मंगलवार, 26 जून 2007

९ विदेश

९ विदेश
चीन : पारंपरिक मूल्यों की वापसी
डाले जियाजुन वेन
चीन की ६० से ७० फीसदी आबादी अब भी गाँवों में रहती है । मीडिया के बहुप्रचारित चीन के आर्थिक करिश्मे से प्रभावित अनेक पश्चिमी पाठक शायद यह नहीं जानतें हैं कि चीन का बड़ा इलाका व्यापक संकट का सामना कर रहा है । स्थिर आय, सार्वजनिक सेवाआें मेे कटौती, अक्षम स्थानीय सरकार, दिनोंदिन बढ़ता भ्रष्टाचार, घटते सामाजिक संसाधन, पर्यावरण विनाश, अपराधों में वृद्धि एवं इन सब के प्रति बढ़ता असन्तोष व प्रतिरोध जैसी अनेक समस्याआें को विशेषज्ञों ने त्रि-आयामी ग्रामीण समस्या (खेती, किसान और ग्रामीण क्षेत्र) में समेटने का प्रयास किया है ।
मुख्यधारा के अर्थशास्त्री अब भी औद्योगिकरण और शहीरकण को ही इसका समाधान मानते हैं । चीन की सात प्रमुख नदियों का लगभग ६० प्रतिशत पानी अत्यन्त प्रदूषित हो चुका है । ६ करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं और तकरीबन ३० करोड़ लोगों को साफ पेयजल उपलब्ध नहीं हैं । इसके अलावा १५ करोड़ ग्रामीण मजदूर शहरों में काम कर रहे हैं । इनमें से अधिकांश अभाव में जीवन यापन कर रहे हैं और वे शहरों में उपलब्ध सुविधाआें का कोई उपयोग नहीं कर पाते हैं । इस व्यापक जलसंकट से स्पष्ट होता है कि चीन में वर्तमान औद्योगिकरण और शहरीकरण पूर्णत: अनुपयुक्त हैं ।
इन समस्याआें के मद्देनजर कुछ ग्रामीण विशेषज्ञ कहते हैं कि भविष्य में चीन की बहुसंख्य आबादी को गाँवों में ही रहना चाहिए । उनकी योजना है कि सामुदायिक भावना को पुनर्जीवित किया जाए और ग्रामीणों द्वारा जन-केन्द्रित तथा समुदाय-आधारित स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाना चाहिए । वर्षो के अनुभव से किसान भी इसी नतीजे पर पहुंचे है एवं उन्होंने स्वयं संगठित होकर वैकल्पिक टिकाऊ और सम्मानजनक जीविका की तलाश आरम्भ कर दी है । इस चुनौती के जवाब में अनेक विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता किसानों के साथ एकजुट होकर ग्रामीण नवनिर्माण आन्दोलन से जुड़ गये हैं ।
इस आन्दोलन का इतिहास बहुत पुराना है । वाय.सी. जेम्स येन नामक एक चीनी शिक्षाशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने १९२० के दशक में चीन में ग्रामीण विकास के लिये शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्व-शासन का एक समग्र कार्यक्रम विकसित किया था । यही ग्रामीण नवनिर्माण आन्दोलन की शुरूआत थी । आन्दोलन का केन्द्र बीजिंग से रेल द्वारा तीन घण्टे की दूरी पर स्थित एक गाँव में स्थापित जेम्स येन ग्रामीण नवनिर्माण संस्थान है । इस संस्थान में जैविक खेती, वर्मीकल्चर, पर्यावरण अनुकूल स्थानीय भवन निर्माण सामग्री, सामुदायिक संगठन और ग्रामीण सहकारिता निर्माण जैसे विषयों पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है ।
पिछले पच्चीस वर्षो में चीन में पश्चिम की नकल करके औद्योगिक विकास और शहरीकरण को ही आधुनिकता का पैमाना मान लिया था । शिक्षा से जुड़ी अधिकांश किताबों के अनुसार शहरीकरण का अर्थ ही आधुनिकीरण है और जो भी ग्रामीण है, वह पिछड़ा है और उसे आधुनिक बनाया जाना चाहिये । किसानों के अपनी जमीन से पारम्परिक जुड़ाव को मूर्खतापूर्ण भावुकता माना गया था । इन सब विचारों ने गाँवों स्त्रे श्रम और बुद्धि के पलायन का मार्ग प्रशस्त किया । परिणामस्वरूप गाँवों से काम की तलाश में बहुत से युवा तटीय इलाकों में आकर बस गये और निर्यात किये जाने वाले सामान का उत्पादन करने वाले उ़द्योगों में उनके श्रम का शोषण किया गया । ग्रामीण नव निर्माण आन्दोलन ने इस उपनिवेशवाद पर रोक लगाई है ।
प्राध्यापक वेन तियेजुन, जो आन्दोलन के आध्यत्मिक नेता माने जाते हैं, चीन के ऐसे बुद्धिजीवी हैं, जिन्होंने पश्चिम केन्द्रित विकास के ढाँचे को चुनौती दी । सन् २००४ में प्रकाशित अपनी किताब डिकन्सट्रक्शन ऑफ मॉडर्नाइजेशन एण्ड व्हॉट डू वी रियली नीड ? (आधुनिकीरण का विसर्जन और असल में हमारी जरूरत क्या हैं ?) में चीन में संसाधनों की कमी पर जोर दिया है । उन्होंने बताया है कि तटीय इलाकों के तेज विकास में ग्रामीण क्षेत्रों का आंतरिक उपनिवेश के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है । पूरे चीन में उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सौ महावद्यिालयों में ग्रामीण विचार केन्द्र स्थापित किए हैं । जिसके माध्यम से विद्यार्थी गाँवों की सच्चई से रूबरू हो सकें ।
इस आंदोलन के माध्यम से चीन की पारंपरिक संस्कृति में प्रकृति के साथ सामंजस्य, सामुदायिक मूल्यबोध एवं संपत्ति तथा उपभोग के अंतहीन लोभ के स्थान पर संतुष्टि के भाव को पुनर्स्थापित किया जा रहा है । हाल के वर्षो में आधुनिकता की पागल दौड़ के कारण ग्रामीण समाज में किसानों का जमीन से जुड़ाव कमजोर हुआ है । रासायनिक खेती ने पारंपरिक जैविक खेती को बेदखल कर दिया है, जिससे किसान रासायनिक दवाआें और खाद के लिए बाजार पर निर्भर हो गए हैं। सन् १९८० के दशक में आरंभ हुई पारिवारिक ठेकेदारी प्रथा और सामुहिक कल्याण तंत्र के समाप्त् होने के कारण पारिवारिक खेती प्राकृतिक आपदाआें एवं बाजार के उतार-चढ़ावों का अधिक शिकार हुई है । इसके कारण बहुत से किसानों को अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है ।
इस दुर्दशा के कारण उनका शोषण भी बढ़ा हैं। वहीं पर्यावरण की अनदेखी के भी विपरीत परिणाम सामने आ रहे हैं । उदाहरणार्थ सन् १९८५ से १९८९ के दौरान देशभर में समुद्री हवाआें को रोकने का सक्षम क्षेत्र ४८ प्रतिशत घट गया है। नहरें और सिचांई के अन्य साधन भी कम हुए हैं और इसके परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण और बाढ़ एवं सूखे का प्रकोप भी बढ़ा है । जैविक खेती करने वाले किसान एन जिनली और स्वयंसेवी प्रशिक्षक जमीन और समाज के प्रति लगाव को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं । प्रशिक्षण देते हुए वे सिखाते हैं कि जैविक खेती का मतलब रसायनों को हटाकर पैसा कमाना या महंगे बाजार का लाभ उठाना नहीं है। खेती का लाभ व्यापार नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है ।
अच्छा किसान एक विनम्र सेवक होता है, जो जमीन के दिए उपहार को स्वीकार करता है और उसके बदले में अपनी मेहनत से जमीन को बेहतर बनाता है । वह जानता है कि सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे अनमोल जीवित संपदा हैं और इस प्रकार वह उनके खिलाफ नहीं वरन् उनके साथ मिलकर काम करता है । कुल मिलाकर वह अपने साथी किसानों के साथ स्वस्थ भूमि और स्व्स्थ समाज बनाने के लिए काम करता है । जमीन और समाज को परस्पर जोड़ने वाला यह विचार कठोर ह्रदय अर्थशास्त्रियों और औद्योगिक कृषि वैज्ञानिकों को भले ही भावुकता प्रतीत हो, किंतु असल में यह जमीन से जुड़ा विचार है । ग्रामीण नवनिर्माण आंदोलन का यह केंद्रीय विचार अपने विचार और स्वरूप से चीन की एक बड़ी समस्या का समाधान कर सकता है ।
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