीं हो पाता है । यदि परिकल्पना सही है, तो लोगों को उनके खोए हुए कृमियों के संपर्क में लाना प्रतिरक्षा तंत्र की गड़बड़ियों को दुरूस्त करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है । कई वैज्ञानिक १९९० के दशक से ही इस बात की छानबीन में लगे हुए है । इसके बावजूद कृमि-उपचार में बहुत अधिक प्रगति नहीं हो पाई है । एक तो इसका बड़े पैमाने का क्लीनिकल परीक्षण नहीं हो पाया है । अधिकांश अध्ययनों में मुट्ठी भर लोग ही सहभागी रहे हैं । यू.एस. में सूअर में पाए जाने वाले व्हिप कृमि को छानबीन हेतु दवा का दर्जा दिया गया है । मगर किसी भी दवा को छानबीन के स्तर से चिकित्सा में शामिल किए जाने के बीच काफी फासला होता है ।
इस स्थिति में यू.एस. के कई लोगों ने एक नया काम शुरू किया है: वे घर पर ही मल से कृमि के अंडे निकाल लेते हैं या किसी कंपनी से खरीद लेते हैं (ऐसी कुछ कंपनियां शुरू भी हो गई हैं ।) यूएस में इस जन विज्ञान को लेकर इतनी चिंता व्याप्त् है कि वहां उपचार हेतु कृमि की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है ।
सवाल यह है कि जब इतने वैज्ञानिक कृमि चिकित्सा की खोजबीन करने का उत्सुक है और इतने सारे लोग कृमि के अंडे निगलने को तैयार है, तो फिर इस विधि के व्यवस्थित परीक्षण में दिक्कत क्या है । दरअसल, औषधि संबंधी नियमन इसके आड़े आ रहे हैं । अत्यधिक सावधानी बरतने की सबसे बड़ी वजह तो यह है कि कृमि सजीव हैं । ये कोई रसायन नहीं है जिनकी खुराक का एकदम सटीक निर्धारण किया जा सके । कृमि बीमारियां भी पैदा कर सकते हैं ।
मगर सोचने वाली बात यह है कि हजारों लोग इसे आजमा रहे हैं । तब लगता है कि वैज्ञानिकों और नागरिकों के बीच सहयोग को संभव बनाने की जरूरत है । इससे इस क्षेत्र में तरक्की तो होगी है, अपने हाथ से चिकित्सा करने के खतरों से भी मुक्ति मिलेगी ।




कोई टिप्पणी नहीं: