शनिवार, 11 जुलाई 2009

७ कविता



आज रातभर बरसेे बादल


- डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन






साँझ ढली, नभ के कोने में कारे मेघ छाए
ये विरहनि के ताप, काम के शाप गरज, इतराए,
दीप छिपाए चली समेटे
निशा दिशा का आँचल आज रातभर बरसे बादल ।
अमराई अकुलाई, सिहरी नीम
हँस पड़े चलदल ।
मुखरित मूक अटारी शापित यक्ष हो उठे चंचल ।
गमके मन्द्र मृदंग, बज उठी
रिमझिम-रिमझिम पायल
आज रातभर बरसे बादल ।
खिड़की से झीनी-झीनी
बौछार बिखरती आई,
अनायास ही किसी निठुर की-
याद दृगोंे में छाई ।
बहा आँख का काजल
आज रातभर बरसे बादल ।***

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