सोमवार, 17 मार्च 2014

 कविता
 पेड़
किशनलाल शर्मा
न जाने, पेड़ों से,
क्या दुश्मनी है
आदमी को, जो
किसी ने किसी बहाने
काट ही देता है, पेड़ों को
पेड़ मानव जीवन का ही
आधार नहीं है,
पशुआें का भोजन
और पक्षियों का बसेरा
भी है, पेड़ों से ही
वसुन्धरा हरी भरी
नजर आती है, राहगीर
को शीतल छाया देते है
और बरसात भी पेड़ों
पर निर्भर है, फिर भी
आदमी पेड़ों को मिटाकर
कंकरीट के महल खड़े
कर रहा है, अगर
पेड़ नहीं रहेगे, तो
जीवनदायिनी, प्राण-वायु
कहाँ से मिलेगी ?
पशुआें को भोजन
कहाँ से आयेगा ?
और पक्षी अपना घर
कहाँ बनायेगें ?   
पेड़ों को घरा से
मिटाकर, हम
अपने ही विनाश को
न्यौता क्यों दे रहे हैं ?

कोई टिप्पणी नहीं: