मंगलवार, 26 जून 2007

६ खास खबर

६ खास खबर

बाघों को लेकर मंत्रालय और संस्थान में ठनी
हमारे विशेष संवाददाता द्वारा
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और भारतीय वन्य जीव संस्थान के बीच बाघों की संख्या को लेकर ठन गई हैं । मंत्रालय ने संस्थान के करोडों रूपए के खर्च से किए गए अध्ययन को मानने से इंकार कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर संस्थान ने भी वर्ष २००२ के सरकारी आंकडों को खारिज कर दिया हैं ।
बाघों की गिरती संख्या
नेशनल पार्क नई संख्या गणना की रेंज पिछली संख्या
कान्हा ८९ ७३-१०५ १२१
पेंच ३३ २७-३९ ५५
पन्ना २४ १५-३२ ३३
बांधवगढ ३७ ३५-५६ ६४
सतपुडा ३५ २६-५२ ३९
मंत्रालय के सामने संस्थान की ओर से रखे गए आंकडों के अनुसार मध्य प्रदेश में केवल २६५ बाघ बचे हैं जबकि छत्तीसगढ में २५, महाराष्ट्र में ९५ और राजस्थान में ३२ बाघ बचे हैं । कुल मिलाकर कुछ राज्यों में बाघों की संख्या पहले के अनुमान के मुताबिक ६५ प्रतिशत कम हो सकती है । संस्थान के इन आंकडों पर मंत्रालय के सचिव प्रदीप्ते घोष ने बताया कि वह इस पर कुछ भी नहीं कहेंगे क्योंकि यह संस्थान का अध्ययन हैं ।
बाघो संबंधी परियोजना प्रोजेक्ट टाइगर के निदेशक राजेश गोपाल ने कहा कि यह सच है कि पहले की अपेक्षा बाघों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि देहरादून संस्थान ने पहले के आंकडों को स्वीकार नहीं किया हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि जारी किए गए आंकडे अभी पूर्ण नहीं हैं और आखिरी आंकडे दिसम्बर में जारी किए जाएंगे । वन्यजीव विशेषज्ञ पीके सेन ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय का यह कहना आर्श्चजनक है कि संस्थान के आंकडे सरकारी नहीं है क्योंकि यह संस्थान सरकारी है और बाघों की संख्या का अध्ययन पूरी तरह भारत सरकार के तहत हैं । श्री सेन ने कहा कि संस्थान की ओर से बाघों की गिनती के लिए इस्तेमाल किए गए तरीके पर वर्ष १९९९ में सरकारी अधिकारियों के साथ हुई बैठक में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने सवाल उठाया था । लेकिन संस्थान ने इसमें कोई सुधार नहीं किया और पुराने तरीके का ही इस्तेमाल किया।
देश के इतिहास में पहली बार अत्यंत वैज्ञानिक तरीके से हुई बाघों की गणना का जो दु:खद ब्यौरा सामने आया है, इसे एक राष्ट्रीय संकट ही माना जाना चाहिए। महाराष्ट्र हो, छत्तीसगढ, राजस्थान हो या अन्य राज्य सभी जगह हालात एक जैसे हैं । बाघ कम हो रहे हैं, सरिस्का से बाघ गायब हो गए हैं, पन्ना में उनकी संख्या सिर्फ ३५ रह गई हैं, टाइगर टास्क फोर्स बन गया है, चीन में बाघ अंगों की मांग बढती जा रही है, आदिवासियों के हक का बिल संसद में पास हो गया है, संसारचंद पकडा गया है, शिकार बेखौफ जारी है, जंगल कट रहे हैं... इस तरह की खबरें कई-कई वर्षो से आ रही हैं पर किसी ने बाघों की सुध नहीं ली ।
भारतीय वन्य जीव संस्थान पिछले दो वर्षो से बाघों की गणना की नई पद्धति पर काम कर रहा था । उसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा था कि वर्षो पुरानी पग मार्क प्रणाली अवैज्ञानिक है, जिसके चलते सही आंकडों का पता लगाना संभव नहीं था । किंतुअब तो ताजा आंकडे सामने आए हैं उससे निश्चित हो गया है कि बाघ कुछ ही दिनों में हमें सिर्फ चिडियाघरों में ही दिखे! यह सब उस समय हो रहा है जब बाघों को बचाने की आवाज पूरे विश्व में उठाई जा रही है और करोडों रूपए खर्च किए जा रहे हैं । विभिन्न संगठनों के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन ने भारत सरकार से मांग की है कि वह चीन से बाघों की हडि्डयों के व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंध को जारी रखने का अनुरोध करें।
चीन बाघ की हडि्डयों और अन्य अवयवों के व्यापार पर १९९३ में लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त् करने पर विचार कर रहा है । अंतर्राष्ट्रीय बाघ गठबंधन नामक संगठन ने बयान जारी कर कहा है कि १४ साल तक चीन द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंध भारत के जंगलों में पाए जाने बाघों को संरक्षित करने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है । वर्तमान में चीन में कई टाइगर फार्म है जिनमें कुल मिल ५ हजार बाघ पाले जाते हैं । टाइगर फार्म में निवेश करने वाले निवेशकों की तरफ से चीन सरकार पर दबाव डाला जा रहा है कि वह प्रतिबंध हटा दे । बताया जाता है कि टाइगर फार्म में निवेश करने वाले बाघ के अंगो का व्यापार कर भारी मुनाफा कमाते हैं ।
गठबंधन ने सुझाव पेश किया है कि चीन के टाइगर फार्म में पाए जाने वाले बाघों की संख्या में वृद्धि कुछ समय के लिए रोक दी जाए । अंतर्राष्ट्रीय बाघ गठबंधन पर्यावरण संगठनों, वन्यजीवों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठनों और चीन के पारंपरिक चिकित्सा का पालन करने वाले समुदाय का मिला-जला गठबंधन है जिसका मानना है कि चीन द्वारा १४ साल पहले बाघों के अंगों के व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंध को नहीं हटाया जाना चाहिए।
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