शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

पर्यावरण परिक्रमा

विकासशील देशों के लिए बनेगा क्लाइमेट फंड

पिछले दिनोंदों महिने की कशमकश के बाद आखिरकार कानकुन सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर सहमति बन गई । इसके तहत विकासशील देशोंकी मदद के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड बनाया जाएगा । मेक्सिको ने समझौते का मसौदा पेश किया जिसे बोलिविया की आपत्ति के बावजूद अनुमोदित कर दिया गया ।
मसौदे में कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन और कम करने की जरूरत है । जापान, चीन और अमेरिका ने सबसे ज्यादा विरोध जताया था लेकिन बाद में उन्होंने मसौदे को मंजूरी दे दी । वैसे सम्मेलन के आखिरी दिन प्रतिनिधियों को ज्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन पर्दे के पीछे हुई कूटनीति रंग लाई जिससे एक ऐसा मसौदा तैयार हो सका जो सबको मंजूर था । रूस और जापान मसौदे मेंअपने हित से जुड़ी बात डलवाने में सफल रहे हैं । वहीं इस मसौदे में कहा गया है कि क्योटो संधि कारगार साबित होगी जो विकासशील देश चाहते थे ।
विशेष ग्रीन क्लाइमेट फंड का मकसद है कि २०२० तक १०० अरब डॉलर जुटाकर गरीब देशोंको दिए जाएं ताकि ये देश जलवायु परितर्वन के नतीजों से निपट सके और कम कार्बन उत्सर्जन की ओर बढ़ सके । पेड़ों की कटाई रोकने के लिए कदमों का प्रावधान है और जलवायु संरक्षण योजना बनाने वाले देशों की मदद एक विशेष समिति करेगी । साथ ही उत्सर्जन में कमी पर नजर भी रखी जाएगी । लेकिन विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती करने के कदमों की अंतराष्ट्रीय निगरानी तभी हो सकेगी जब कटौती के लिए पश्चिम देश पैसा देंगे ।
सम्मेलन के हुए समझोते पर भारत ने खुशी जाहिर की है । पर्यावरणमंत्री जयराम रमेश ने कहा कि भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और चीन २०० देशोंके जलवायु वार्ताकारोंद्वारा क्योटो प्रोटोकॉल पर और दीर्घकाल में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तैयार दस्तावेजों से बेहद खुश है । हालांकि १९३ देशोंद्वारा वितरित किए प्रारूप को औपचारिक रूप से अभी स्वीकार किया जाना है ।

जानवरों को भी सता रहा मोटापे का डर

क्या हमारे वातावरण में ही कुछ ऐसा हो रहा है कि इन्सान और जानवर सभी मोटे हो रहे हैं ? प्रोसीडिंग्स ऑफ रॉयल सोसायटी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार , मोटापे में बड़े ही नाटकीय ढंग से वृद्धि हो रही है ।
यह किसी से छुपा नहीं है कि इंसानों में मोटापा अब महामारी का रूप ले चुका है । शोधकर्ताआें ने शरीरिक श्रम में कमी या अत्यधिक जंक फूड खाने की आदत जैसे सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि शायद पर्यावरण के किसी कारक को भी दोषी ठहराया जा सकता है, यूनिवर्सिटी ऑफ अलबामा बर्मिंगहम के डेविड एलियन और उनके सहकर्मियों ने उत्तरी अमेरिका की ८ अलग-अलग प्रजातियों की २४ बस्तियों के २०,००० से अधिक वयस्क जानवरों के शरीर के भार का अध्ययन किया ।
इसमें केवल उन स्तनधारियों को शामिल किया गया था जिनका पिछले ५० सालों में दो बार वजन नापा जा चुका था और साथ ही जिनके वजन में न तो शोधकार्य के दौरान जानबूझकर कोई छेड़छाड़ की गई थी और न ही वे किसी फीडिंग प्रोग्राम का हिस्सा थे इन २४ आबादियों में अनुसंधान कार्य के लिए सुरक्षित रखे गए प्राइमेट्स से लेकर बाल्टीमोर के जंगलोंमें पाए जाने वाले
जंगली चूहे तक शामिल थे इन सभी के वजन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई ।
घरेलु जानवर भी इससे अछूते नहीं हैं, बिल्लियों के औसत वजन के प्रति दशक लगभग १० प्रतिशत की वृद्धि हुई और कुत्तों के वजन मेंहर दशक में ३ प्रतिशत की वृद्धि हुई, अध्ययन के दौरान ऐसे जीवों के शरीर के भार में भी बढ़ोतरी देखी गयी है जिनकी गतिविधि में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया था ।
एलियन कहते हैं कि इस प्रकार अगर आहार में परिवर्तन और ऊर्जा असंतुलन मोटापे के लिए जिम्मेदार नहीं है तो अवश्य ही कुछ पर्यावरणीय कारक इसके पीछे हो सकते हैं, हो सकता है कि इस शोध में शामिल जानवरों ने खाया अधिक और व्यायाम कम किया हो, जैसा कि अक्सर हम भी करते हैं, एलियन स्वीकार करते हैं कि ऐसा संभव हैं पर साथ ही वे कहते हैं कि वैज्ञानिक इस बात का पूरा रिकार्ड रखते हैं कि अनुसंधान कार्य में लगे जानवरों को आखिर क्या खिलाया गया था ।

मध्य प्रदेश की नदियों का कायाकल्प

मध्यप्रदेश में सालों से सूखी पड़ी नदियों के दिन फिर से अब बहुरने वाले हैं । कम वर्षा, पर्याप्त् रखरखाव का अभाव और अवैध रेत उत्खनन के चलते पानी धारण करने की क्षमता खो चुकी नदियों के लिए राज्य सरकार ने नदी पुनर्जीवित योजना के जरिए इन्हें फिर से आबाद करने की योजना बनाई है ।
योजना के पहले चरण में इंदौर संभाग के सात जिलों की ११ नदियों का कायाकल्प होगा । गौरतलब है कि प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में दो दशकों के दौरान कई बार पड़े सूखे के कारण प्रदेश की कई नदियां मैदान में तब्दील हो चुकी हैै । इसके अलावा रेत माफिया द्वारा किये गये अवैध उत्खनन के कारण नदियां पानी धारण करने की अपनी क्षमता खो चुकी हैं ।
योजना के तहत इंदौर की क्षिप्रा नदी को १५ करोड़ २८ लाख, धार की बागली, मान, माही और बेलवाली नदियों
के लिए ६१.५७ करोड़, झाबुआ की पद्मावती और नौगांव के लिए २४.२३ करोड़, खरगौन की रूप, कावटी, हाथिनी बरोड़ के लिए ८.३४ करोड़, बड़वानी की डेब के लिये ३४.१२ करोड़ और बुरहानपुर की मोहना और उतावली नदी के लिये ८.२२ करोड़ रूपये मंजूर किये गये हैं ।
राज्य सरकार ने अब नदियों की हालत सुधारने के लिये नदी पुनर्जीवित योजना बनाई है । इसके तहत प्रदेश की सूखी पड़ी नदियों को चिन्हित कर उनका कायाकल्प किया जायेगा । योजना के पहले चरण में इंदौर संभाग के सात जिलों की ग्यारह नदियों को संवारने का लक्ष्य रखाा गया है ।
राज्य शासन ने इसके लिए १८५ करोड़ रूपये मंजुर किये हैं । इस राशि से चुनी गई नदी को पुनर्जीवन दिया जायेगा । उनके बहने के रास्ते के साथ स्टाप डेम भी बनाये जायेंगे । इतना ही नहीं नदी में मिलने वाले नालों के बंद रास्ते खोले जायेंगे और उन्हें नया रूप दिया जायेगा ताकि नदियों में पर्याप्त् पानी आ सके । सरकार इस योजना के जरिये किसानों को सिंचाई के लिये पानी भी मुहैया करायेगी ।

गजराज दुष्चक्र में फंसकर गंवाते हैंजान

महाबली गजराज भी जब दुष्चक्र में फंसता है तो उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है । हाल के वर्षोंा में देश में विभिन्न घटनाआें और शिकारियों के कारण कम से कम २५० हाथियों की मौत हो चुकी हैं ।
आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार गजराज की मौत जहर खाने, बिजली के करंट लगने, खाई में गिरने और रेल दुर्घटनाआें में होती हैं । इसके अलावा कीमती हाथी दांत को लेकर शिकारी इसका शिकार तो करते ही हैं । वर्ष २०१०-११ के आरंभ में ही कुल २१ हाथियोंकी मौत हो गई थीं । इनमें से ११ हाथी रेल हादसों का शिकार हुए थे जबकि छह की मौत बिजली के करंट लगने से हो गई थी । शिकारियों ने भी चार हाथियों पर अपना हाथ साफ
किया । इस वर्ष इसके अलावा बंगाल, असम और उत्तरांचल में रेल दुर्घटनाआें तथा अन्य हादसों में हाथयों की मौत हुई हैं ।
वर्ष २००७-०८ के दौरान कुल ७७ हाथियों की मौत हुई । इनमें से ४८ तो केवल बिजली के झटके के शिकार हुए । इसी वर्ष १२ हाथियों की मौत रेल दुर्घटनाआें में और छह की जहर खाने से हो गई । शिकारियों ने ११ हाथियों को मारा । इसके अगले वर्ष २००८-०९ के दौरान कुल ७४ हाथियोंकी मौत हुई । इस वर्ष केवल आठ हाथी रेल दुर्घटनाआें का शिकार हुए लेकिन दस हाथियों की जहर खाने से मौत हो गई । बिजली के झटके से ४३ हाथी मारे गए । जबकि १३ शिकारियोंने मार डाला ।
वर्ष २००९-१० के दौरान विभिन्न हादसोंमें सबसे अधिक ७८ हाथियों की मौत हुई । इस वर्ष सबसे अधिक १३ हाथी रेल दुर्घटनाआें में मारे गए जबकि पांच की जहर खाने से मौत हो गई । इस वर्ष ४५गजराजों की मौत बिजली के करंट लगने से हो गई हालांकि इस दौरान शिकारियों ने भी १५ हाथियों को अपना निशाना बनाया ।
प्राथमिक तौर पर हाथियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है । केन्द्र सरकार ने हाथियों की सुरक्षा का लेकर राज्य सरकारों को वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती है । केन्द्र सरकार की ओर से हाथियों की सुरक्षा को लेकर १९९२ में देश में हाथी परियोजना की शुरूआत की गई । इसके बाद से ही संबंधित राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है ।

ताज को विशेष लेप से निखारा जाएगा


अंतरराष्ट्रीय धरोहर ताजमहल की दमक आने वाले कुछ दिनोंमें और उजली होगी, क्योंकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) एक विशेष प्रकार के लेप से इसमेंनिखार लाने की योजना बना रहा है ।
एएसआई की रसायन शाखा के उपाधीक्षक पुरातत्ववेत्ता एमके समाधिया ने बताया कि ताजमहल को धूल, गंदगी और उसकी खूबसूरती को धुंधला करने वाले अन्य तत्वोंसे मुक्त कराने के लिए हमने इमारत पर एक विशेष प्रकार की मिट्टी का लेप करने की योजना बनाई है । इस बारे में एक प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है ।
उन्होंने कहा कि इस कवायद के तहत इस ऐतिहासिक इमारत की दीवारों तथा अंदरूनी हिस्से पर लेप किया जाएगा । हम ताजमहल के पास स्थित ताज मस्जिद पर यह लेप कर और खूबसूरत बनाने क ा काम कुछ दिन पहले ही पूरा कर चुके हैं। मुलतानी मिट्टी में धूल, गंदगी तथा रंगत को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य तत्वों को साफ कर खूबसूरती निखारने की खासियत होती है ।उन्होंने कहा कि लेप लगाने के कुछ देर बाद इमारत को आसवित पानी से धोया जाता है ।
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