शनिवार, 19 सितंबर 2009

४ कविता

कितना प्यारा पेड़
डॉ. रमेशचन्द्र
भरी दोपहरी में लगता है कितना प्यारा पेड़
शीतल छाया लाकर देता है सबको सहारा पेड़
बच्च्े खेलते छिपाछाई और खेलते आंख मिचौली
गिल्ली डंडा खेलते रहते, करते रहते हंसी ठिठौली
अपने ऊपर ले लेता है यह गर्मी सारा पेड़ ।
बड़े - बूढ़े सभी बैठ कर करते रहते वार्तालाप
कोई हुक्का पीता रहता कोई करता मंत्र का जाप
अपनी छाया में ले आता है भाईचारा पेड़ ।
कहीं बच्चें का कलरव होता कहंी बंसी की तान
जिसको छाया मिल जाती वहीं बड़ा इन्सान
सर्दी, गर्मी, वर्षा से कभी न हारा पेड़ ।
प्राणों का संचार है जब तक है ये सारे पेड़
यह उपहार है कुदरत का उनको न कोई छेड़
जीवन और जगत का है यह पालनहारा पेड़ ।
कितने बचपन बीते हैं, इन पेड़ों की छाया में
उम्र का रंग उतर आया है अब काया में
सभी बदल जाते हैं पर नहंी बदला न्यारा पेड़ ।
पेड़ों की छाया में सुनते रामायण और गीता
अपनी शीतल छया में है पूरा जीवन बीता
मंदिर -मस्जिद-गिरिजाघर और गुरूद्वारा पेड़ ।
पेड़ न होता जल न होता और न होता जीवन
बिना पेड़ के मानव जीवन में कितनी बढ़ जातीउलझन
फल देता पत्थर के बदले , किस्मत का मारा पेड़ ।
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