शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

४ जनस्वास्थ्य

चावल की गुणवत्ता पर टकराहट
सुश्री ज्योतिका सूद

पंजाब में चावल की नई किस्म में पड़े काले धब्बों के कारण उसकी खरीद पर रोक लगा दी गई थी । सरकारी कृषि शोध संस्थाएं जहां इन धब्बों को लौह अधिकता का परिणाम बता रही हैं वहीं दूसरी ओर मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही सरकारी शोध संस्था आईसीएमआर ने इस बात को सिरे से नकारते हुए इस खाने योग्य अवश्य ठहरा दिया है । सवाल उठता है कि इतने दिनोंेतक इस विवाद को तूल देने के पीछे कहीं विदेशी बीज कंपनियोंकी साजिश तो नहीं थी ?
भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) ने चावल की विवादास्पद किस्म पीएयू - २०१ को मानव उपभोग हेतु स्वीकृति प्रदान कर दी है । ४००० करोड़ रूपये मूल्य के ४ लाख टन चावल का भाग्य पिछले एक वर्ष से अधिक से अधर में लटका था । पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के नाम पर विकसित पीएयू-२०१ चावल पर भारतीय खाद्य निगम, केन्द्रीय खरीद करने वाली एजेंसियों एवं पंजाब सरकार किसी समझौते पर नहीं पहुंच पा रहे थे । भारतीय खाद्य निगम का कहना था कि चावल के दाने पर काले दाग हैं और कुछ मामलों में इसमें स्वीकृत पैमाने से अधिक नुकसान हुआ है तथा चावल के दाने भी टूटे हुए हैं । उनका कहना था कि इस सबके चलते यह चावल खाने के लिए अनुपयुक्त हैं । वहीं कृषि विश्वविद्यालय का दावा था कि ये धब्बे चावल में निहित आयरन के कारण हैं ।
सितम्बर के आखिरी सप्तह में इस संबंध में भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए आईसीएमआर ने कहा है कि इसके अंतर्गत मिलने वाली विशिष्ट किस्म की विषैली खुमी भी स्वीकृत स्तर के अंदर ही है । इसमेंकिसी भी तरह की फफूंद की बात को नकारा गया है परंतु इसी के साथ कृषि विश्वविद्यालय के उस दावे को भी खारिज कर दिया है कि चावल पर पड़े धब्बे अधिक मात्रा में आयरन की वजह से हैं ।
मेडिकल काउंसिल के उपनिदेशक जनरल जी.एस.टुटेजा की अध्यक्षता वाली इस समिति ने पंजाब के ६ जिलों की ३५ धान जिलों से २१ अगस्त से २३ अगस्त २०१० के मध्य धान के ३५ नमूने उठाए थे । इन नमूनों का विश्लेषण हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान, एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन एजेंसी, कोच्ची एवं विमता लेब, हैदराबाद द्वारा किया गया था ।
किसानों द्वारा इस चावल के चयन के पीछे निम्न चार प्रमुख कारण थे - ज्यादा अन्न उत्पादन, अधिक प्रतिरोध क्षमता, जल्दी पकना (अन्य फसलों से १५ दिन पहले) और १० से १५ दिन पहले) और १० से १५ प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता । जारी होने के तीन वर्षोंा में ही पंजाब के धान उत्पादन के कुल २.६ करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में से ३५ प्रतिशत में इस किस्म को उगाया जाने लगा था । ३१ अगस्त को लोकसभा में शिरोमणी अकाली दल के सदस्यों ने इस मामले को हंगामेदार ढंग से उठाया था । उनका कहना था इस चावल का बाजार मूल्य करीब ४००० करोड़ रूपये है और सरकार इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है जबकि अब तो विशेषज्ञों ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि यह उपभोग के लिए उपयुक्त है ।
गुरदासपुर के सांसद प्रतापसिंह ने बताया कि अगर चावल पर आए धब्बों से कुछ परेशानी है तो इसे गरीबों को कम कीमत में बांटा जा सकता है । वैसे चावल की किस्म को लेकर पिछले वर्ष विवाद तब शुरू हुआ था जब एक समाचार पत्र ने इसके बारे में लिखा था कि यह जहरीला है । राज्य के चावल मिल मालिक भी उसी सुर में सुर मिलाकर कहने लगे कि मिलिंग (सफाई) के दौरान इसका दाना टूटता है । दिसम्बर २००९ में भारतीय खाद्य निगम एवं खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने घोषणा की कि पीएयू-२०१ किस्म में स्वीकृत १.७५ प्रतिशत से अधिक दाना टूटता है । इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने लुधियाना स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हारवेस्ट इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी के निदेशक आर.टी.पाटिल की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर उससे पांच दिन के भीतर रिपोर्ट देने को कहा था ।
रिपोर्ट में कहा गया था कि यह किस्म मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है । पर्यावरण पत्रिका डाउन टू अर्थ से बातचीत करते हुए पाटिल ने कहा कि हमने पाया कि धब्बेदार चावल में सामान्य चावल से अधिक मात्रा में आयरन या लौह तत्व हैं तथा कुल मिलाकर पीएयू-२०१ मे पारम्परिक चावल से लौह तत्व की मात्रा अधिक है । उनका यह भी कहना है कि इससे १९८२ में आंध्रप्रदेश में विकसित फाल्गुन किस्म के चावल के नतीजों को भी सही साबित कर दिया है । एतएव चावल के काले होने के पीछे लौह तत्व की अधिकता हो सकती है । परंतु इसकी पूर्ण विश्वसनीयता विस्तृत अध्ययन के बाद ही सिद्ध हो पाएगी । अतएव अब इस मामले को चावल शोध संचालनालय को सौंप दिया गया है ।
वहीं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक एस.एस.गोयल का कहना है कि चावल पर काले एवं भूरे धब्बे पौधे के जैविक चरित्र की वजह से भी हो सकते हैं। साथ ही फेनोलिक्स नामक एंटी-ऑक्सिडेंट की मौजूदगी भी इसका कारण हो सकती है । परंतु यह विचारणीय है कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हारवेस्ट इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी की जिस रिपोर्ट के आधार पर इस चावल को अत्यधिक लौह तत्वों से समृद्ध बताया जा रहा था उसे आरसीएमआर ने रद्द कर दिया
है । ***

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