शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

कृषि जगत

किसानों के हित में नहीं है अधिनियम
सुश्री ज्योतिका सूद

मूल कानून तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों की सुरक्षा के लिए ही बनाया गया था । इसीलिए तो फसल की असफलता या नुकसानी की स्थिति मेंबीज आपूर्तिकर्ता को इस कानून के अंतर्गत उत्तरदायी नहीं ठहराया गया था ।
प्रस्तावित बीज अधिनियम २०१० को लेकर व्यापक असंतोष सामने आने लगा है । अधिकांश राजनीतिक दल अब खुले रूप से यह कहने लगे हैं कि यह कानून बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों की सुरक्षा के नजरिए से ही लाया जा रहा है और इसमें भारतीय किसानों को बर्बादी से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं किए गए हैं ।
पिछले छह वर्षोंा में बीज कानून का मसौदा कई बार तैयार किया जा चुका है । केन्द्रीय कृषि मंत्री को विश्वास था कि संसद के शीतकालीन सत्र में में यह कानून पारित हो जाएगा । वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल एवं सत्तारूढ़ कांग्रेस के भी कुछ सांसद इस कानून का विरोध कर रहे हैं ।
बीज कानून २०१० का मसौदा सर्वप्रथम सन् २००४ में तैयार किया गया था । इसके अंतर्गत बीजोंके उत्पादन, वितरण और बिक्री, जिसमें आयात और निर्यात दोनों ही शामिल हैं, के नियमन के अतिरिक्त प्रत्येक बीज कंपनी से न्यूनतम गुणवत्ता बनाए रखने की अपेक्षा की गई
थी । मार्च में मंत्रीपरिषद की स्वीकृति के पश्चात इसे राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया। परंतु अनेक सांसदों, आंध्रप्रदेश सरकार और किसान समूहों द्वारा सुझाए गए १०० से अधिक संशोधनों के पश्चात मंत्रालय ने इसे पुन: तैयार करने क ा निश्चय किया । इस कानून को लेकर कुछ मुख्य आपत्तियां थींकि इसमें बीजों की कीमतों की निगरानी की व्यवस्था ही नहीं है और यह बीजों के नाकारा सिद्ध होने की स्थिति में कंपनियों को दोषी ठहराने और किसानों को पर्याप्त् मुआवजा दिये जाने के प्रावधानों पर भी मौन हैं ।
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान मसौदा नागरिक संगठनों व किसान समूहों से कई बार हुए विचार-विमर्श के बाद सामने आया है और यह संसद की कृषि संबंधी स्थायी समिति की अनुशंसा पर आधारित है । परंतु विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि इसमें कई मुद्दों का संज्ञान ही नहीं लिया गया है । उनका कहना है कि वर्तमान मसौदे में दूरसंचार नियामक प्राधिकारी की तरह ही बीजों के व्यापार को लेकर किसी नियामक संस्था की व्यवस्था संबंधी लम्बे समय से चली आ रही मांग की भी अनदेखी की गई । श्री जावड़ेकर का कहना है कि जब तक मंत्रालय यह प्रावधान नहीं करता तब तक भाजपा इस कानून पर होने वाले मतदान में भाग नहीं लेगी ।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और लोकसभा सदस्य बासुदेव आचार्य का कहना है कि स्थायी समिति ने २००४ के मसौदा कानून की ८० प्रतिशत धाराआें में संशोधनों की अनुशंसा की है । मंत्रालय ने इन संशोधनों पर विचार तो किया लेकिन मूल्य नियंत्रण प्रक्रिया और किसानों को मुआवजा देने संबंधी परिवर्तनों पर कोई ध्यान नहीं दिया । उदाहरण के लिए कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे कि सरकार बीजों की कीमतों पर नियंत्रण रख सके या उनका निर्धारण कर सके । श्री आचार्य का कहना है कि जब तक सरकार के पास ये अधिकार नहींहोंगे तब तक बीजों की कीमतों पर कोई रोक नहीं लग पाएगी । अमेरिका की मोनसेंटो और ड्यूपाइंर्ट सहित केवल पांच कंपनियों का वैश्विक बीज बाजार पर पूर्ण नियंत्रण है ।
वास्तविकता तो यह है कि हमें परमाणु देयता कानून की तर्ज पर बीज देयता कानून लाने की आवश्यकता है । अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि उनका दल तब तक इस कानून का विरोध करेगा जब तक कि संसदीय कृषि स्थायी समिति द्वारा सुझाई गई सभी अनुशंसाआें को इसमें शामिल नहीं कर लिया जाता । आचार्य का यह भी मानना है कि मूल कानून तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों की सुरक्षा के लिए ही बनाया गया था । इसीलिए तो फसल की असफलता या नुकसानी की स्थिति मेंबीज आपूर्तिकर्ता को इस कानून के अंतर्गत उत्तरदायी नहीं ठहराया गया था । वर्तमान मसौदे में बीज कंपनियों को कानून की परिधि में तो लिया गया है लेकिन मसौदे में यह उल्लेखित नहीं है कि बीजों की खराब किस्म की वजह से किसानों को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति किस प्रकार होगी ?
राज्यसभा सदस्य एम.वी.मैसूर रेड्डी ने भी आचार्य की चिंताआें को वाजिब ठहराते हुए कहा है कि वर्तमान मसौदे में केवल उतनी ही राशि के मुआवजे का उल्लेख है जितनी की बीज की कीमत है । परंतु बीज बोते समय किसान खाद, पानी, खरपतवार, सफाई, कीटनाशकोंऔर मजदूरी पर भी तो खर्च करता है । बीज से होने वाले नुकसान की स्थिति में इन सबकी भी गणना की जानी चाहिए । परंतु प्रस्तावित कानून में तो बीज कंपनियों को केवलबीज के उगने तक के लिए ही जिम्मेदार ठहराया गया है ।
वहीं लोकसभा में तेलगुदेशम पार्टी के नेता का कहना है कि उस स्थिति में क्या होगा जबकि उगी हुई उपज ही नहीं निकलेगी ?बीजू जनता दल, जो कि ओडिशा में सत्तारूढ़ दल भी है, के लोकसभा सदस्य भृतहरि मेहताब का कहना है कि हमारी लंबे समय से मांग रही है कि बीजों पर नियंत्रण की प्रक्रियानिर्धारण का अधिकार राज्य सरकारों पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि कृषि राज्य का विषय है । मेहताब का कहना है कि हालांकि ने आश्वासन दिया है कि इन मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा परंतु वर्तमान मसौदे में इस पर ध्यान नहीं दिया गया है । उदाहरण के लिए मुआवजे की धारा के अंतर्गत पूरे अधिकार केन्द्र सरकार के हाथ मेंहैं । ऐसे में कितने किसान दिल्ली आकर अपने को हुई हानि की क्षतिपूर्ति का दावा कर पाएंगे ? मेहताब का कहना है हम संशोधन लाएंगें और उसके बाद ही तय करेंगे कि इस कानून पर मत देना है या नहीं ।
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