गुरुवार, 9 जुलाई 2009

३ विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

पर्यावरण और व्यक्तिगत चेतना
- डॉ. किशोर पंवार
पर्यावरण एवं प्रकृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । जनसामान्य के लिए जो प्रकृति है उसे ही विज्ञान पर्यावरण कहता है ।``परिआवरण'' यानि हमारे चारों और जो भी वस्तुएं है, शक्तियां हैं और जो हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं वे सभी हमारा पर्यावरण बनाती हैं । मोटे तौर पर जल, जंगल, जमीन , हवा, सूर्य का प्रकाश, रात का अंधकार और अन्य जीव-जन्तु सभी हमारे पर्यावरण के भिन्न तथा अभिन्न अंग हैं । जीवित और मृत को जोड़ने का काम सूर्य की शक्ति करती है । प्रकृति जो हमेंजीने के लिए स्वच्छ वायु, पीने के लिए साफ शीतल जल और खाने के लिए कंद, मूल, फल एवं शिकार उपलब्ध कराती रही है वही अब संकट में है । आज उसकी सुरक्षा का सवाल उठ खड़ा हुआ है । यह धरती माता आज तरह- तरह के खतरों से जूझ रही है । आज से कोई १००-१५० साल पहले घने जंगल थे । कल- कल बहती स्वच्छ सरिताएं थी ।निर्मल झील एवं पावन झरने थे । हमारे जंगल तरह-तरह के जीव जंतुआें से आबाद थे और तो और जंगल का राजा शेर भी तब इनमें निवास करता था । आज ये सब ढूंढे नहीं मिलते हैं । नदियां प्रदूषित कर दी गई हैं ? झील - झरने सूख रहे हैं । जंगलों से पेड़ और वन्य जीव गायब होते जा रहे हैं । चीता हमारे देश से देखते - देखते विलुप्त् हो चुका है । सिंह भी गिर जंगलों में ही बचे हैं । इसी तरह राष्ट्रीय पक्षी मोर, हंस, कौए और घरेलू चिड़ियाआें पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं । यही हाल हवा का है । शहरों की हवा तो बहुत ही प्रदूषित कर दी गई है जिसमें हम सभी का येागदान है । महानगरों की बात तो दूर इंदौर, भोपाल जैेसे मध्यम आकार के शहरों की हवा भी सांस लेने लायक नहीं है । आंकड़े बताते हैं कि कणीय पदार्थ की मात्रा जिसे आरएसपीएम कहते हैं में इंदौर का पूरे देश में चौथा स्थान है । शहरी हवा में सल्फर डायआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड जैसी जहरी गैसें घुली रहती है । कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डायआक्साइड जैसी गैसों की मात्रा हायड्रो कार्बन के साथ बढ़ रही हैै । वहीं खतरनाक ओजोन के भी वायुमंडल में बढ़ने के संकेत हैं । विकास की आंधी में मिट्टी की भी मिट्टी पलीद हो चुकी है । जिस मिट्टी में हम सब खेले हैं जो मिट्टी खेत और खलिहान है, खेल का मैदान है वह तरह- तरह के कीटनाशकों को एवं अन्य रसायनों के अनियंत्रित प्रयोग से प्रदूषित हो चुकी है । खेतों से ज्यादा से ज्यादा उपज लेने की चाह में किए गए रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण वर्तमान में पंजाब एवं हरियाणा की हजारों हेक्टेयर जमीन बंजर हो चुकी है । हमारे कई सांस्कृतिक त्यौहार एवं रीति - रिवाज भी पर्यावरण हितैषी नहंी है । दीपावली और शादी ब्याह के मौकों पर की जाने वाली आतिशबाजी हवा को बहुत ज्यादा प्रदूषित करती है । होली भी हर गली-मोहल्ले की अलग - अलग न जलाकर एक कॉलानी या कुछ कॉलोनियां मिलकर एक सामूहिक होली जलाएं तो इससे इंर्धन भी बचेगा और पर्यावरण भी कम प्रदूषित होगा । जब हम स्वचालित वाहन चलाते हैं तब यह नहीं सोचते कि इससे निकलने वाला धुआें हमारे स्वास्थ्य को भी खराब करता है ।इससे निकली गैसें अम्लीय वर्षा के रूप में हम पर ही बरसेंगी व हमारी मिट्टी और फसलों को खराब करेंगी। यूरोपीय देशों की अधिकांश झीलें अम्लीय वर्षा के कारण मर चुकी हैं । उनमें न तो मछली जिंदा बचती है न पेड़- पौधे । सवाल यह है कि इन पर्यावरणीय समस्याआें का क्या कोई हल है ? क्या हमारी सोच में बदलाव की जरूरत है ? दरअसल प्रकृति को लेकर हमारी सोच में ही खोट है ।तमाम प्राकृतिक संसाधनों को हम धन के स्त्रोत के रूप में देखते हैं और अपने स्वार्थ की खातिर उनका अंधाधुंध दोहन करते हैं । हम यह नहीं सोचते कि हमारे बच्चें को स्वच्छ व शांत पर्यावरण मिलेगा या नहीं । वर्तमान स्थितियों के लिए मुख्य रूप से हमारी कथनी और करनी का फर्क ही जिम्मेदार है। एक ओर हम पेड़ों की पूजा करते हैं तो वहीं उन्हें काटने से भी जरा नहीं हिचकते । हमारी संस्कृति में नदियों को माँ कहा गया है परन्तु इन्हीं माँ स्वरूपा गंगा-जमुना की हालत किसी से छिपी नहीं है। इनमें हम शहर का सारा जल-मल, कूड़ा - करकट, हारफूल यहां तक कि शवों को भी बहा देते हैं । नतीजन अब देश की सारी प्रमुख नदियां गंदे नालों में बदल चुकी हैं । पेड़ों को पूजने के साथ उनकी रक्षा का संकल्प भी हमें उठाना होगा । पर्यावरण रक्षा के लिए कई नियम भी बनाए गए हैं । जैसे खुले में कचरा नहीं जलाने का एवं प्रेशर हार्न नहीं बजाने का नियम है परन्तु इनका सम्मान नहीं किया जाता है । हमें यह सोच भी बदलनी होगी कि नियम तो बनाए ही तोड़ने के लिए जाते हैं । पर्यावरणीय नियम का न्यायालय या पुलिस के डंडे के डर से नहीं बल्कि दिल से सम्मान करना होगा । सच पूछिए तो पर्यावरण की सुरक्षा से बढ़कर आज कोई पूजा नहीं है । प्रकृति का सम्मान ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी । कहा भी जाता है कि प्रकृति ही ईश्वर है । अगर आप सच्च्े ईश्वर भक्त हैं तो भगवान की बनाई इस दुनिया की हवा, पानी, जंगल और जमीन को प्रदूषित होने से बचाएं । वर्तमान संदर्भोंा में इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं है । जरूरत हमें स्वयं सुधरने की है साथ ही हमें अपनी आदतों में पर्यावरण की खातिर बदलाव लाना होगा । याद रहे हम प्रकृति से हें, प्रकृति हमसे नहीं । ***
अब श्वानों के लिए भी मैट्रिमोनियल साइट
अगर आप ने अपने घर में श्वान पाल रखा है और उसके लिए जीवन साथी की तलाश कर रहे है, तो अब आपको ज्यादा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। बस अपने श्वान की जानकारी `डॉगमेटऑनलाईन.कॉम' के नाम की वेबसाइट में डालिए और पाइए उसके लिए उपयुक्त जीवन साथी। इस वेबसाइड की मालिक इशिता सुखादावाला बताती है कि यह साइट काफी लोकप्रिय हो रही है और हजारों की संख्या में लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं । इंडिया इंटरनेशनल पेट ट्रेड फेयर (आईआईपीटीएफ) के ऑकड़े के अनुसार भारत के ६ बड़े शहरों में ही ३० लाख से ज्यादा पालतु श्वान हैं। पालतू जानवरों के लिए साथी तलाशने हेतु पिछले वर्ष भी इसी तरह एक वेबसाइट `पपीलव.इन' की शुरूआत की गई थी ।

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