शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

११ कविता

वृक्ष देव
प्रेम वल्लभ पुरोहित प्रेम

बरसों पुराना
बुजुर्गोंा का पाला-पौसा
घनी छांव से लद-लद
बटरोही
घसियारी दीदी
और - परिंदों का
अपनेपन का रिश्ता
वह, विशालकाय वृक्ष देव
उन लोगों ने
निर्ममता से काट डाला
जो - केवल आदमी जैसे हैं ।
हाँ, तभी से
पेड़ों की घनेरी छाया
दुपहरी में धूप लगती
और फल कषैले
घर में सांस
रूकी-रूकी सी लगती है
***

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