गुरुवार, 24 मार्च 2011

कृषि जगत


किसानों से बीज का खेल
सुश्री ज्योतिका सूद

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अनुशंसाआेंें के विपरित जाकर राजस्थान सरकार द्वारा मोनसेंटों के हाईब्रीड मक्का की दो किस्मों के बीजों का प्रदेश में विवरण अनेक प्रश्न खड़े कर रहा है । इस वर्ष अनायास अत्यधिक वर्षा हो जाने से मक्का की इन किस्मों ने राजस्थान में अच्छी पैदावार दे दी है लेकिन अकाल या कम वर्षा वाले वर्षोंा में क्या होगा ? इसी के साथ गुजरात ने भी बिना अधिसूचना के इन बीजों को इस्तेमाल किया है । इन दोनों प्रदेशों द्वारा किसानों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीजों का घिनौना खेल खेलने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए ।
राजस्थान सरकार ने प्रदेश के साढ़े सात लाख किसानों को मक्का के ऐसे हाईब्रीड बीजों की आपूर्ति की जो कि राज्य की कृषि जलवायु के उपयुक्त नहीं थे । इतना ही नहीं ऐसा करते हुए उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्रालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईपीएआर) की अनुशंसाआेंें की भी अवहेलना की । आईसीएआर द्वारा किए गए परीक्षणों के दौरान इनसे अपेक्षित फसल की प्रािप्त् नहीं हुई थी और कृषि मंत्रालय ने राजस्थान के लिए इसे अधिसूचित भी नहीं किया था ।
यह बीज इस वर्ष अनायास ही भाग्यशाली सिद्ध हुआ और मक्का की अच्छी फसल हुई है । परंतु कृषि विभाग के अधिकारियोंने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि यह वर्ष सूखा प्रभावित होता तो इसके विध्वंसकारी परिणाम निकल सकते थे । प्रबल और डीकेसी ७०७४ नामक इन हाइब्रीड बीजों की आपूर्ति मोनसेंटो इंडिया लि. द्वारा की गई है जो कि इन बीजों को डेकाल्ब के ब्रांड नाम से उत्पादित किया है । इन बीजों को पिछले वर्ष खरीफ (जून से अक्टूबर) के मौसम में उदयपुर, बांसवाड़ा, डुंगरपुर, प्रतापगढ़ और सिरोही जिले के आदिवासी एवं गरीबी रेखा के नीचे बसर करने वाले किसानों को वितरित किया गया था । पांच किलो वजन के बीज के पेकेटों को गोल्डन रेंज परियोजना के तहत राज्य सरकार और मोनसेंटो द्वारा मुफ्त में दिया गया था । इस हेतु केन्द्र द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत बीजोंपर ३९ करोड़ एवं खाद पर १५ करोड़ रूपये खर्च किए गए थे । इन किस्मों का अधिकांश उपयोग मक्का का तेल, स्टार्च एवं अन्य उत्पादों के निर्माण हेतु किया जाता है ।
दिल्ली स्थित मक्का अनुसंधान संचालनालय की वरिष्ठ वैज्ञानिक (पौध
अंकुरण) ज्योति जैन का कहना है प्रबल नामक किस्म को महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश तमिलनाडु एवं कर्नाटक के लिए ही अधिसूचित किया गया था । आईसीएआर ने राजस्थान के लिए एक दूसरी किस्म डीकेसी ७०७४ आर की अनुशंसा की थी लेकिन इस पर कोई प्रयोग नहीं किए गए ।
अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के अंतर्गत तीन वर्षोंा तक शोध करने के पश्चात् ही अनुशंसाएं की गई थी । परियोजना के अंतर्गत बीजों को खेतों में परिक्षण के लिए अनेक कृषि विश्वविद्यालयों एवं सरकारी शोध संस्थानों को दिया गया था तथा विभिन्न मापदंडों जैसे उपज, पानी की आवश्यकता, और कीड़ों के संक्रमण पर निगाह रखी गई थी । इसके पश्चात रिपोर्ट को एक समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसने विभिन्न क्षेत्रों में बीजों की सुस्थिरता के बारे में निर्णय लिया ।
किसानों के लिए कार्य कर रही एक गैर लाभकारी संस्था सेंटर फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक और आईसीएआर के पूर्व वैज्ञानिक जी.वी.रमनजानेयुलु का कहना है कि आईसीएआर ने गुण-दोषों का अध्ययन करने के पश्चात ही अनुशंसाएं की थीं । यह आश्चर्यजनक है कि राज्य सरकार ने इनकी अनदेखी की । इतनी क्या आवश्यकता थी कि ऐसा टुथफुड सीड (कंपनी द्वारा स्वयं प्रमाणित) खरीदा जाए जिसकी की इस अंचल के लिए अनुशंसा ही नहींकी गई थी ।
राज्य कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि मोनसेंटों के बीजों के वितरण का निर्णय उच्च् स्तर पर लिया गया और जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे अधिकारियों से कोई सलाह मशवारा ही नहीं किया
गया । एक कृषि अधिकारी का कहना है हमें तो केवल निर्देश भेजे गये थे और कम्पनी के अधिकारियों की मदद देने को कहा गया । अधिकारी का यह भी कहना था कि जल्दी पकने वाले बीज डीकेसी ७०७४ को लेकर पांचों जिलों से अनेक शिकायतें आई हैं । उनका कहना है कि कुछ मामलों में भुट्टे का आकार सामान्य से काफी बड़ा था जिसकी वजह से इसमें दाने बहुत कम
आए ।
राजस्थान में बांसवाड़ा स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र के आंचलिक निदेशक जी.एस. अमीठा ने सरकार के निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि हालांकि इन दो किस्मों का खेतों में परिक्षण नहीं हुआ था लेकिन खेतों में प्रदर्शन तो किया ही गया
था । इसके बहुत अच्छे परिणाम आए थे जिसके आधार पर इन किस्मों को प्रोत्साहित किया गया । राजस्थान के कृषि आयुक्त जे.सी.मोहंती का कहना है कि इन बीजों को प्रस्तुत करने की पहल उन्होंने गुजरात में इनके प्रयोग की वजह से की । मोहंती का कहना है, गुजरात के कुछ क्षेत्रों की जलवायु राजस्थान के जैसी ही है । हालांकि कृषि मंत्रालय ने इसे राज्य के लिए अधिसूचित नहींकिया है लेकिन वहां इसके बहुत अच्दे परिणाम आए हैं। अतएव हमने भी इसे अपनाने का निश्चय किया । ***

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