शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

७ पर्यावरण परिक्रमा

भारत छोटे परमाणु संयंत्र निर्यात करेगा

भारत अब परमाणु संयंत्र की निर्माण स्थिति में पहुँच गया है । कजाकिस्तान से इस बारे में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हो चुके हैं और थाईलैंड, कम्बोडिया तथा वियतनाम से बात चल रही है । भारत अब केवल निर्यात के लिए छोटे परमाणु संयंत्र बनाएगा, जिनकी बिजली उत्पादन क्षमता सिर्फ २२० मेगावाट होती है ।
परमाणु संयंत्र निर्यात करने की इस क्षमता के साथ भारत की एशिया में रणनीतिक स्थिति और मजबूत हो जाएगी । चीन के साथ अब भारत भी इस क्षेत्र में अपनी दावेदारी तेज करने की दिशा में बढ़ रहा है । छोटे देशों में ऐसे रिएक्टरों की माँग बढ़ी है । बड़ी कंपनियाँ बड़े संयंत्र बनाती है, इसलिए भारत छोटे संयंत्रों के बाजार को ध्यान में रख इनके निर्यात की तैयारी में है ।
योरपीय तथा अमेरिकी परमाणु संयंत्र कंपनियाँ इस समय ७०० से १००० मेगावाट से कम क्षमता वाले रिएक्टर नहीं बना रही हैं । ये रिएक्टर बेहद महँगे पड़ते हैं इसलिए छोटे देशों की माँग छोटे रिएक्टरों की है । चीन इस बाजार में तेजी से उभर रहा है । भारत को भी उम्मीद है कि वह इस क्षेत्र में अच्छा बाजार हथिया सकता है क्योंकि उसके रिएक्टरों की गुणवत्ता ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है । भारत इस दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ने जा रहा है ।

धरती पर जीवन की शुरूआत के नये प्रमाण

विंध्य नदी घाटी के जीवाश्मोंके एक नए अध्ययन के मुताबिक धरती पर जीवन की शुरूआत पहले के अनुमान से ४० करोड़ साल पहले हुई है और धरती पर जीवन का आरंभ भारत के विंध्य क्षेत्र में हुआ है ।
कर्टिन तकनीकी विश्वविद्यालय ऑस्ट्रेलिया के ब्रिगर रासमुसेन की अगुवाई में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताआें के एक दल ने विंध्यांचल पर्वत और घाटी के कुछ नमूने का अध्ययन किया और पाया कि यहाँके जीवाश्म १.६ अरब साल पुराने हैं । वहीं धरती के किसी भी हिस्से मे पाए जीवाश्मों से ये ४० से ६०
करोड़ साल पुराने हैं । अवधेश प्रताप सिंह विवि रीवा के प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.महेश श्रीवास्तव बताते हैंकि विवि के संग्रहालय में एकत्रित जीवाश्मों में मानव की प्राचीन सभ्यता का इतिहास छिपा
है । यहाँ संग्रहीत जीवाश्म इस बात के प्रमाण हैं कि जीवन का आरंभ धरती पर इसी क्षेत्र से हुआ है । पहले यहाँ समुद्र लहराता था । यहाँ लाखों साले पुराने कछुए का जीवाश्म भी संग्रहीत है, जो इसी क्षेत्र में पाया गया था । अभी भी तमाम जीवाश्मों का अध्ययन होना बाकी है, जिससे कई और रहस्य उजागर हो सकती हैं ।
शोध के नतीजों की रिपोर्ट में कहा गया है शोधकर्ताआें ने इस काम के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल किया था । जीवाश्म के आयु निर्धारण के लिए उसमेंमौजुद पास्पोरेट का लेड डेटिंग किया
गया । करोड़ों साल पहले जीवाश्मीकरण की प्रक्रिया मेंसमुद्र तल पर पास्पोरेट कार्बनिक पदार्थ पर जमा होने लगे थे ।
महाविद्यालय रीवा के डॉ.श्रीनिवास मिश्र के पास नारियल का जीवाश्म संग्रहीत है,
जो अपने देश का सबसे पुराना जीवाश्म माना गया है । हाल ही में वन विभाग के अनुसंधान केन्द्र में एक ऐसा जीव पाया गया है, जो समुद्री प्रजाति का है ।
शासकीय महाविद्यालय के भू गर्भ वैज्ञानिक डॉ. आरएन तिवारी एवं डीपी दुबे ने पिछले महीने नागपुर में हुए एक राष्ट्रीय सेमिनार मे अपना शोध पत्र पढ़ा था जिसे स्वीकार भी किया गया । विंध्य पर्वत की चर्चा भारतीय पौराणिक कथाआें में भी मिलती है । पुराकथाआें में इस क्षेत्र में बहने वाली गंगा, कर्मनाशा आदि नदियों की भी चर्चा है । शायद ये तथ्य भी इस भू-भाग में जीवन की प्राचीनता और निरंतरता की ओर ही संकेत करते हैं । विंध्य का पठार, मालवा पठार के उत्तर में तथा बुंदेलखंड पठार के दक्षिण में विंध्य का पठारी प्रदेश स्थित है । इस प्रदेश के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से रीवा, सतना, पन्ना, दमोह, सागर जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ३१,९५४ किमी है । विंध्य शैल समूह के मध्य आर्कियन युग की विंध्यांचल मप्र की महत्त्वपूर्ण पर्वत माला है । विंध्यांचल पर्वत का इतिहास हिमालय से भी पुराना है ।

मध्यप्रदेश की हवा में बढ़ता जहर

मध्यप्रदेश के ३१५ उद्योग प्रदेश की आबोहवा को लगातार जहरीला बना रहे हैं। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन उद्योगों की लगाम कसने में नाकाम रहा है । बोर्ड की वर्ष २००९-१० की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार २४४ उद्योगों में विश्लेषित जल प्रचालक तथा ७१ उद्योगों में विश्लेषित वायु प्रचालक निर्धारित मानक सीमा से अधिक पाए गए हैं ।
हाल ही में राजधानी स्थिर गैर सरकारी संगठन प्रयत्न ने सूचना के अधिकार के तहत जो जल व वायु प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की मॉनीटरिंग परिणाम की सूची हासिल की है । उसके अनुसार उज्जैन, भोपाल व इंदौर के उद्योग जल व वायु प्रचालक निर्धारित मानकों से अधिक जहर उगल रहे
हैं । भोपाल प्रयोगशाला के तहत आने वाले उद्योगों में ४३ उद्योग ऐसे हैं । जो जल प्रदूषण तथा ५ उद्योग वायु प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार पए गए हैं। इनमें सर्वाधिक १९ मण्डीदीप के हैं। इसके अलावा भोपाल के १०, विदिशा ४, बैतूल ३, सारणी व इटारसी २-२, सेहतगंज व होशंगाबाद के १-१ तथा दो अन्य शामिल हैं। इस मामले में उज्जैन की स्थित काफी खराब है । यहाँ के ५१ उद्योग विश्लेषित जल व २० उद्योग विश्लेषित वायु प्रचालक निर्धारित मानकों से अधिक जहर उगल रहे हैं ।
उल्लेखनीय हैं कि जल अधिनियम २१ व वायु अधिनियम २६ के तहत मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जल व वायु प्रदूषण की मॉनीटरिंग करता है । सूचना के अधिकार में जो जानकारी सामने आई है उससे साफ जाहिर है कि मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर अंकुश लगाने में नाकाम रहा है । हालाँकि मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि मॉनीटरिंग के दौरान जिन उद्योगों में विश्लेषित जल व वायु प्रचालक निर्धारित मानक सीमा से अधिक पाए गए हैं उन्हें नोटिस जारी कर प्रचालक निर्धारित मानक सीमा से कम करने को कहा गया है । वहीं प्रयत्न संस्थान के अजय दुबे के अनुसार इस मामले में बोर्ड पूरी तरह नाकाम रहा है । गौरतलब है कि केंन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने सर्वे रिपोर्ट में इंदौर व सिंगरौली को देश के चालीस सर्वाधिक प्रदूषित शहरोंमें रखा है । यहाँ तक की इंदौर में दिसंबर २०१० तक नए उद्योग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है ।

संतुलित आहार की कमी से बढ़ रहा है मोटापा

राजस्थान में मोटापे के कारण जयपुर के १७ फीसदी बच्च्े डायबिटीज की गिरफ्त में हैं । यह खुलासा नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रोल फाउंडेशन (एनडीओसीएफ) के सात शहरों में किए गए सर्वे में हुआ है । यह खुलासा नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रोल फाउंडेशन (एनडीओसीएफ) के सात शहरों में किए गए सर्वे में हुआ है । इसमें जयपुर, बेंगलुर, मुंबई, देहरादून, आगरा, लखनऊ व दिल्ली के ४७ हजार बच्च्े शामिल थे । इनमें जयपुर के १०,३०८ बच्च्े थे । शोधकर्ता डॉ. अनूप मिश्रा के अनुसार संतुलित आहार की कमी, व्यायाम नहीं करने से शहरी लोगों में मोटापा बढ़ रहा है । सर्वे में पाया गया कि बच्च्े चिप्स, बर्गर, पिज्जा, पेटीज, पेस्ट्री, क्रीमरोल, समोसे आदि का सेवन करके ८०० अतिरिक्त कैलोरी ले रहे हैंजिसके कारण ट्रांसफैट्टी एसिड (टीएफए) तीन गुना बढ़ गया । टीएफए से ही हार्ट की खून की नलियों मे मे कोलेस्ट्रॉल (एक तरह की वसा) जमा हो जाता है, जो हार्ट अटैक का कारण बनता है । प्रिजरेवेटिव वाले फुड के जरिए बच्च्े ५४० एमएलजी अतिरिक्त कारबोहाइड्रेट ले रहे हैं, जिसे ग्लूकोज का सबसे बेहतर स्त्रोत माना जता है ।
डायबिटीज के कारण दिल के बाद गुर्देभी खराब होने का खतरा होता है । इस बीमारी से हार्ट अटैक की आशंका ५०प्रतिशत, हाई ब्लड प्रेशर ४० प्रतिशत, तनाव ३५ प्रतिशत और किडनी खराब होने की आशंका ४५ प्रतिशत रहती है । इसके अलावा विकलांगता भी आ सकती है ।
एसएमएस अस्पताल के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ.संदीप माथुर ने बताया कि जिन बच्चेंके माता-पिता को डायबिटीज होती है, उनके बच्चेंको कम उम्र में ही यह बीमारी होने की अधिक संभावना होती है । यानी यह रोग आनुवांशिक (जेनेटिक) भी होता है । आजकल २० साल से कम उम्र में भी टाइप-टू, डायबिटीज देखने को मिल रही है ।
जेके लोन अस्पताल के डॉ.अशोक गुप्त के अनुसार यह मेटाबॉलिक डिसऑर्डर हैं, जिसमें भोजन शरीर मे पहुंचकर ग्लूकोज में बदल जाता है । यह ग्लूकोज रक्त के जरिए कोशिकाआें में जाकर ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल होता है । लीवर के दाहिने हिस्से में मौजूद ग्रंथि (पेंक्रियाज) खून में इंसुलिन का स्त्राव व नियंत्रण करने का काम करता है । ***

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