रविवार, 16 अक्तूबर 2011

प्रदेश चर्चा

बिहार : सबसे तेज विकास का सच
राजीव कुमार

बिहार को वृद्धि दर के पैमाने पर सर्वोच्च् राज्य का दर्जा प्राप्त् हुआ है । परन्तु वहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही दास्तान बयां कर रही है । दलितों और महादलितों के मध्य बढ़ती भुखमरी राज्य के विकास के दावों पर ग्रहण लगा रही है ।
बिहार में राज्य सरकार के समक्ष आज सबसे बड़ी चुनौती दलितों को कुपोषण एवं भुखमरी से बचाने की है । सरकार ने इस दिशा में प्रयास तो किए है, लेकिन इन तमाम प्रयासों का नतीजा सिफर रहा है । वंचित समुदायों को मुख्य धारा से जोड़ने की दिशा में नीतीश सरकार ने अनुसूचित जातियों में मुसहर, डोम, मेहतर, सरीखी तेईस जातियों को लेकर महादलित आयोग बना डाला । आयोग के जरिये दर्जनों कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं । पहले से संचालित पोषाहार कार्यक्रम भी अलग से चलाए जा रहे हैं । लेकिन इस सच्चई का स्याह पक्ष यह है कि तमाम कवायदों के बावजूद बिहार में भूख से मौत के आरोप आए दिन सामाजिक संगठनों द्वारा लगाए जाते है ।
ऐसे ही कुछ आरोप नीतीश सरकार की पहली पारी की समािप्त् के बाद भी लगे है । स्वयं महादलित आयोग ने ही अपनी रिपोर्ट में भुखमरी, कुपोषण, बीमारी एवं खाद्य असुरक्षा में घिरे महादलितों की भयावह दशा का वर्णन किया था । गया के एक मामले में जनसुनवाई के दौरान सर्वोच्च् न्यायालय के आयुक्त सहित ज्यूरी के सदस्यों ने माना कि बिहार के गांवों में लोग भूख से मर नहीं रहे हैं, बल्कि भूख के साथ जी रहे है । यह अलग बात है कि यह अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाती है और न ही बिहार सरकार यह मानने को तैयार होती है । देश के अन्य स्थानों की तरह इस प्रदेश में भी एक ओर भुखमरी की घटना होती है तो दूसरी ओर इसे झुठलाने के प्रयास भी साथ-साथ चलते हैं । मरने वालों को अक्सर कालाजार, मलेरिया, क्षयरोग आदि बीमारियों से ग्र्रसित बताकर जिम्मेवारियों से पल्ला झाड़ लिया जाता है ।
सर्वोच्च् न्यायालय के राज्य सलाहकार द्वारा जारी एक आंकड़ो में बताया गया है कि प्रदेश में जारी १५० से अधिक लोगों की मौत नीतीश कुमार के शासनकाल में भूख से हो चुकी है। गौरतलब है कि ये सभी महादलित समुदाय के थे । एडवाईजर फॉर बिहार द सुप्रीम कोर्ट कमिश्नर ऑन राइट टूट फूड एवं ऑक्सफैम इंडिया द्वारा जारी एक आंकड़े में यह भी बताया गया है कि लोक कल्याणकारी योजनाएं इन भूखों को अनाज देने में नाकामयाब साबित हुई हैं । बिहार में भुखमरी की पुष्टि २००८ की ग्लोबल हंगर रिपोर्ट से भी होती है । रिपोर्ट के अनुसार भारत में सर्वाधिक भूखे लोग बिहार के साथ झारखंड और मध्यप्रदेश में हैं ।
बिहार ही नहीं पूरे देश में बढ़ रही गरीबों की संख्या में दलित ही सर्वाधिक है । इनमें यकीनन गरीबी के साथ-साथ कुपोषण भी व्याप्त् है । तमाम आंकड़ो में बिहार में पिछले कुछ वर्षो में कुपोषण का दायरा बढ़ा है । अध्ययन के अनुसार आपदारहित इलाकों की अपेक्षाकृत आपदाग्रस्त इलाकों में गरीबी अधिक विद्यमान है ।
एक ओर इनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बदहाल है तो दूसरी ओर बाढ़ एवं सुखाड़ की मार है जिसने इस पूरे समुदाय को खाद्य असुरक्षा की अंधेरी सुरंग में ढकेलने में मदद की है । लगातार सूखा एवं खेती-किसानी की मार से जीवन जीने के नैसर्गिक स्त्रोतों पर भी सकंट के बादल मंडराने लगते हैं । रोजगार के साधन बेहत सीमित हो जाने की वजह से लोगों के सामने भरपेट भोजन का संकट खड़ा हो गया है । बीते वर्षों में इनकी स्थिति सुधरने के बजाय खराब हुई है । यह भी देखा गया है कि प्राकृतिक आपदाआें से प्रभावित क्षेत्रों में लम्बे समय के लिए खाद्य असुरक्षा की स्थिति पैदा हो जाती है ।
इसका सर्वाधिक प्रभाव समाज के सबसे कमजोर तबकों पर ही पड़ता है । कल तक जिस गांव में पशुधन किसानों की पूंजी थी आज हरे चारे के अभाव में पशुपालन असाध्य काम होता जा रहा है । जलसंरक्षण व सिंचाई के परम्परागत स्त्रोतों से समृद्ध प्रांत में सिंचाई की स्थिति बिगड़ चुकी है । परम्परागत सिंचाई के परम्परागत स्त्रोतों से समृद्ध कई इलाकों में टैंकर के जरिये पेयजल पहुंचाया जा रहा है । परम्परागत पद्धतियों के संवर्द्धन एवं संरक्षण के बजाय बीते वर्षो में नई चुनौतियों खड़ी हो गयी है । खाद्य असुरक्षा से घिरे समुदायों को संकट से उबारने का काम तो राज्य का होता है । तमाम सुरक्षात्मक उपायों द्वारा इसके प्रभावों को कम किया जा सकता था, लेकिन इस दिशा में ठोस कदमों की कमी बनी रहीं ।
भूख से मौत पर सवाल रोजगार एवं कल्याण की योजनाआें से क्रियान्यवन पर भी उठते है । भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने लगातार बिहार में पोषाहार योजनाआें के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज की है और बड़े पैमाने पर अनियमितताआें को उजागार किया है । इतना ही नहीं राज्य में मनरेगा के तहत हरियाली लाने के कार्यक्रम अन्य कार्यक्रमों की तरह ही विफल साबित हुए और परिसम्पत्तियां सृजित करने की कवायद दिशाहीन बनकर अंधेरे में तीर चलाने जैसा हो गई । मनरेगा में प्राकृतिक सिंचाई के स्त्रोतों के संरक्षण का काम सही दिशा के अभाव में निर्धारित लक्ष्यों से दूर ही रहा । भ्रष्टाचार के साथ मंहगाई की मार ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है। बिहार में वंचितों के बीच कुपोषण की समस्या को समग्रता में समझने की जरूरत है, लेकिन वर्तमान सरकार की नीतियों से यह नहीं लगता है कि उसके ऐजेंडे में भुखमरी को लेकर संजीदगी बची है ।
सरकार द्वारा विकास को लेकर संजीदगी बची है । सरकार द्वारा विकास को लेकर आम लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा करने के बजाय सच्चईयों के मद्देनजर ठोस कार्यक्रमों के जरिये विकास में सबसे पीछे खड़े बिहार के वंचितों को भरपेट भोजन मुहैय्या कराने पर अविलंब सोचना होगा ।

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