मंगलवार, 10 जून 2014

ऊर्जा जगत
सौर ऊर्जा का बेहतर मॉडल
डॉ. राम प्रताप गुप्त

    देश में बिजली की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है । इस वृद्धि में प्रमुख योगदान तो शहरों का है, परन्तु अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है । ऐसे में देश के समक्ष एक बड़ा प्रश्न यह है कि बिजली की तेजी से बढ़ती मांग की पूर्ति कैसे की जाए  ?
    प्रारंभ में सरकार ने नदी घाटी योजनाआें के माध्यम से बिजली की आपूर्ति बढ़ाने का प्रयास किया, किन्तु कुछ समय बाद ही बिजली की मांग आपूर्ति की अपेक्षा अधिक हो गई । मगर नदी घाटी योजनाआें के कारण आबादी के विस्थापन आदि के कारण उनका विरोध होने लगा । फिर बांध बनाने के लिए उपयुक्त अधिकांश स्थानोंपर बांध बनाए जा चुके हैं । 


     पिछले दशकों में बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के लिए  राष्ट्र का ध्यान ताप विद्युत पर गया । ताप विद्युत के लिए कच्च्े माल के रूप में जीवाश्म पदार्थो (कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि) का उपयोग किया जाता है । भारत तेल आयात के लिए अन्य राष्ट्रोंपर निर्भर है और पिछले वर्षो में इसकी कीमतें तेजी से बढ़ हैं । इसके अलावा, पूरे विश्व में भी इसके भण्डार सीमित है । देश में कोयला तो है, परन्तु अच्छी किस्म के कोयला का हमें आयात करना पड़ रहा है । फिर इन पदार्थो से ऊर्जा प्राप्त् करने की प्रक्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है जो अंतत: जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या को जन्म देता है । ऐसे में विश्व का ध्यान शाश्वत अथवा अक्षय ऊर्जा के स्त्रोतों की ओर गया है । इन स्त्रोतों में पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, नदी के बहाव पर आधारित मिनी हाइड्रो, बायोमॉस ऊर्जा आदि शामिल किए हैं ।
    भारत में सौर ऊर्जा का उत्पादन एक बड़ी केन्द्रीकृत इकाई के द्वारा अथवा ग्राम स्तर पर छोटी-छोटी सौर ऊर्जा इकाइयों द्वारा भी किया जा सकता है । हाल ही में मध्यप्रदेश के नीमच जिले में एक बड़ी केन्द्रीकृत सौर ऊर्जा इकाई का शिलान्यास हुआ है । सौर ऊर्जा के उत्पादन की यह इकाई देश में सबसे बड़ी सौर ऊर्जा इकाई   है । इससे २५ मेगावाट बिजली पैदा होगी तथा इसकी कुल लागत ११०० करोड़ रूपए आएगी । यह योजना तीन विदेशी कंपनियों तथा एक भारतीय कंपनी का संयुक्त उपक्रम है । इस इकाई से उत्पादित सौर ऊर्जा से ६.२४ लाख घरों में बिजली का प्रकाश होगा । इतनी अधिक मात्रा में ताप विद्युत के उत्पादन से होेने पर कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन २,२६,३७२ टन की कमी आएगी ।
    सौर ऊर्जा कंपनी के प्रबंध संचालक विनीत मित्तल का कहना है कि इस योजना के क्रियान्वयन के साथ भारत विश्व के प्रमुख सौर ऊर्जा  उत्पादक राष्ट्रों में शामिल हो जाएगा । उनकी कंपनी देश में ऐसी और भी इकाइयां स्थापित करने पर विचार कर रही है ।
    नीमच जिले में स्थापित होने वाली इस इकाई का क्रियान्वयन इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रशिक्षित और  भारी वेतन प्राप्त् इंजीनियरों द्वारा किया जा रहा है । इसका संचालन, देखरेख भी उच्च् शिक्षित तकनीशियनों द्वारा किया जाएगा । इसकी स्थापना से न तो स्थानीय स्तर पर रोजगार के कई अवसर सृजित होंगे, न ही इससे ग्रामीणों का तकनीकी विकास होगा, न ही उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न     होगा । अत: विद्वानों का कथन है कि बाह्म पूंजी और बाहरी तकनीशियानों  इंजीनियरों द्वारा ऐसी बड़ी सौर ऊर्जा इकाइयों के स्थान पर ग्राम स्तर पर छोटी-छोटी सौर ऊर्जा इकाइयों की स्थापना की जानी चाहिए जिससे ग्रामीणों का प्रबंधकीय और तकनीकी विकास भी हो उनकी समझ और अनुभव का भरपूर उपयोग भी हो ।
    ऐसे विकेन्द्रित और स्थानीय आबादी द्वारा संचालित सौर ऊर्जा के मॉडल की तलाश हमें सौर ऊर्जा के तिलोनिया मॉडल तक ले जाती है । इस मॉडल के अन्तर्गत ग्रामवासी अपनी आवश्यकताआें के अनुरूप ऊर्जा इकाई की स्थापना करते हैं । इससे ग्रामीणों की समझ और स्थानीय ज्ञान का भरपूर उपयोग किया जाता है । इस प्रकार के मॉडल के विकास और फैलाव में प्रमुख योगदान राजस्थान के ग्राम तिलोनिया के बेयरफुट कॉलेज ने दिया है । तरूण राय द्वारा संचालित इस कॉलेज में अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त् ग्रामवासियों को सौर ऊर्जा इकाई की स्थापना, संचालन और रख-रखाव का प्रशिक्षण दिया जाता है । इस प्रक्रिया में ग्रामीण प्रतिभाआें का भरपूर उपयोग किया जाता है जिससे रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं ।
    सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तिलोनिया मॉडल का उपयोग अक्षय ऊर्जा की अन्य किस्मों के विकास में भी आसानी से किया जा सकता है । सौर ऊर्जा इकाई के निर्माण में कोई देशी-विदेशी कंपनी नहीं आती है, ग्रामवासी ही ये कार्य संपादित करते हैं । तिलोनिया के बेयरफुट कॉलेज में मुख्यत: ग्रामीण महिलाआें ने ही प्रशिक्षण लिया है । प्रशिक्षण लेने वाली महिलाआें में केवल भारतीय महिलाएं ही नहीं हैं, बल्कि अन्य विकासशील राष्ट्रों जैसे सिएरा लिओन, जाम्बिया, कीन्या, तंजानिया, चाड जैसे पिछड़े राष्ट्रों की महिलाएं भी शामिल रही हैं । आपस में भाषा की कठिनाई के बावजूद इन महिलाआें ने काफी कुछ सीखा है और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है ।
    सौर ऊर्जा के माध्यम से ऐसे दूर-दराज के इलाकों में बिजली पहुंचाई जा सकती है जहां परम्परागत बिजली पहुंचाने में भारी राशि खर्च होती है और उसके रख-रखाव में भी कठिनाइयां आती हैं । हिमाचल के दूर-दराज के ठंडे इलाकों में सौर ऊर्जा के प्रकाश के सफल प्रयासों से जीवन बहुत आसान हो गया, जहां पहले केरोसीन तेल और मोमबत्ती ही प्रकाश के माध्यम थे और जिन्हें प्राप्त् करने के लिए मीलों की दूरी तय करनी पड़ती थी । दिनों दिन सौर ऊर्जा के इस मॉडल की उपयोगिता को देखते हुए इस समय देश के १६,००० ग्रामों में सौर ऊर्जा इकाइयां सफलतापूर्वक कार्य कर रही है । और वहां सौर ऊर्जा के कारण गांववासियों के जीवन  में क्रान्तिकारी परिवर्तन आए हैं ।
    ग्रीनपीस संगठन ने अक्षय ऊर्जा के एक विकेन्द्रित मॉडल का विकास किया है । विशेषकर बिहार के संदर्भ में विकसित किए गए इस मॉडल में सौर ऊर्जा के साथ-साथ ग्रामीण अंचलों में उपलब्ध सामग्रियों, जैसे चावल का भूसा आदि का उपयोग कर बिजली उत्पन्न की जाती है । ग्रीन पीस ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकेन्द्रित अक्षय ऊर्जा मॉडल विशेष रूप से उपयुक्त है, जिसमें सौर ऊर्जा, माइक्रो हाइड्रो और बायोमास से ऊर्जा प्राप्त् की जाती है ।
    मध्यप्रदेश भी एक पिछड़ा राज्य है । अनुसूचित जाति कुल आबादी में एक चौथाई के लगभग है जो सुदूर वनों में रहती है जहां परम्परागत विद्युत पहुंचाना कठिन होता है, रख-रखाव तो और भी कठिन होता है । बिजली पहुंचा भी दी जाए तो भी उन्हें यदा-कदा ही यह प्राप्त् हो पाती है । इन ग्रामों को बिजली प्रदान करने के लिए सौर ऊर्जा एक श्रेष्ठ माध्यम बनकर सामने आता है । इस ऊर्जा की स्थापना, रख-रखाव के लिए उन्हें तिलोनिया वेयरफुट जैसे संस्थाआें में ही प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए । सौर ऊर्जा की विकेन्द्रित इकाई की स्थापना उनके विकास के मार्ग को प्रशस्त  करेगी । नीमच में स्थापित होने वाली विशाल, केन्द्रीकृत इकाई बाह्म पूंजीपतियों और इंजीनियरों-अधिकारियों के विकास का ही मार्ग प्रशस्त करेगी । इस प्रदेश में ग्राम स्तर पर छोटी  सौर ऊर्जा इकाइयों पर ध्यान केन्द्रित करना ही प्रदेश और राष्ट्र हित में होगा ।

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