सोमवार, 17 मार्च 2014

पर्यावरण परिक्रमा
पत्रकारों के लिए असुरक्षित देश है भारत
    दुनियाभर के पत्रकारों की सुरक्षा के लिए और उनके काम करने के माहौल पर अध्ययन करने वाली संस्था इंटरनेशनल न्यूज सेफ्टी इंस्टीटयूट ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत को पत्रकारों की दुनिया में चौथी खतरनाक जगह माना है । संस्थान ने ११ देशों को पत्रकारों के काम करने के लिए असुरक्षित माना है । इस सुची में सीरिया पत्रकारों के लिए लगातार दूसरी बार सबसे खतरनाक देश के रूप में कायम है ।
    रिपोर्ट में कहा गया है कि २०१३ में २९ देशों के १३४ पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया है । सीरिया में २०, इराक में १६, फिलीपीन्स में ४, भारत में १३, पाकिस्तान में ९, सोमालिया में ८, ब्राजील और इजिप्ट में ६, कोलंबिया, मैक्सिको और नाइजीरिया में ४ पत्रकारों की हत्या की गई । रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि विभिन्न देशों के अंदर चल रहे सशस्त्र विद्रोह में ६३ पत्रकारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । वही अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र विद्रोह में २ पत्रकारो को जान गवानी पड़ी ।
    चौंकाने वाली खबर में कहा गया है कि जो देश ना ही गृहयुद्ध में झुलस रहे है और ना ही अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष में उलझे है ऐसे सात देशों में भ्रष्टाचार और अपराध की खबरों को सामने लाने पर सबसे ज्यादा ६९  पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया है ।
    इंटरनेशनल न्यूज सेफ्टी इंस्टीटयूट ने अपने शोध में कहा है कि मीडिया के विभिन्न माध्यमों में काम कर रहे पत्रकारों में सबसे ज्यादा असुरक्षित प्रिंट मीडिया के पत्रकार हैं और सबसे ज्यादा ४५ हत्याए प्रिंट मीडिया के पत्रकारों की हुई है, इसके बाद रेडियो में ३५, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ३३, समाचार एजेन्सी के १२, ऑनलाइन के ६ और अन्य में काम कर रहे ३ पत्रकारों की हत्या की गई है ।
    रिपोर्ट में कहा गया है कि २०१२ की तुलना में २०१३ में पत्रकारों की हत्याआें की संख्या में १२ प्रतिशत की कमी आई है । २०१२ में १५२ पत्रकारों को मौत के घाट उतारा गया था । रिपोर्ट में जिन ११ देशों को खतरनाक माना गया है वहां की सरकारे पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं ।

भारत में कृषि पर निर्भर आबादी ५० फीसदी
    वर्ष १९८० से लेकर २०११ के बीच भारत में रोजी-रोटी के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर आबादी ५० प्रतिशत  बढ़ी है । इस अवधि में दुनियाभर के किसी भी देश मेंकृषि निर्भर लोगोंकी तादाद इस कदर नहीं बढ़ी है ।
    पिछले तीन दशकों के दौरान चीन में कृषि क्षेत्र पर निर्भर आबादी ३३ प्रतिशत बढ़ी, जबकि अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या ३७ प्रतिशत कम हुई । अमेरिका में खेती-बाड़ी पर निर्भर आबादी घटने की एक बड़ी वजह बड़े पैमाने पर मशीनों का इस्तेमाल            रही । वर्ल्डवॉच इंस्टिटयूट की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, वर्ष १९८० से लेकर २०११ के बीच भारत मेंआर्थिक रूप से सक्रिय कृषि आबादी ५० प्रतिशत बढ़ी, जबकि चीन में ऐसे लोगों की संख्या में ३३ प्रतिशत इजाफा हुआ । इसकी एक बड़ी वजह समग्र आबादी में बढ़ोतरी रही ।
    इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में आर्थिक तौर पर सक्रिय कृषि आबादी ३७ प्रतिशत कम हुई है । व्यापक मशीनीकरण, फसलों की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल, उर्वरकों एवं कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल और संघीय सबसिडी इसके बड़े कारण बताए गए हैं ।
    वैश्विक पैमाने पर कृषि क्षेत्र पर निर्भर आबादी ऐसे लोगोंको शामिल किया जाता है, जो जीवनयापन के लिए खेती-बाड़ी, शिकार, मछली पकड़ने और जंगलों से उपयोगी चीजें जुटाकर उन्हें बेचने पर निर्भर होते हैं । वर्ष २०११ तक दुनियाभर में ऐसी आबादी ३७ प्रतिशत से ज्यादा थी । इससे बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं ।
    वैश्विक कृषि आबादी के मामले में वर्ष २०११ के दौरान १९८०के मुकाबले १२ प्रतिशत गिरावट आई । वर्ष १९८० तक दुनियाभर की कृषि आबादी और गैर-कृषि आबादी लगभग बराबर थी । हालांकि १९८० से लेकर २०११ के बीच दुनिया की कुल आबादी में कृषि क्षेत्र पर निर्भर लोगों की हिस्सेदारी (प्रतिशत में) घटी है, लेकिन ऐसे लोगों की तादाद में इजाफा हुआ है ।वर्ल्डवॉच के सीनियर फेलो सोफी वेंजलाऊ के मुताबिक इस अवधि में कृषि क्षेत्र पर निर्भर लोगों की संख्या २.२ अरब से बढ़कर २.६ अरब हो गई ।

डीजल जेनसेट पर रोक लगाने की तैयारी
    कच्च्े तेल के आयात को कम करने के लिए सरकार अब डीजल जेनरेटरों पर अंकुश लगाने की तैयारी मेंहै । यह तैयारी एक विस्तृत नीति के तौर पर है । इसके तहत डीजल चालित जेनरेटरोंसे बिजली पैदा करने वाले उद्योगों या अन्य निकायों को गैस आधारित पावर प्लांटों से बिजली की आपूर्ति की जाएगी । बिजली मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यों के बिजली मंत्रियों की बैठक इस महत्वकांक्षी योजना का प्रस्ताव       किया ।
    बिजली मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक देश मेंअमूमन बिजली कटौती के दौरान जेनरेटरों से ७२ हजार मेगावाट बिजली हर वर्ष बनाई जाती है । इसकी लागत औसतन १४ से १५ रूपए प्रति यूनिट आती हैं । वहीं, आयातित गैस आधारित बिजली प्लांट से महज आठ रूपए प्रति यूनिट की दर से बिजली दी जा सकती है । डीजल जेनसेट के इस्तेमाल का खामियाजा ज्यादा कच्च्े तेल (क्रुड) के आयात के तौर पर उठाना पड़ता है । क्रुड आयात पर अभी सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है जो चालू खाते का घाटा बढ़ा रहा है ।
    केन्द्र सरकार ने अगले तीन से चार वर्षोंा के भीतर चालू खाते के घाटे (देश में विदेशी मुद्रा के आने व बाहर जाने का अंतर) को मौजूदा ४.८ फीसदी से घटाकर २.५ फीसदी करने का लक्ष्य है । ऐसे में डीजल जेनसेट को रिप्लेस करने से घाटे को काबू करने में भी मदद मिलेगी । सूत्रों के मुताबिक श्री सिंधिया को देशभर से डीजल जेनसेट के खात्मे के लिए राज्यों से भरपूर सहयोग    चाहिए । सबसे पहले देश में उन क्षेत्रों का चयन करना होगा जहां बिजली बनाने के लिए डीजल जेनरेटर का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है । फिर इन क्षेत्रों       के आसपास गैस आधारित छोटे प्लांट लगाने होंगे । डीजल जेनसेट को गैस आधारित बिजली प्लांट से ही रिप्लेस किया जा सकता है क्योंकि गैस पावर प्लांट को मांग के मुताबिक कभी भी ऑन और ऑफ किया जा सकता है ।
म.प्र. में २०१५ तक ३७८७ मेगावाट बिजली पैदा होगी
    नवकरणीय  ऊर्जा के क्षेत्र में मध्यप्रदेश २०१५ तक अनुमानित ३८४७ मेगावाट बिजली पैदा कर सकेगा जो देश की नवकरणीय ऊर्जा के कुल उत्पादन की २१ प्रतिशत होगी । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल और नई सोच के कारण तीन वर्ष पहले ही नवकरणीय ऊर्जा विभाग प्रदेश मेंअस्तित्व में आया है । विभाग के अपर मुख्य सचिव एस.आर. मोहन्ती ने यह बात कही ।
    श्री मोहन्ती ने बताया कि मात्र तीन साल पहले जारी नवकरणीय ऊर्जा नीति के कारण नवकरणीय ऊर्जा उत्पादन दो साल के अंदर (अप्रैल २०१२) ४३८.२४ मेगावाट से बढ़कर अप्रैल २०१४ में १०६५ मेगावट होना अनुमानित है । इसमें पवन ऊर्जा का उत्पादन ३१४.८९ मेगावाट से बढ़कर लगभग ४७३ मेगावाट हो जायेगा और सौर ऊर्जा से उत्पादन दो मेगावाट होने की सम्भावना है ।
    नवकरणीय ऊर्जा नीति इस क्षेत्र से जुड़े सभी सम्बन्धितों से मशविरा करने के बाद  ही बनायी गयी है । नीति में भूमि आवटंन और पर्यावरण स्वीकृति के नियमों का सरलीकरण किया गया है । नीति में लाल फीताशाही को कम करने और परियोजना स्वीकृति को पारदर्शी बनाने के साथ ही स्थानीय प्रशासन से परियोजना के निर्माण कार्योंा के लिए किसी भी प्रकार की स्वीकृति लेने की जरूरत अब नहीं होगी । निर्धारित नीति के अनुसर आगामी १० साल तक उक्त परियोजना के लिए मुफ्त बिजली और किसी प्रकार का कोई कर नहीं लगेगा । नई नीति लागू होने के बाद प्रदेश् में इस क्षेत्र में लगभग २७५ परियोजना चल रही है जिनसे ४६६५ मेगावाट ऊर्जा उत्पन्न होने की सम्भावना है । सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ११८ परियोजनाएँ चल रही हैं । पवन  र्जा के क्षेत्र में ८१ और शेष बायोमास और जल विद्युत के क्षेत्र में हैं ।
बैटरी की जगह हवा से चलेगी हाइब्रिड कर
    फ्रांस की कार निर्माता कंपनी प्यूजो ने दुनिया की पहली हवा से चलने वाली हाइबिड कार हाइब्रिड एयर से पर्दा उठाया है । मौजूदा हाइब्रिड कारों में बैटरियोंं का इस्तेमाल होता है । इस कार में हाइब्रिड एयर इंजन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है । रफ्तार कम होते ही कार एयर इंजन से बंद हो जाएगा । इस दौरान कार कम्प्रेस हवा का इस्तेमाल करेगी । कंपनी का दावा है कि अगले साल वह इस कार को बाजार में लॉन्च करेगी ।
    अभी हाइब्रिड कारों में बैटरियों का इस्तेमाल होता है । वक्त के साथ इनकी क्षमता मोबाइल-लैपटॉप की बैटरियों की तरह घट जाती है । इन्हें बदलना भी काफी खर्चीला होता है ।

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