गुरुवार, 24 मार्च 2011

जनजीवन


शहरीकरण का भंवर
अरूण डिके

नई आर्थिक सामाजिक व्यवस्था गांवों के प्रति अत्यंत सहिष्णु है । वह धीरे-धीरे गांवोंका अस्तित्व ही समाप्त् कर संपूर्ण कृषि को कारपोरेट जगत को सौंप देना चाहती है । इस प्रक्रिया में यह ग्रामीणों को इतना प्रताड़ित कर रही है कि वे अपने आप गांव और कृषि दोनों को छोड़ दें ।
कृष्ण (श्याम) विवर का मतलब होता है, ब्लैक होल । प्रकृति में व्याप्त् यह एक ऐसी अजीब जगह है, जिसकी कोई थाह नहीं होती । छोटी से छोटी वस्तु से लेकर विशाल जहाज भी जहां बगैर संकेत या सूचना के देखते ही देखते गायब हो जाते हैं । कृष्ण विवर को मानव मस्तिष्क कभी खोज नहीं पाया । गुरूत्वाकर्षण के विपरित उड़ने वाले आकाशयान के माध्यम से चन्द्रमा पर विजय प्राप्त् कर ली गई है । अब मंगल ग्रह पर काबिज होने की योजनाएं बन रही हैं । वह क्या है, क्यों है, कैसेउसका निर्माण हुआ यह मानव अभी खोज नहीं सका है । यह भी पता नहीं चलता कि वहां कौन सा कर्षण या आकर्षण काम करता है ? वैसे कृष्ण विवर जल, थल, नभ कहीं भी हो सकता है ।
प्रकृतिइस रचना के विपरित मानव मस्तिष्क ने भी एक विवर अनजाने तैयार कर लिया है । जिसे आधुनिक भाषा में शहर कहा जाता है । पहले से नगर हुआ करते थे । बड़े-बड़े राज्यों की राजधानियां हुआ करते थे नगर । सभी धार्मिक राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियां यही ंपर संचालित हुआ करती थी । धीरे-धीरे विज्ञान की सहायता लेकर प्रौद्योगिकी ने अपने हाथ पैर फैलाना प्रारंभ किए और इस कृृष्ण विवर नामक शहर को जन्म दिया । यह वह विवर है जहां गरीब से गरीब के पेंशन से लेकर २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले बगैर किसी सूचना या संकेत के गायब हो जाते हैं । या बड़े से बड़े भूखण्ड रातों रात औने के पौने दाम बिक जाते हैं। गरीब किसान को फसल बचाने के लिए बिजली मिले या न मिले शहरी खरीददारोंके मखमली पैरों को कष्ट न हो, इसलिए माल्स के सामने सीढियां चढ़ने के लिए एलीवेटर लग जाते हैं । खेत-खलिहानों को काटकर कॉलोनियां बन जाती हैं ।
यही वह कृष्ण विवर है जहां सामान्य बुद्धि नागरिक को मकान का करारनामा सेलडीड, रजिस्ट्री में फर्क ही समझ में नहीं आता है । ग्रीन बेल्ट, मास्टर प्लॉन और एफ.एस.आय. क्या होते हैं उसे नहीं पता । स्कूलोंसे कॉलेजों तक की पढ़ाई में किसी भी सामाजिक शास्त्र में कभी भी यह नही पढ़ाया जाता है कि शहरों में तिकड़मी लोग क्या-क्या मनसूबे रचकर औरों को परेशान कर सकते हैं और उनसे कैसे बचना चाहिए ।
दोनों प्राकृतिक और मानव निर्मित कृष्ण विवर मेंसमानता यह है कि आप भगवान के सामने चाहे जितने जप जाप कर लो या भोग लगा लो भगवान कभी भी यह नही बताएंगे कि कृष्ण विवर से कैसे बचना । यहां भी कलेक्टर, कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर, सी.एम.के सामने चाहे जितनी गुहार लगाओ, अर्जी लगाओ या भोग लगाओ आपको पता ही नहीं चलेगा कि जहां अस्पताल बनना था वहां ट्रेड सेंटर कैसेबन गया, जहां विद्यालय बनना था वहां बहुमंजिली इमारत कैसे खड़ी हो गई, जहां सड़क बनना थी वहां किसी अफसर का बंगला कैसे बन गया ? बड़े-बड़े बंगलों के सामने सड़क पर खड़ी लक्झरी कारें तो अतिक्रमण में नहीं आती लेकिन किसी गरीब का सब्जी का ओटला या अंडों का ठिया जरूर अतिक्रमण के नाम पर रातों रात ढहा दिया जाता है ।
इस कृष्ण विवर में आपको पता ही नहीं चलेगा कि अपनी लाडली बिटिया की शादी के लिए जो मेरिज गार्डन आपने किराये पर ले रखा है वह किसी नामचिन भू-माफिया अवैध कब्जे का है । और अपने मेहमानोंके लिए जो लजीज खाना आप बनवा रहें हैं, वह नकली घी में और नकली रंगों और जहरीले कीटनाशकों के घोल में छिड़के ओर डुबोए हुए चमकदार सब्जियोंें से बना है । जो चाय आप मेहमानों को पिला रहे हैं वह यूरिया और फेविकॉल से बने सिंथेटिक दूध से बनी हैं आपको यह पढ़कर भी आश्चर्य होगा कि जिन विशालकाय भवनों में मोटी फीस देकर आप आपके बच्च्े को पढ़ने भेज रहे हैं वह कॉलेज अवैध है ं। और जो प्रमाण-पत्र उसे दिए गए हैं वो फर्जी हैं ।
प्रकृतिमें व्याप्त् कृष्ण विवर जिन पंचमहाभूतों के करिश्मे से निर्मित हैं उसी तरह यह कृष्ण विवरण भी बिचोलिए, राजनेता, मीडिया, व्यापारी और अफसरों नामक इन पंच महाभूतों की कारगुजारी का ही परिणाम है । इसका एकमात्र कारण है कि हम शहरी लोगों ने हर जगह जरूरत से ज्यादा राजनीति को अपने गले लगा लिया है । मानव इकाई, समाज सशक्तिकरण और पर्यावरण हमारे जीवन की सोच के बाहर ले गए हैं ।
इस मानव निर्मित कृष्ण विवर से कोसों दूर एक कृष्ण निलय हुआ करता था जहां भगवान कृष्ण गोकुल, मथुरा, वृन्दावन में गाय चराया करते थे और किसी विशालकाय पत्थर की शिला पर बैठकर बांसुरी बजाया करते थे । माँ यशोदा ने तैयार किया माखन वो और उनके सखा चुराकर खाया करते थे । कृष्ण भगवान की अपरम्पार लीलाआेंका वृन्दावन मथुरा अब धीरे-धीरे कृष्ण विवर में बदल रहा है । उनका प्रिय सुखा सुदामा गांव-गांव धूल फांक रहा है । उनके साथ अठखेलियां करती गोपियोंकी सरे आम इज्जत लुटी जाती है । उन्हें जिंदा जलाया जाता है । उनकी प्रिय यमुना नदी का पानी दिन-ब-दिन जहरीला होता जा रहा है । कदम्ब, बेला, चमेली, गुलाब अब सूंघने के नहीं गानों और कविताआें के कामआते हैं । वृन्दावन के कृष्ण कन्हैया के नाम पर इन कृष्ण विवरोंमें भारी भरकम चंदा वसूलकर मंदिर बनाए जाते हैं । ता जिंदगी जिस अधनंगे फकीर ने नंगे पैर गांव-गांव घूमकर कर्मकांडों का बहिष्कार किया उसी सांईबाबा के नाम पर बड़े-बड़े यज्ञ आयोजित होते हैं ।
जरा सोचिए, अपना राजपाट, मोटी तनख्वाह, ऐशो आराम की जिंदगी को पीठ दिखाकर राजमार्ग से पगडंडियां पकड़ने वाले महावीर, गौतम और कृष्ण को गांवों में क्या अच्छा लगा ? श्रम, साहस, प्रेम और ईमानदारी से सादगीपूर्ण जीवन बिताता हुआ देहाती । इससे बढ़कर उसे सर्वेश्वर का और क्या प्राकृतिक रचना हो सकती है ?
आज भी इन मानव निर्मित कृष्ण विवरों में कई देहाती और ग्रामोन्मुखी लोग आपको मिल जाएेंे । लेकिन वे डरे हुए हैं, सहमें हुए हैं, दिग्भ्रमित हैं कि क्या से क्या हो गया उनका शांतिप्रिय परिसर ?क्यों हमारे समाज शास्त्री और राजनेता हमारे संस्कारित गांवोंें को शहरों में बदल रहे हैं ? सुना तो यह गया है कि मुंबई, दिल्ली के बीच करीब सौ बड़ी-बड़ी शहरों की बस्तियां प्रस्तावित हैं । यह सबकुछ होगा और होता रहेगा, तय आपने करना है कि आप कहां रहना पसंद करेंगे, कृष्ण विविर में या कृष्ण निलय में ? ***

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