मंगलवार, 26 जून 2007

१३ ज्ञान विज्ञान

१३ ज्ञान विज्ञान
मिश्रित ऑक्सीजन ही फायदेमंद
आदमी को बचाने के लिए लगाई जाने वाली ऑक्सीजन यदि अति शुद्ध है तो यह मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकती है । अभी तक ये माना जाता रहा है कि ये शरीर को लाभ पहुंचाती है , लेकिन हाल ही में एक अध्ययन में यह बात सामने आई है ।

यह पहला मौका है , जब यूमसीएलन ब्रेन इमेजिंग अध्ययन में यह जानकारी दी गई । यदि ऑक्सीजन के साथ कुछ मात्रा मे कार्बन डाईऑक्साइड मिलाई जाती है तो वह दिमाग के काम को ठीक से करने देता है । दशकों तक चिकित्सा समुदाय द्वारा १०० प्रतिशत ऑक्सीजन पर जोर दिया जाता रहा है, परंतु किसी ने यह बताने की कोशिश नहीं की कि इसका असर दिमाग के भीतर क्या होता है ।

डेविड गेफन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने न्यूरोबॉयलॉजी के प्राध्यापक रोनाल्ड हार्पर ने विस्तार से इसका खुलासा किया है ।
हार्पर की टीम ने फंक्शनल मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) का उपयोग किया । इससे मस्तिष्क में होने वाली गतिविधियों से विस्तृत चित्र लिये गए । श्वास की सामान्य प्रक्रिया और १०० प्रश ऑक्सीजन देने दोनों के चित्र अलग-अलग थे। इस तकनीकी से यह भी जाना कि यह भी देखने में आया कि रक्त का प्रवाह तेजी से दिमाग में बढ जाता है ।

शोधकर्ताताआें ने १४ हष्ट-पुष्ट बच्च्े लिए । इनकी आयु ८ से १५ वर्ष की थी । जैसे ही मास्क से उन्होंने ऑक्सीजन लेना शुरू की, उनकी श्वास और दिल की धडकन का आकलन किया गया । ८ मिनट बाद इन बच्चों को समान्य सांस लेने दी गई । इसमें ५ प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साईड मिलाई और फिर स्केनिंग की ।
ऐसा था अंतर : दोनों में जब तुलना की गई तो खासा अंतर नजर आया ।जब बच्चों को शुद्ध ऑक्सीजन दी गई तो उनकी संास लेने की गति तेज हो गई । कार्बन डाइऑक्साइड की कमी की वजह से नसें संकरी हो जाती है और यह खतरनाक है, यही ऑक्सीजन को दिमाग और दिल के ऊतक तक पहुँचने नहीं देता है । एमआरआई स्केनिंग में ये आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए ।
त्रिफला , अग्नाशय कैंसर से लडने में कारगर
भारतीय चिकित्सा पद्धति के तहत वर्षोंा से महत्वपूर्ण औषधि के रूप में इस्तेमाल होने वाला त्रिफला अग्नाशय (पेनक्रियाज) के कैंसर के इलाज में भी कारगर है । इस तथ्य की पुष्टि हाल ही में एक नए वैज्ञानिक अध्ययन से हुई है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिटसबर्ग अमेरिका के कैंसर इंस्टीट़्यूट के वैज्ञानिकों ने भारतीय हर्बल उत्पाद त्रिफला को पैनक्रियाज के ट्यूमर के इलाज में प्रभावी पाया है । वैज्ञानिकों ने यह शोध अभी चूहों पर किया है । लेकिन उन्हें उम्मीद है जल्दी ही मनुष्य की इस बीमारी का इलाज विकसित कर लिया जाएगा ।
हाल में किए गए इस शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है । इस शोध में बताया गया है कि त्रिफला कोशिकाआें में कैंसर रहित गतिविधियों को बढाता है और पेनक्रियाज की सामान्य कोशिकाआें को कोई नुकसाान नहीं पहुंचाता है ।
त्रिफला तीन प्राकृतिक उत्पादों हरड, बहेडा और आंवला का चूर्ण होता है । यह आंत से संबंधित बीमारियों के इलाज में कारगर है और पाचन क्षमता को बढाता है ।आयुर्वेद में त्रिफला का इस्तेमाल पाचन प्रणाली को दुरूस्त करने के लिए होता है । त्रिफला का इस्तेमाल हजारों साल से हो रहा है और चरक एवं सुश्रत संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी इसके गुणों का जिक्र मिलता है । त्रिफला को त्रिदोषिक रसायन माना जाता है ।
त्रिफला कैंसरजन्य कोशिकाआें को खुद ही मरने के लिए प्रेरित करता है और बिना कोई दुष्प्रभाव पैदा किए ही ट्यूमर के आकार को आश्चर्यजनक रूप से कम करता है । विशेषज्ञों को उम्मीद है कि त्रिफला कैंसर के विरूद्ध विश्व व्यापी जंग मेंएक कारगर हथियार बन सकता है।
अब भेडिये का भी क्लोन
भेडियों की कई प्रजातियों के अस्तित्व पर इन दिनों संकट की तलवार लटक रही है । खासकर दक्षिण कोरिया में ये लगभग समाप्त् हो गए हैं । अब इन्हें बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने क्लोनिंग की शरण ली है । हाल ही में दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकोंने दो क्लोन मादा भेडिए तैयार किए हैं । ये विश्व के पहले क्लोन भेडिए हैं ।
सियोल नेशनल युनिनर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने सियोल के एक चिडियाघर में इन भेडियों को प्रस्तुत किया । इनका नाम स्नू वूल्फ व स्नू वूल्फी रखा गया है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार इनका जन्म डेढ साल पहले हुआ था, लेकिन सुरक्षा और तकनीकी वजहों से तब यह खुलासा नहंी किया गया था । भेडियों की क्लोनिंग के लिए २५२ भ््रूाणों का विकास किया गया था, जिनमें से दो अंतत: दो क्लोन मादा भेडिए पैदा हुए ।
शोध कार्य करने वाली टीम के मुखिया ली ब्यूंगचन कहते हैं कि कोरियाई भेडियों की क्लोनिंग से इस नस्ल के संरक्षण में मदद मिलेगी । वे बताते हैं कि पिछले २० सालों में कोरिया के प्राकृतिक जंगलों में एक भी भेडिया नहीं देखा जा सका है । केवल सियोल के संरक्षित नेचर पार्क में ही दस भेडियों का एक समूह देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि इन्हीं वैज्ञानिकों ने वर्ष २००५ में विश्व के पहले क्लोन कुत्ते (अफगानी जंगली कुत्ता जिसका नाम स्नूपी रखा गया था ) का भी विकास किया था । अपने प्रजनन चक्र की वजह से कुत्तोंका क्लोनिंग सबसे कठिन माना जाता है । इसी के मद्देनजर स्नूपी के विकास को उस समय टाइम पत्रिका ने सबसे चमत्कारी आविष्कार कहा था । गत दिसंबर में प्रख्यात स्टेम सेल रिसर्चर ह्वांग वू सेक की अगुवाई में एक टीम ने तीन और अफगानी जंगली कुत्तों के क्लोन बनाने का दावा किया था । उनके अनुसार उन्होंने क्लोनिंग पद्धत में सुधार किया है।
चांद की कलाएं और भूकम्प
२० दिसम्बर २००४ के दिन हिन्द महासागर में जो भूकम्प आया था, उसका कारण शायद पूण्र्ािमा रही होगी । इस भूकम्प के कारण समुद्र में जो त्सूनामी तरंगे उत्पन्न हुई थीं उन्होंने भयानक विनाश किया था ।
भूकम्प और चंद्रमा की कलाआें के सम्बंध के बारे में उक्त निष्कर्ष नार्थम्टन विश्वविद्यालय के राबि क्रॉकेट और उनके सहयोगियों ने जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित किए हैं । क्रॉकेट व उनके दल में अक्टूबर २००४ और अगस्त २००५ के दरम्यान आया । जावा - सुमात्रा खाडी में पैदा होने वाले भूकम्पों और ज्वार भाटा के आंकडे एकत्रित किए। उन्होंने पाया कि बडे-बडे भूकम्प आने की संभावना पूर्णिमा और अमावस्या के आसपास अन्य दिनों की अपेक्षा ८६ प्रतिशत ज्यादा होती हैं। पूर्णिमा और अमावस्या को ही समुद्र में सबसे ऊँचे ज्वार आते हैं ।
क्रॉकेट का मत है कि पूर्णिमा व अमावस्या के दिन जब ऊँचे - ऊँचे ज्वार आते हैं, तब भारी मात्रा में पानी भूगर्भ की प्लेट्स की सीमाआें से टकराता है । यह प्लेट्स धरती के अंदर उपस्थित तरल पदार्थ पर तैरती रहती है । जहां दो प्लेट्स आपस में मिलती है , उसे प्लेट सीमा कहते हैं । क्रॉकेट की राय में इन सीमाआें पर भारी मात्रा में पानी का हटना या पहुंचना भूकम्प की शुरूआत कर सकता है ।
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