गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

२ विश्व वानिकी दिवस पर विशेष

वन, मानव जीवन के आधार
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
प्रति वर्ष २१ मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है । यह परम्परा सन् १८७२ में नेबरास्का (अमेरिका) में शुरू हुई, इसका श्रेय जे-र्स्टीलंग मार्टिन को जाता है, जिन्होंने पेड़ों की खूबसूरती से वंचित नेबरास्का में अपने घर के आस-पास बड़ी संख्या में पौधे लगाए थे । एक समाचार पत्र के संपादक बनने के बाद उन्होंने अन्य नगर वासियों को भूमि संरक्षण ईधन, इमारती लकड़ी, फल-फूल, छाया और खुबसूरती हेतु पौधे लगाने की सलाह दी । उन्होंने राष्ट्रीय कृषि बोर्ड को भी पौधे लगाने के लिए एक अलग दिन रखने को मना लिया । इस प्रकार विश्व वानिकी दिवस की शुरूआत हुई । प्रथम वानिकी दिवस पर एक लाख से ज्यादा पौधे लगाये गए, धीरे-धीरे पुरी दुनिया में यह दिवस एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा । मानव जीवन के तीन बुनियादी आधार शुद्ध हवा, ताजा पानी और उपजाऊ मिट्टी मुख्य रूप से वनों पर ही आधारित है । इसके साथ ही वनों से कई अप्रत्यक्ष लाभ भी है । जिनमें खाद्य पदार्थ, औषधियां, फल-फूल, ईधन, पशुआहार, इमारती लकड़ी, वर्षा संतुलन, भू-जल संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता आदि प्रमुख है । प्रसिद्ध वन विशेषज्ञ प्रो. तारक मोहनदास ने अपने शोध अध्ययन में बताया है कि एक ५० साल के जीवन में पैदा की गई एक ५० टन वजनी मध्यम आकार के वृक्ष से चीजोंएवं अन्य प्रदत्त सुविधाआें की कीमत लगभग १५.७० लाख रूपये होती है । वन विनाश आज समूचे विश्व की प्रमुख समस्या है, सभ्यता के विकास और तीव्र औद्योगिकरण के फलस्वरूप आज दुनिया वन विनाश के कगार पर खड़ी है । वनों के विनाश का सवाल इस सदी का सर्वाधिक चिंता का विषय बन गया है । पिछले दो-तीन दशकों से इस पर बहस छिड़ी हुई है और वनों का विनाश रोकने के प्रयास भी तेज हुए हैं । देश में पर्यावरण और वनों के प्रति जागरूकता आयी है, लेकिन हरित पट्टी में अपेक्षित विस्तार नहीं हो पा रहा है । पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में औद्योगिक विकास की गति काफी धीमी रही, किन्तु स्वतंत्रता के बाद तीन गुना बढ़ी जनसंख्या का दबाव वन एवं वन्य प्राणियों पर पड़ना स्वाभाविक ही था । यही कारण था कि हमारे समृद्ध वन क्षेत्र सिकुड़ते गये और वन्य प्राणियों की अनेक जातियां धीरे-धीरे समािप्त् की ओर कदम बढ़ाने लगी । हमारे देश के संबंध में यह सुखद बात है कि प्रकृति के प्रति प्रेम का संदेश हमारे धर्मग्रंथों और नीतिशतको में प्राचीनकाल से ही रहा है। सभी पूजा पाठ में तुलसी पत्र और वृक्ष पूजा के विभिन्न पर्वो की हमारी समृद्ध परंपरा रही है । यह लोक मान्यता रही है कि सांझ हो जाने पर पेड़ पौधों से छेड़-छाड़ नहीं करना चाहिए क्यों कि पौधों में प्राण है और वे संवेदनशील होते हैं । हमारे देश में एक तरफ तो वनों के प्रति श्रृद्धा और आस्था का यह दौर चलता रहा और दूसरी ओर बड़ी बेरहमी से वनों को उजाड़ा जाता रहा है । यह सिलसिला अभी भी धमा नहीं है । अनुमान है कि प्रति वर्ष १५ लाख हेक्टेयर वन कटते है । हमारी राष्ट्रीय वन नीति में कहा गया था कि देश एक-तिहाई हिस्से को हरा भरा रखेंगे, लेकिन पिछले वर्षोंा में भू-उपग्रह के छाया चित्रों से स्पष्ट है कि देश में ३३ प्रतिशत के बजाय १३ प्रतिशत ही वन क्षेत्र रह गया है । भारत में जैव-विविधता की समृद्ध परंपरा रही है वर्तमान में भारत की जैव-विविधता दुनिया के ६.४ प्रतिशत प्राणियों एवं ७ प्रतिशत वनस्पतियों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि हमारा वन क्षेत्र विश्व के २ प्रतिशत से भी कम हैं और इसे विश्व की १५ प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का दबाव झेलना पड़ता है । भारत में कुल ८१ हजार प्राणी-प्रजातियां एवं ४५ हजार वनस्पति प्रजातियां पायी जाती है । प्राणियों में सर्वाधिक ५७ हजार प्रजातियां तो कीट पतंगो की है, इसमें सबसे कम ३७२ प्रजातियों स्तनधारी प्राणियों की है । वनस्पति प्रजातियों का एक तिहाई १५ हजार प्रजातियां उच्च् वर्गीय पौधों की है, शेष प्रजातियों में २३ हजार फफूंद, १२ हजार कवक और ३ हजार ब्रायोफाहट शामिल हैं । जैव विविधता की स्मृद्धि की प्रसन्नता के साथ ही यह कम दुखद नहीं है कि हमारे देश में १५०० वनस्पति प्रजातियां ८१ स्तनधारी प्राणी प्रजातियां, १५ सरिसृप, ४७ चिड़िया, ३ अभयचर और अनेक कीट पतंगो की प्रजातियां विलुप्त्ता की कगार पर है । वन महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा है, जो न केवल देश की समृध्दि को बढ़ाते हैं वरन देश के पर्यावरण संतुलन को भी बनाये रखते है । आज विश्व की जलवायु में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो रहे है । इसमें वन कटाई प्रमुख कारण है । इस विषय पर अब तक उनके राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय मंचों पर बहस हो चुकी है । जलवायु परिवर्तन सर्वाधिक महत्व का मुद्दा है । जलवायु परिवर्तन और स्थायी विकास के मुद्दों में गहरा संबंध है । हमारे देश में जलवायु परिवर्तन से सामाजिक संकट आने की संभावना बनी रहती है, क्योंकि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था जलवायु संतुलन से ही संतुलित रहती है । भारतीय संस्कृति मूलत: अरण्य संस्कृति रही है । हमारे मनीषियों ने वनों के सुरम्य, शांत और स्वच्छ परिवेश में चिंतन मनन कर अनेक महान ग्रंथों की रचना की थी आज भी विश्व मानवता का मार्गदर्शन कर रहे हैं । सन् १९७६ में ४२ वें संविधान संशोधन के जरिये संविधान मेें पर्यावरण संबंधी मुद्दे शामिल किए गये । राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद ४८ `अ' जोड़ा गया जिसमें कहा गया है कि राज्य देश के प्राकृतिक पर्यावरण वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा तथा विकास के लिए उपाय करेगा । मौलिक कर्तव्यों से संबंधित अनुच्देद ५१ `अ' में कहा गया है कि वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन की सुरक्षा व विकास तथा सभी जीवों के प्रति सहानुभूति हरेक नागरिक का कर्तव्य होगा । इसके साथ ही वन एवं वन्य जीवन से जुड़े सवालों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल कर दिया गया। भारत में विश्व वानिकी दिवस का विशेष महत्व है । खेजड़ली के शहीदों से लेकर चिपको आंदोलन तक पेड़ और प्रकृति रक्षा की महान विरासत हमारी राष्ट्रीय धरोहर है । हमने संसार को संदेश दिया है कि पेड़ों से हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं, हम उसे अपना भाई मानते है, उसकी रक्षा में प्राणों की बलि देने में हम संकोच नहीं करते हैं । क्योंकि हम जानतें है कि पर्यावरण की रक्षा अपने होने की रक्षा है। आज के विश्व में इसी संदेश की आवश्यकता है ।***
पिछले ३ साल में गिर वन में मरे ११६ शेर
पिछले दिनों गुजरात सरकार ने विधानसभा में बताया कि तीन सालों में ११६ शेरों की मौत हो चुकी है । गुजरात में एशियाई शेरों की आखिरी प्रजाति बची है । कांग्रेस नेता अजरून मोढवाड़िया के प्रश्न के लिखित उत्तर में वन और पर्यावरण मंत्री मांगूभाई पटेल ने यह जानकारी दी । मंत्री ने बताया कि २००५ में हुई पिछली गणना के अनुसार गिर वन में २९१ शेर थे । उन्होंने बताया कि २००७ में ४० शेर थे । उन्होंने बताया कि २००७ में ४० शेरों की मौत हो गई, जबकि २००८ में ४२ शेरों की मौत हुई ।

1 टिप्पणी:

rpscportal ने कहा…

aaaj kal विश्व वानिकी दिवस ka log kuch mahatva hi nahi jante he. ek din aayega jab log padeon ke lie tarsenge.